मैं योग की कर कामना
करती वियोगिनि साधना
पथ प्रेम का है तब सुगम
रागादि से जब मुक्ति हो
जब पथिक दो पथ एक हो
निष्काम हो आराधना
भक्ति रस की अध्यात्मिक रचनाओं का सृजन रचनाकार डॉ. तारूणी कारिया के लेखन का मुख्य विषय है। योग की कामना, वियोगिनी की साधना , प्रेम पाठ पर राग से मुक्ति, निष्काम आराधना, के भावों को इस कविता में पिरो कर वे आगे लिखती हैं..........
हिम गल रहा रवि जल रहा
शशि नित्य रूप बदल रहा
पर इस अलौकिक प्रेम का
प्रतिकार पाना है मना
मैं योग की कर कामना
करती वियोगिनि साधना
ऐसी ही कविताओं कविता,गज़ल, गीत, दोहे व छन्द मुक्त रचनाओं और ललित लेख, संस्मरण, काव्य संग्रह, उपन्यास व अन्य पुस्तकों की समीक्षाओं में उनके लेखन की
समीक्षात्मक,मनोविश्लेषणात्मक.,संस्मरणात्मक एवं विवरणात्मक शैली की झलक मिलती है। पद्य उनकी प्रमुख विधा
है परंतु गद्य विधा में भी पारंगत हैं। हिंदी भाषा को ही लेखन का माध्यम बनाया है परंतु वे गुजराती भाषा में भी लिखती हैं। अध्यात्म के साथ-साथ देशभक्ति विषयक, समसामयिक, समस्या परक, कविताओं का लेखन पद्य विधा की विशेषता है। लेखन का उद्देश्य स्वयं का साहित्य परिमार्जन और भावनाओं का उदात्तीकरण है।
पद्मविभूषण महाकवि श्री कन्हैयालाल जी सेठिया की सृजन साधना से अत्यंत प्रभावित है। वर्ष 1970 में उनके कोटा आगमन पर उनके द्वारा प्रदत्त काव्य कृति " प्रणाम " से काव्य लेखन इनको प्रेरणा प्राप्त हुई । अपने लेखन में उन्हीं के शब्द-छन्द-भावों का सहारा लेकर छन्दबद्ध काव्य सृजन का प्रयास किया।
इनके साहित्यिक यात्रा का लेखन की प्रथम रचना कुछ इस तरह है......…....
मौन मुखर हो गया, सहज वाणी भी जब निर्द्वंद्व बनी
व्याकुल मन को आलोड़ित कर, तब पीड़ा इक छंद बनी
कालचक्र के पात्र में हँसकर , जब व्यतीत का कालकूट भर
वर्तमान कंटकयुत पथ पर, अभिलाषा मकरंद बनी
तब पीड़ा इक छन्द बनी ।।
करुणा के क्षण नभ बन जाते, विहग व्यथा की कथा सुनाते
दिशा-नयन जब भर भर आते, क्षितिज परिधि प्रतिबंध बनी
तब पीड़ा इक छन्द बनी ।।
इनकी भावपूर्ण प्रथम कविता को लेखन के आग़ाज़ के रूप में देखा गया। इनके समकालीन रचनाकारों ने मुक्त कंठ से सृजन की प्रशंसा की और कवियित्री में भावी साहित्यिक जगत के लिए आशा की किरण नज़र आई। विरहन के दोहों की बानगी देखिए कितने अर्थपूर्ण और भावपूर्ण हैं.............
1. सिंदूरी सपने हुए , हुई फागुनी पीर ।
विरहन के मन की व्यथा , और हुई गंभीर ।।
2. बासंती आँसू ढरे, चंपई सुधि बिसरी।
मन ही मन बिरहन प्रिया, की बार बिखरी।।
3. सावन आकर कर गया, हरे भरे मन गात।
सकुचाई बिरहन प्रिया, कह न सकी यह बात।।
4. जेठ और बैसाख की, भोर तपाती देह।
बिरहन की सांसें कहें, मत बिसराना नेह ।।
अपने सृजन में हास्य रस को भी भरपूर स्थान दिया। इनकी इस रस की एक भावपूर्ण रचना "काव्य पहेली" में बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति इस प्रकार की है.................
गुनगुन गुनगुन ओ प्रियतम
भँवरे सी प्रिय गुंजार हो तुम
रुनझुन रुनझुन नन्हे पैरों की
पायल झनकार हो तुम
मधुर मधुर ध्वनि मोहित करती
हृदय हमारा विकल हुआ
जागी आँखों से तुमको
पाने का सपना विफल हुआ
पलक पांवड़े बिछा बाँवरी
राह तुम्हारी तकती हूँ
निरख तुम्हारी बाँकी चितवन
फिर कैसे सो सकती हूँ
निंदिया ना आँखों में मेरे
चैन न मुझको पलभर है
सुधिजन अब भी ना समझे ?
वो सजन नहीं है ..मच्छर है !!
पद्य विधा में छंद मुक्त लेखन की यह बानगी भी दृष्टवय है.....…..................
प्रिय पथिक,
सूरज की तरह
जलना पड़ेगा
नित्य निरंतर
चलना पड़ेगा
पश्चिम में अस्त होने की
पीड़ा से
तमतमाया सूर्य
दूसरे दिन
प्राची में जब
पहली किरण बिखेरता है
तब
विगत अस्ताचल की
कोई स्मृति
उसके दीप्तिमान अस्तित्व को
म्लान नहीँ कर सकती
अप्रतिहत गति से
जलना;
चलना;
और चलते रहना
यही सूर्य की सत्ता है
महत्ता है
शाम का ढल जाना
सूरज की हार नहीं
उसकी विराम वेला है
रात का अंधकार
कितना ही प्रगाढ क्यों न हो
इसकी भी अवधि तो निश्चित ही है न !
फिर सुबह होगी
ख़ुशनुमा ताज़गी लिये
जीत का एहसास लिये....!!
गद्य विधा में कृष्ण भक्त मीरा एक लम्बा लेख लिखा है। यह लेख मेवाड़ के राजघराने की मीरा बाई से लेकर आधुनिक युग की विधवाओं पर होने वाले अत्याचार को प्रकट करता है। और मीराबाई की तरह प्रतिभाशाली महिलाओं की साहित्यिक और अध्यात्मिक शक्तियों को समाज के सम्मुख रखकर अपने अस्तित्व का परिचय कराती हैं।
इनकी दो कृतियां " पटाक्षेप - काव्य संग्रह" और "दादा जी के पत्र" प्रकाशित हुई हैं।
'पटाक्षेप ' कविता संग्रह सुश्री स्वाति बिन्दु के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित लगभग 12 विभिन्न विद्वानों की व्याख्या सहित एक समीक्षात्मक पुस्तक है । इसका विषय अध्यात्म, पर्यावरण और सामाजिक समरसता की स्थापना की भावना को व्यक्त करता है
'दादा जी के पत्र' पुस्तक में मुंबई के वरिष्ठ रचनाकार स्व. कान्ति भाई मेहता द्वारा लिखे गए "लेटर फ्रॉम दादा जी" का हिन्दी
अनुवाद ट्रांसक्रिएशन के रूप में किया गया है।
इस पुस्तक में पत्रों के फॉर्मेट में कहानियाँ लिखी गई हैं। जो बच्चों में नैतिकता की , मानवता की और देशभक्ति की भावना को जगाती हैं। जयपुर राजस्थान के साहित्यकार प्रबोध गोविल के उपन्यास ' राय साहब की चौथी बेटी' की समीक्षा सहित अनेक पुस्तकों और उपन्यासों की समीक्षाएं खूब चर्चित हुई।
परिचय :
आध्यात्म और सामाजिक जागृति के भावों पर लिखने वाली रचनाकार डॉ.तारूणी कारिया का जन्म 21 सितंबर 1955 को राजकोट ( सौराष्ट्र) में पिता भगवानदास चतवानीऔर माता इंदुमती चतवानी के आंगन में हुआ। आपने हिन्दी, संस्कृत, संगीत (सितार) में सनातकोत्तर और एम.एड.तक शिक्षा प्राप्त कर " हाड़ौती क्षेत्र के उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों को हिन्दी सीखने में आनेवाली समस्याओं का अध्ययन" विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। सन् 1992 से 1999 तक आकाशवाणी कोटा केंद्र से काव्य जगत, महिला जगत, बाल जगत, आबोहवा आदि में समसामयिक रचनाओं का प्रचुरता से प्रसारण हुआ। आपकी रचनाएं देश के अनेक समाचार पत्रों, आध्यात्मिक एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। किशनगढ़ अजमेर के ज्ञान मंदिर प्रकाशन में 1990 से निरंतर लेखन, कविताओं और पुस्तक समीक्षाओं का प्रकाशन हो रहा है। ये विभिन्न ऑन लाइन काव्य एवं साहित्यिक मंचों पर निरंतर सक्रिय हैं। आपने राजस्थान के शिक्षा विभाग कोटा से ऐच्छिक सेवा निवृत है। दिसंबर 2015 से अहमदाबाद/ पुणे में बच्चों के साथ रह कर साहित्य साधना में लगी हुई हैं।
चलते - चलते ये ग़ज़ल.............
हर मौज की कश्ती में किनारा नहीं होता
हर डूबती कश्ती को सहारा नहीं होता
हम ही तो तन्हा ग़म के समंदर में नहीँ हैं
ये बात और है कि नज़ारा नहीं होता
ख़ुशियों की उम्र कितनी भी कम क्यों न हो मग़र
ता-उम्र तो इस ग़म पे ग़ुजारा नहीं होता
बैसाख़ियों पे किसकी भला ज़िंदगी कटी
परछाइयों से बढ़ के सहारा नहीं होता
अफ़साने मुख़्तलिफ़ हैं बयां मुख़्तलिफ़ नहीँ
ऐ काश ! टूटा ख़ाब कँवारा नहीं होता
संपर्क :
डॉ.तारूणी कारिया
9, हर्म्स क्रिस्टल, मंगलदास रोड,
कॉनराड होस्टल के सामने,
कोरेगन पार्क,
पुणे 411001( महाराष्ट्र )
मोबाइल : 70162 16649