नई दिल्ली / उदयपुर | संविदा कार्मिकों के हक में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है और राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर द्वारा वर्ष 2018 में पारित आदेश को बरकरार रखा है। यह मामला उदयपुर जिला परिषद् में कार्यरत एमआईएस मैनेजर परिन रावल से जुड़ा है, जिन्होंने “समान कार्य के लिए समान वेतन” की मांग को लेकर लंबी न्यायिक लड़ाई लड़ी थी।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
वर्ष 2018 में परिन रावल ने राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर में एक सिविल रिट याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने यह मांग की थी कि वे जिला परिषद् में प्रोग्रामर के कार्य कर रहे हैं, अतः उन्हें प्रोग्रामर के पद के समकक्ष वेतन दिया जाए। उन्होंने तर्क दिया कि उनका कार्य, जिम्मेदारी और दक्षता किसी भी स्थायी प्रोग्रामर के समान है, परंतु वेतन में भारी असमानता है।
इस याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरुण भंसाली ने उनकी बातों को मानते हुए 14 नवंबर 2018 को आदेश पारित किया कि परिन रावल को प्रोग्रामर के समकक्ष वेतन दिया जाए। यह निर्णय “समान कार्य के लिए समान वेतन” के सिद्धांत को मजबूती प्रदान करता है।
राजस्थान सरकार की आपत्ति और आगे की कार्यवाही:
राज्य सरकार इस निर्णय से संतुष्ट नहीं थी और उसने हाईकोर्ट की डबल बेंच में पुनरावलोकन याचिका दायर की। परंतु वहां भी उसे निराशा हाथ लगी, जब जोधपुर हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री इन्द्रजीत महंती एवं न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने सिंगल बेंच के आदेश को सही ठहराते हुए सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
इसके बावजूद, सरकार ने मामले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। राजस्थान सरकार बनाम परिन रावल शीर्षक से दायर विशेष अनुमति याचिका में सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय को रद्द करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला:
सुप्रीम कोर्ट में परिन रावल का पक्ष अधिवक्ता श्री राहुल त्रिवेदी एवं श्री प्रबोध कुमार द्वारा प्रभावी ढंग से रखा गया। न्यायमूर्ति पमिदिघन्तम श्री नरसिंहा एवं जयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई के पश्चात राजस्थान सरकार की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट जोधपुर के आदेश को अंतिम और मान्य घोषित कर दिया।
न्याय की जीत और संविदा कर्मचारियों में उत्साह:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से परिन रावल को आठ वर्षों के संघर्ष के बाद न्याय मिला है। यह फैसला न केवल उनके लिए बल्कि राजस्थान के हजारों संविदा कर्मियों के लिए एक मिसाल बन गया है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि यदि कोई व्यक्ति स्थायी कर्मचारी के समान कार्य कर रहा है, तो उसे भी समान वेतन मिलने का अधिकार है, चाहे वह संविदा पर हो या अस्थायी।
अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राजस्थान हाईकोर्ट के 14.11.2018 के आदेश की पालना करे और परिन रावल को प्रोग्रामर के समकक्ष वेतन प्रदान करे। इस फैसले से संविदा कर्मचारियों में उत्साह और आत्मविश्वास का नया संचार हुआ है।