पुस्तक समीक्षा-" निब के चीरे से..."- ' उभरी संवेदनाओं के पृष्ठ '-  

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Published on : 29 Oct, 23 08:10

समीक्षक : विजय जोशी कथाकार और समीक्षक,कोटा

पुस्तक समीक्षा-" निब के चीरे से..."- ' उभरी संवेदनाओं के पृष्ठ '-  

 व्यक्ति जब अपने विचारों को समय के पृष्ठ के साथ समन्वित करता हुआ शब्दों को उकेरता है तो अपने अन्तस में उभरे संवेदनाओं के पृष्ठों से साक्षात्कार होता है। इन्हीं सन्दर्भों के उजास में अपने लेखन कर्म में अनवरत  समर्पित ओम नागर की यह कृति 'निब के चीरे से '... उभरी संवेदनाओं के पृष्ठों का सजिल्द दस्तावेज़ है 

भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन पुरस्कार,2015 से पुरस्कृत और प्रकाशित (प्रथम संस्करण.2016 ) कथेतर गद्य की यह 'डायरी' लेखक के चतुर्दिक परिवेश की अनुभूत धाराओं का संगम है जिसमें लेखक स्वयं अनुभवों के उजास में शब्दों को उकेर कर समय और सन्दर्भ विशेष को जीवन्त कर इस तरह गुंफित करता है कि जब भी अहसासो तो वह विशेष पल त्वरित समक्ष होकर मन मस्तिष्क के दृश्य-पटल पर साकार हो उठते हैं।

 1 जनवरी,2015 से आरम्भ होकर 31 दिसम्बर,2015 तक के 38 शीर्षित डायरी के सवा सौ से अधिक पृष्ठों में लेखक ने कृति-प्रकृति-पर्यावरण के साथ अपने शैक्षणिक-सांस्कृतिक और साहित्यिक परिदृश्यों के अतिरिक्त   पारिवारिक-सामाजिक और राष्ट्रीय सन्दर्भों की समकालीनता को गहरे से विश्लेषित और विवेचित कर अपने अस्तित्व की जड़ों से जुड़ सकारात्मक रहकर अपने एवं अपने परिवेश से संवेदनाओं के धरातल तक आत्मसात किये रहने का आह्वान किया है। इस डायरी की यह विशेषता है कि काव्य की धारा अनुभूति के दायरों को प्रगाढ़ कर सन्दर्भ विशेष को उभारती चली जाती है; इस आयाम के साथ कि " हमें शब्द को उसके अर्थ के साथ जीवित रखने के लिए बार-बार शब्दों का लिखना जारी रखना होगा।तभी हमारा दख़ल हमारे अपने समय में होगा।"-(पृष्ठ.133) 

कुल मिलाकर यह कृति अनुभूत संवेदनाओं के संस्मरणों के उजास में डायरी के पृष्ठों पर शब्द-शब्द उकेरती अनवरत सृजन कर्म एवं सकारात्मक  सन्दर्भों की ओर गतिमान रहने को स्पन्दित किये रहती है...।


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