उदयपुर।झीलों के शहर उदयपुर की पहचान रही ये जलधाराएँ अब खतरे की घंटी बजा रही हैं। रविवार को आयोजित झील संवाद में विशेषज्ञों और पर्यावरण प्रेमियों ने चौंकाने वाली बातें सामने रखीं—यानी वही झीलें जिनसे शहर को पीने का पानी मिलता है, आज प्रदूषण के गंभीर दबाव में हैं।

विशेषज्ञ डॉ. अनिल मेहता ने कहा—
“झीलें केवल जलाशय नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पारिस्थितिकी और पर्यटन की भूमि हैं। लेकिन बीमार लोगों द्वारा झील में स्नान, मृतकों के संक्रमित कपड़ों व बिस्तरों का विसर्जन, भोजन अवशेष, मृत पशु, प्लास्टिक पॉलीथिन और सीवर के प्रवाह ने पानी को ज़हरीला बना दिया है।”
उन्होंने चेताया कि जल में प्रवेश कर रहे रसायन और परजीवी दीर्घकाल में कैंसर, नपुंसकता और हार्मोनल असंतुलन जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
झील प्रेमी तेज शंकर पालीवाल ने बताया कि गंदगी के कारण ऑर्गेनिक लोड बढ़ने से पानी की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड बढ़ जाती है और घुलित ऑक्सीजन घटती है—जो जलीय जीवन के लिए एक गंभीर संकट है।
सामाजिक कार्यकर्ता नंद किशोर शर्मा ने कहा कि मानव और पशु मल के झीलों में मिलने से हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस-A & E, डिसेंट्री, अमीबियासिस और कई जलजनित रोग सहज ही फैलते हैं। यह सीधा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है।
युवा पर्यावरणविद कुशल रावल ने बताया कि झीलों में बढ़ रही गंदगी नाइट्रोजन-फॉस्फोरस के स्तर को बढ़ाकर यूट्रोफिकेशन को तेज करती है, जिससे शैवाल प्रस्फुटन बढ़ता है और पेयजल की गुणवत्ता तेजी से गिरती है।
वरिष्ठ नागरिक द्रुपद सिंह ने कहा—
“यह केवल प्रशासन का नहीं, हम सभी का दायित्व है। यदि हम अभी नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा।”