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पर्यावरण संरक्षण की पहल: उदयपुर में पहली बार गोकाष्ठ की लकडी से दो लावारिस शवों का दाह संस्कार

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12 Nov 25
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पर्यावरण संरक्षण की पहल: उदयपुर में पहली बार गोकाष्ठ की लकडी से दो लावारिस शवों का दाह संस्कार

उदयपुर, पर्यावरण संरक्षण और वृक्षों के संरक्षण की दिशा में उदयपुर में एक अनोखी पहल की गई। शहर में पहली बार दो लावारिस शवों का दाह संस्कार गोकाष्ठ (गोबर से बनी लकड़ी) से किया गया। यह दाह संस्कार अशोक नगर स्थित श्मशान घाट पर किया गया, जहां दोनों शव लावारिस अवस्था में थे। इस पहल को न केवल उदयपुर बल्कि पूरे राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम माना जा रहा है।

यह पहल राहडा फाउंडेशन की ओर से की गई, जिसमें महाराणा प्रताप सेना के संस्थापक मोहन सिंह राठौड़, भरत साहू और अरुण शर्मा की प्रमुख भूमिका रही। फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष अर्चना सिंह चारण ने बताया कि महाराणा प्रताप सेना द्वारा दो लावारिस शव—एक महिला और एक पुरुष—का दाह संस्कार किया गया। पुरुष का शव सूरजपोल थाना द्वारा और महिला का शव अशाधाम संस्था द्वारा अंतिम संस्कार हेतु सौंपा गया।

गौमाता के गोबर से बनी लकड़ी से दाह संस्कार किया गया, जिसे शिवशंकर गौशाला में तैयार किया गया था और यह लकड़ी प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सहयोग से निःशुल्क उपलब्ध करवाई गई।

दाह संस्कार के दौरान अर्चना सिंह चारण, कुसुम लता सुहलका, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल से कुंज बिहारी पालीवाल, सफल पाटीदार, अशाधाम संस्था से सिस्टर डेनिसा, शंकर मीणा, संजय प्रजापत, गजेन्द्र सिंह राठौड़ सहित कई समाजसेवी उपस्थित रहे। विशेष बात यह रही कि महिलाओं ने भी गोकाष्ठ की लकड़ी रखने में सक्रिय सहयोग किया।

🌿 पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम

गोकाष्ठ से दाह संस्कार लकड़ी की तुलना में अधिक पर्यावरण अनुकूल है, क्योंकि इसमें पेड़ों की कटाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। गाय के गोबर से तैयार गोकाष्ठ लकड़ी पेडों के संरक्षण में सहायक है और कम प्रदूषण उत्पन्न करती है।

💰 सस्ता और सुलभ विकल्प

गोकाष्ठ लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में सस्ती और हल्की होती है। इसके उपयोग से दाह संस्कार की लागत कम होती है और परिवहन में भी सुविधा रहती है। सामान्य लकड़ी में जहां 6 से 7 क्विंटल लकड़ी की आवश्यकता होती है, वहीं गोकाष्ठ से मात्र 3 क्विंटल में दाह संस्कार संभव हुआ।

🔥 सनातन परंपरा में गोकाष्ठ का महत्व

सनातन धर्म में दाह संस्कार के दौरान लकड़ी के साथ कंडे रखने का विधान है। गोकाष्ठ से दाह संस्कार में वही पवित्रता निहित है, जिससे अलग से कंडे की आवश्यकता नहीं रहती। शास्त्रों में भी इसे श्रेष्ठ माना गया है।

🌸 आगे बढ़ेगी यह पहल

फाउंडेशन की अध्यक्ष अर्चना सिंह चारण ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान में 90 प्रतिशत निशुल्क गोकाष्ठ दाह संस्कार का यह पहला प्रयास है। इसे आगे और व्यापक स्तर पर बढ़ाने की दिशा में फाउंडेशन कार्य करेगा, ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ धार्मिक परंपराओं को भी सशक्त बनाया जा सके।

यह दाह संस्कार कम समय, कम लकड़ी और कम व्यय में सम्पन्न हुआ — जो आने वाले समय में एक आदर्श उदाहरण बन सकता है।


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