“मिट्टी से ही पानी है, और पानी से ही मिट्टी”—यही धरती का अनंत सत्य है।
मनुष्य हो या संपूर्ण जीव जगत, जीवन का संपूर्ण विस्तार इन्हीं दो तत्त्वों से निर्मित और संचालित होता है। जब मिट्टी उर्वर और जल शुद्ध होता है, तब सभ्यताएँ फलती–फूलती हैं; और जब ये दोनों संकट में आते हैं, तो जीवन का आधार ही डगमगा जाता है। इसलिए मिट्टी और पानी का संरक्षण केवल पर्यावरण का विषय नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिकता, अस्तित्व और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का संकल्प है।
इसी संदेश को भावपूर्ण रूप से व्यक्त करते हुए विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने नगर निगम सभागार, उदयपुर में आयोजित संभाग स्तरीय वाटरशेड महोत्सव को संबोधित किया।
डॉ. मेहता ने कहा कि भारतीय संस्कृति, हमारी परंपराएँ, हमारी जीवनशैली—सदैव मिट्टी और जल को देवत्व के साथ पूजती रही हैं। हमारे पर्व, पूजा, यज्ञ, राज–नहरें, बावड़ियाँ, तालाब, जल संरक्षण प्रणालियाँ—सभी प्रकृति के सम्मान और संरक्षण की युगों से चली आ रही शिक्षाएँ देती हैं। भारत की पर्यावरण संस्कृति का पुनर्जागरण ही मिट्टी, पानी और प्रकृति को बचाने का वास्तविक मार्ग है।
उन्होंने विश्व मृदा दिवस की इस वर्ष की थीम – “Healthy Soil for Healthy Cities” का उल्लेख करते हुए कहा कि शहर केवल ईंट, कंक्रीट और विकास के ढांचे नहीं होते, बल्कि वे भी एक विशाल जलग्रहण क्षेत्र (Watershed) होते हैं। यदि शहरी विकास को जलग्रहण आधारित योजना के रूप में समझा जाए, तो न केवल मिट्टी और पानी सुरक्षित होंगे, बल्कि शहरों का स्वास्थ्य, नागरिकों की प्रतिरोधक क्षमता और जीवन स्तर भी बेहतर होगा।
डॉ. मेहता ने उदाहरण देते हुए कहा कि उदयपुर और राजसमंद का समूचा क्षेत्र गंगा नदी की विशाल जलग्रहण प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अतः यहाँ की मिट्टी और जल का संरक्षण केवल उदयपुर या राजसमंद के हित में नहीं है, बल्कि गंगा नदी और राष्ट्रीय जल–पर्यावरण धरोहर की सेवा भी है।
उन्होंने कहा,
“भारत नदियों, जलधाराओं और प्राकृतिक नालों का देश है। इनके जलग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण और पुनर्जीवन केवल पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा है।”
स्वस्थ जलग्रहण क्षेत्र किसी भी समाज की संस्कृति, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और समृद्धि की आधारशिला होते हैं।
डॉ. मेहता ने चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि दुनिया की 95% खाद्य सामग्री मिट्टी पर निर्भर है, जबकि वैश्विक स्तर पर एक–तिहाई मिट्टी तेजी से क्षरण की स्थिति में पहुँच चुकी है। यदि मिट्टी बीमार है, तो भोजन कैसे स्वस्थ होगा? और भोजन अस्वस्थ है, तो समाज कैसे स्वस्थ रहेगा?
अंत में उन्होंने आह्वान किया:
“मिट्टी को बचाइए, पानी को सहेजिए; क्योंकि यही बीज है, यही भोजन है, यही संस्कृति है और यही भविष्य है।”
यदि मिट्टी हँसेगी, तभी जीवन मुस्कुराएगा।