राजनीतिक शक्ति की परीक्षा
राजस्थान में सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए सत्ता पक्ष भाजपा, विपक्ष कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों के बीच कड़ी टक्कर जारी है। हालांकि, इन उपचुनावों के नतीजों का सरकार की स्थिरता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इनका प्रभाव दलों और नेताओं की राजनीतिक स्थिति पर ज़रूर पड़ेगा। वर्तमान में, इन सात सीटों में से केवल सलूंबर सीट भाजपा के पास है, जबकि कांग्रेस के पास चार सीटें और बाकी दो सीटें आरएलपी और बीएपी के पास हैं। इसलिए जहां भाजपा के लिए खोने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है, कांग्रेस और उसके नेताओं के लिए इन चुनावों के नतीजे सियासी महत्व रखते हैं।
त्योहारी ब्रेक में प्रचार थमा
मंगलवार से दिवाली का त्योहार शुरू होने के कारण सभी पार्टी के नेता कुछ समय के लिए अपने समुदाय और जनसंपर्क कार्यों में व्यस्त रहेंगे। दिवाली के बाद ये सभी नेता मैदान में फिर से उतरेंगे और प्रचार अभियान को गति देंगे।
प्रमुख कांग्रेस नेताओं के लिए बड़ा दांव
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, इस बार कांग्रेस के उम्मीदवारों के चयन में सचिन पायलट और स्थानीय सांसदों की राय को प्राथमिकता दी गई है, जिससे विधानसभा में विपक्ष के नेता टीकाराम जूली, अलवर के पूर्व सांसद भंवर जितेन्द्र सिंह, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। इन चुनाव परिणामों से इन नेताओं का राजनीतिक कद तय होगा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बार टिकट वितरण में विशेष रुचि नहीं दिखाई, जिससे वह प्रचार के प्रमुख चेहरे के रूप में ही नजर आएंगे।
सीधा और त्रिकोणीय मुकाबला
उम्मीदवारों की अंतिम सूची 30 अक्टूबर को नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख के बाद स्पष्ट होगी, लेकिन चार सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला और तीन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। दोनों ही प्रमुख दलों ने अपनी पूरी ताकत इन उपचुनावों में झोंक दी है। कांग्रेस अपनी चार सीटें वापस जीतने का भरपूर प्रयास कर रही है, जबकि भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में ग्यारह सीटों पर मिली हार का बदला लेने के मूड में है। भाजपा के मुख्यमंत्री भजन लाल, प्रदेश नेता, केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव, गजेन्द्र सिंह शेखावत और अन्य नेताओं ने इस बार चुनाव प्रचार को संगठित ढंग से मजबूती से संभाला है।
नेताओं के करियर पर असर
हालांकि इन उपचुनावों के नतीजे भाजपा पर सीधे तौर पर असर नहीं डालेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की स्थिति पर प्रभाव डाल सकते हैं। कांग्रेस के लिए, झुंझुनूं, देवली-उनियारा और दौसा सीटों के परिणाम सीधे सचिन पायलट की प्रतिष्ठा से जुड़े हैं, क्योंकि इन सीटों के प्रत्याशी उनकी सिफारिश पर तय किए गए हैं। रामगढ़ सीट का परिणाम टीकाराम जूली और भंवर जितेन्द्र सिंह के राजनीतिक अस्तित्व को प्रभावित करेगा, जबकि सभी सीटों के परिणाम का सीधा प्रभाव गोविंद डोटासरा के राजनीतिक करियर पर पड़ेगा। खींवसर सीट का चुनाव डोटासरा की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि आरएलपी के साथ गठबंधन न करने और उम्मीदवारों के चयन का निर्णय उन्होंने ही लिया था।
23 नवम्बर: निर्णायक दिन
राजस्थान के इस उपचुनाव के मिनी ओलम्पिक के नतीजे 23 नवम्बर को तय करेंगे कि किस पार्टी और नेता का भविष्य उज्ज्वल होगा। देखना यह है कि इस बार उपचुनाव के परिणाम किस पार्टी के कार्यालय में दिवाली जैसा उत्सव लेकर आएंगे और किसके कार्यालय में अंधेरा रहेगा।