शमा 'फ़िरोज़' की हर रंग में रंगी ग़ज़लों का महकता गुलदस्ता

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Published on : 18 Apr, 24 09:04

डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

शमा 'फ़िरोज़' की हर रंग में रंगी ग़ज़लों का महकता गुलदस्ता

हमारे देश में गजलेंउर्दू शायारों में  मिर्ज़ा ग़ालिब के साथ - साथ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,अल्लामा इक़बाल, मीर तकी मीर के नाम आते हैं। हिंदी की गज़ल को स्थापित करने में दुष्यंत कुमार का योगदान सराहनीय है। दुष्यंत के अलावा शमशेर बहादुर सिंह, अदम गोंडवी, गोपाल दास नीरज, विश्वनाथ, शेरगंज गर्ग, त्रिलोचन सहित अन्य कवियों ने भी गज़ल विधा पर हिंदी में कार्य किया है। कुछ गजलें ऐसी है जिन्हें साहित्य प्रेमी पाठकों ने काफी पसंद किया है। देश के इन ख्यातिनाम शायरों और गज़लकारों के बीच कोटा की शमा
"फ़िरोज़" एक ऐसी शायरा और ग़ज़लकार हैं जो  हिंदी और उर्दू भाषाओं में लिख कर साहित्य की इस विधा में तेजी से अपनी पहचान बना रही हैं। सोशल मीडिया के कई राष्ट्रीय साहित्य मंचों और पत्र-पत्रिकाओं में प्रति दिन साया होने वाली इनकी रचनाएं इसका प्रमाण हैं। 
   इन पर लेखन से पूर्व इस विधा को समझने की दृष्टि से पूछने पर बताया कि शेर दो पंक्तियों की एक कविता है। ग़ज़लों की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि प्रत्येक शेर अपने आप में एक स्वतंत्र कविता है । 'ग़ज़ल पर ग़ज़ल' में, प्रत्येक दोहे को शेर कहा जाता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वे एक ही विषय पर हों, वे अलग-अलग विषय के हो सकते हैं।
      यह ग़ज़ल के साथ-साथ गीत और मुक्तक लिखने में प्रवीण हैं। इनका सृजन श्रृंगार रस और वर्तमान परिपेक्ष पर ग़ज़लों का लेखन प्रमुख रूप से है। श्रृंगार रस की ग़ज़लों में नारी चित्रण और सौंदर्य बोध मुख्य रूप से झलकता है जो प्रेम भावनाओं को परिलक्षित करता है । वर्तमान परिपेक्ष की ग़ज़लें राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों पर प्रहार करते हुए जीवन का सही मार्गदर्शन करती हैं। हर रंग में रंगी इनकी ग़ज़लों  में त्योहारों का वर्णन भी बड़ी ख़ूबसूरती से से किया है वहीं समाज और देश दुनिया पर भी निगाह रखते  हुए सामाजिक विद्रूपताओं पर अपने शब्दों से प्रहार भी साफ दिखाई देता है।
इतिहासविद और लेखक हमसफ़र फ़िरोज़ अहमद जो स्वयं भी बेहतरीन ग़ज़ल लिखते हैं और इनकी प्रेरणा बन कर क़दम-क़दम पर इनका साथ दिया और जिनके कारण लेखन में इनका रुझान हुआ उनका शुक्रिया अदा करते हुए लिखती हैं --------------
(1)मुझको बुलंदियों पे बिठाया है आपने 
हर पल बुराइयों से बचाया है आपने 
करती नहीं अकेला यूँ महसूस ख़ुद को मैं 
रिश्ते निभाना मुझको सिखाया है आपने
(2) मेरी ज़िंदगी को ख़ूब सँवारा है आपने 
मेरे गुलशन को भी गुलों से सजाया है आपने 
पहले बनाया आपने मुझको है शिक्षिका 
फिर शमा से शायरा बनाया है आपने।
   इश्क़ की गहराइयों और उसकी ख़ूबियों को इन्होंने जिस खुबसूरती से शब्दों में पिरोया  और रब का दिल से शुक्रिया अदा किया है काबिले तारीफ है...............
इब्तिदा-ए- ख़ुशी हुआ है इश्क़ 
मेरे हर दर्द की दवा है इश्क़ 
शुक्रिया क्यों नहीं करें रब का 
हमको तूहफ़े में जो दिया है इश्क़ 
ज़र्रे-ज़र्रे में यह समाया है 
आशिक़ों का ख़ुदा रहा है इश्क़ 
हीर- राँझा को क़ैस-लैला को 
शम'अ- परवाने सा रहा है इश्क़ 
कहते हैं कि इश्क़ वालों पर हमेशा ही ज़माने की नज़र तिरछी रही है।  जुनून-ए- इश्क़ की महिमा को बयाँ करने का इनका निराला अंदाज़ इन पंक्तियों में देखिए.............
हम इश्क़ करके यारो गुनहगार हो गए 
और लोगों की नज़र में ख़तावार हो गए 
ताक़त है प्यार में यह समझना ज़रूरी है 
दुश्मन भी प्यार  पाके वफ़ादार हो गए
 इश्क और प्यार से अपने महबूब के प्यार की ख़ुशबू को जिस ख़ूबसूरत अंदाज़ में लिखा है उसकी बानगी भी देखिए............
तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू महकती है फ़ज़ाओं में
सनम जी चाहता है अब तो आ जाओ पनाहों में 
मिली है मेरी नज़रें जब से जानम तेरी नज़रों से 
ठहरता ही नहीं है चाँद अब तो इन निगाहों में
घटा घनघौर बरसी है सुहाना हो गया मौसम 
चलो आ जाओ झूलें साथ हम सावन के झूलों में 
इश्क और प्रेम की चाशनी में पगि इन नज्मों के साथ 
 इनकी ग़ज़लों क़लम की ताक़त को भी इन शब्दों में बयाँ किया है.............
अगर ज़ुल्मों-सितम सहना नहीं है 
क़लम की तेज़ अपनी धार कर लो 
ख़बर पहुँचे तुम्हारी हुक्मराँ तक 
ख़ुदी को यारो तुम अख़बार कर लो।
     ग़रीबों का शोषण भी इनके सृजन में नजर आता हैं । देखिए ये पंक्तियां जो इनकी क़लम ने शोषण के विरुद्ध दुख जताते हुए लिखा  है......  
ग़रीबी होती क्या यह बात साहूकार क्या जाने 
लहू मुफ़लिस का बहता है यह ठेकेदार क्या जाने 
दिखाती  मुफ़लिसी है ज़िंदगी में रंग बहुतेरे
अभावों में यह मुफ़लिस जीता है सरकार क्या जाने 
सिवा नफ़रत के उसने ज़िंदगी में कुछ नहीं पाया 
सताया जिसको अपनों ने भला वो प्यार किया जाने
  सियासतदाँ और सरकारों को चेताते हुए इनकी क़लम ने शोषण की नफ़्स के दर्द को इस तरह अपने शे'रों में बयाँ किया है........
(1)युवाओं में उठी है लह्र, अब देखो बग़ावत की 
समझ में आ गई हैं सबको यह चालें सियासत की 
किये वादे सभी झूठे नहीं पूरा किया इक भी 
ग़रीबों पर नज़र डाली नहीं तुमने इनायत की
नहीं पड़ता कभी भी फ़र्क़ नेताओं-अमीरों को 
पिसा तो सिर्फ़ मुफ़लिस है बढ़ी महंगाई शिद्दत की।
(2) देखा अपनों को पराया हमने जब होते हुए
नफ़रतों के दौर में जीते रहे सहमे हुए
अब बचेंगी अस्मतें अबलाओं की इस दौर में 
देखा नेताओं को ये भाषण यहाँ देते हुए 
आएँगे अब दिन ख़ुशी के ख़ुशनुमा होगा चमन 
यह सियासत को दिलासा देखा है देते हुए
      इनकी  ग़ज़लों में देश प्रेम और सौहार्द की भावनाएं भी  शिद्दत से रेखांकित की गई हैं। देखिए इन भावों से आप्लावित सृजन की ये पंक्तियां.............
भारत वतन है प्यारा रश्क़-ए जिनाँ हमारा 
गुलशन के फूल हम हैं यह बाग़वाँ हमारा 
यह चाँद और तारे रौनक़ हैं इस ज़मीं की 
इनसे ही जगमगाता है आसमाँ हमारा 
हमको नहीं सिखाता मज़हब कोई झगड़ना 
*सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा*
जब प्यार की जलेगी हर दिल में शम'अ यारो
हो जाएगा यूँ रौशन यह गुलिस्ताँ हमारा 
इल्म की दौलत ही इनकी नज़र में सबसे महत्वपूर्ण है और क़ीमती भी। इनको जो इल्म मिला उसके लिए रब का शुक्रिया करते हुए लिखती हैं..............
मिली इल्म की दौलतें मुझको यारब
ख़ुदारा ये मुझ पर तेरा ही करम है 
ज़माना करे चाहे कितने सितम अब 
जो क़ुव्वत मुझे दी वो मेरी क़लम है ।
 
 इनका ग़ज़ल संग्रह "शम'अ- ए- फ़रोज़ाँ" गुफ़्तगू प्रकाशन  प्रयागराज (इलाहाबाद) से
वर्ष 2023 में प्रकाशित हुआ है। इसमें लिखी 111 ग़ज़लें इन्हीं विषयों पर आधारित हैं।
अध्यापन कार्य करने के 20 साल इनकी रुचि शायरी की ओर होने लगी और यह शेर लिखने लगी। इन्होंने उर्दू- हिंदी के शायर चंद्र स्वरूप  बिसारिया के मार्गदर्शन से बह्र में ग़ज़ल लिखना सीखा।  उर्दू शायरी के उस्ताद समर कबीर से "इस्लाह-ए- सुखन" से बेहतरीन इस्लाह मिली। इलाहाबाद प्रयाग की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था 'गुफ़्तगू' द्वारा वर्ष 2021 में 'सदी के मशहूर ग़ज़लकार' नामक पुस्तक में ग़ज़लें प्रकाशित हुई। इनकी बेहतरीन ग़ज़लें लिए एक और ग़ज़ल संग्रह प्रकाशन की तैयारी में है।
परिचय
हर रंग में रंगी करीब 300 ग़ज़लें लिख चुकी
शमा 'फ़िरोज़' का जन्म 13 जुलाई 1962 को कोटा में हुआ। इन्होंने विवाह के पश्चस्त गृहस्थ संघर्ष के बीच हिंदी विषय में एमए, बीएड तथा उर्दू (मोअल्लिम) की तालीम प्राप्त की। वर्ष 1978 से लेखन शुरू किया और अब ग़ज़ल लेखन को जीवन का ध्येय बना लिया है। आपकी रचनाएं  साझा संकलनों,अनेक राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं सहित सोशल मीडिया मंचों से नियमित प्रकाशित होती हैं। आपको "अकबर इलाहाबादी स्मृति सम्मान", "फ़िराक़ गोरखपुरी" सम्मान एवं "प्रिंसेस शायरा 2024", सम्मान जैसे महत्वपूर्ण सम्मानों के साथ विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाना सृजन की कामयाबी की कहानी कहता है।


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