खोखले रिश्ते कहानी की समीक्षा

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Published on : 27 Sep, 23 10:09

समीक्षक देवकीनंदन सोनी ' देव '

खोखले रिश्ते कहानी की समीक्षा

'खोखले रिश्ते 'कहानी की रचयिता प्रेरणा गौड़ (श्री) हैं। खोखले रिश्ते कहानी वर्तमान दौर में खोखले होते हुए रिश्तो  के यथार्थ को प्रस्तुत करती है। साथ ही साथ मध्यम वर्गीय पीड़ा को भी अभिव्यक्त करती है । कहानी की मुख्य पात्र रश्मि है
रश्मि अपने माता-पिता की लाडली है फाइनल ईयर की विद्यार्थी है । घर के कामकाज में भी होशियार है और घर पर ट्यूशन पढ़ाकर अपने पिताजी का सहयोग करती है क्योंकि मध्यम वर्गीय परिवार है शहर के खर्च अधिक होते हैं ऐसे में पिताजी की तनख्वाह भी कम है घर में माताजी बबीता जी भी सिलाई बुनाई करती है और अपने पति का सहयोग करती है।
हंसता खेलता परिवार है कहानी में अचानक से टर्न तब आता है जब रश्मि के रिश्ते के लिए बड़की बुआ एक रिश्ता लेकर आती है और कहां जाता है कि लड़का ₹50000 कमाता है लेकिन लड़का रश्मि से कम पढ़ा लिखा है लेकिन फिर भी उसके माता-पिता यह सोचकर रिश्ता कर देते हैं कि लड़का ₹50000 कम रहा है और आजकल कहां इतना अच्छा कमाने वाला लड़का मिल जाता है ऐसे में वह रिश्ता पक्का कर देते हैं। विवाह तय हो जाता है । कुछ टाइम बाद रश्मि को मालूम होता है कि उसका पति ₹50000 नहीं कमाता है सिर्फ रिश्ता करने के लिए उसे झूठ कहा गया था। इधर सास ससुर रश्मि को मायके से पैसे लाने के लिए कहते हैं तो रश्मि नौकरी और ट्यूशन के माध्यम से पैसे कमाने की बात करती है तब उसकी सास रहती है कुछ इस तरह " हमारे घर की बहू घर से बाहर जाकर नौकरी करें इसकी इजाजत मैं नहीं दे सकती हूं और ना ही घर पर ट्यूशन पढ़ाने की इजाजत दे सकती हूं तुम अपने घर वालों से पैसा लेकर आओ इसके अलावा मैं तुमसे कुछ नहीं चाहती" इससे रश्मि धीरे-धीरे सामने लगती है और उसके दिमाग की हालत खराब होने लगती है और वह डिप्रेशन में आ जाती है ससुराल वाले उसे धक्केमार कर उसे मायके भेज देते हैं। रश्मि के माता-पिता के सामने जब यह सच्चाई आती है तो वह बड़े ही दुखी हो जाते हैं और अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं कि हमारी फूल जैसी बच्ची का क्या हाल हो गया है कैसे हंसती थी मुस्कुराती थी बिटिया रानी का बहुत बुरा हाल कर दिया है
रश्मि का पिता महेंद्रनाथ अपनी जवाई को फोन करता है और कहता है कि " राकेश बाबू जीवनसाथी का मतलब आप समझते हैं जीवन साथी वह होता है जो सुख का साथी है तो दुख का भी साथी है लेकिन आप सिर्फ सुख के साथी  रहे हमारी बिटिया रानी  रश्मि के जैसे ही दुख आया और आपने उसे छोड़ दिया आप जीवनसाथी के नाम पर कलंक है राकेश बाबू आप कलंक है" यह कहानी हमें यह भी बताती है कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है इस रिश्ते में जब पति-पत्नी एक हो जाते हैं तब दुख और सुख भी एक होने चाहिए दोनों सुख के साथी है तो दुख में भी एक दूसरे का साथ निभाना चाहिए  ‌।  कहानी का पात्र राकेश‌  दुख में भागीदारी नहीं निभाता है और अपने माता-पिता का साथ देता है और रश्मि को छोड़ देता है इस तरह यह कहानी बदलते दौर के खोखले रिश्तो को बखूबी अभिव्यक्त करती है । कहानी के अंत में महेंद्रनाथ रोता हुआ चिल्लाता हुआ कह उठता है  खोखले रिश्ते खोखले रिश्ते । निष्कर्षत यह कहानी रिश्तो के खोखलेपन उजागर करती है मध्यमवर्गीय पीड़ा को अभिव्यक्त करती है । 
 


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