उदयपुर। सार्थक जीवन के लिए यदि अपनी दिनचर्या और आदतों में परिवर्तन की जरूरत पड़े तो उनमें पूरे मन और क्षमता से बदलाव के लिए तत्पर रहें, कभी-कभी परिस्थितियां प्रतिकूल भी होती है और उनमें यदि बदलाव संभव न हो तो उन्हें फिलहाल ज्यों का त्यों स्वीकार करने में भी कोई हर्ज नहीं है। समय की प्रतीक्षा करें।
यह बात नारायण सेवा संस्थान में निर्जला एकादशी के क्रम में त्रिदिवसीय ' अपनों से अपनी बात' कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कही। कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रान्तों से आए दिव्यांग एवं उनके परिजन उपस्थित थे।
अग्रवाल ने भारतीय संस्कृति व दर्शन को विश्व में सर्वोपरि बताते हुए कहा कि 'परिवार' की जिस तरह की अवधारणा यहां है, वैसी कहीं नहीं। अग्नि के सात फेरे लेकर सात जन्म परस्पर एक- दूसरे का जीवन भर साथ निभाने की परम्परा अन्यत्र कहीं नहीं है । उन्होंने कहा कि व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से कमजोर हो सकता है, लेकिन मन से नहीं। दिव्यांगजन भी अपने मन को मजबूत बनाएं रखे तो समस्याएं स्वतः हल होती जाएंगी। जीवन को संवारने के लिए स्वयं प्रयास करने होंगे। ईश्वर में विश्वास रखते हुए भूत- भविष्य की चिंता त्याग कर वर्तमान में जिएं। अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचाने और निखारें। अपना लक्ष्य तय करें, चाहे वहां तक पहुंचने में कितना भी समय लगे, धैर्य रखें । कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती।
कार्यक्रम में यूपी-गाजीपुर से नीलम गुप्ता, पर्व कुमार, महाराष्ट्र - गणेशपुर की सीमा, गणेश पारगी और एमपी - छतरपुर की राशि कुमारी ने अपने साथ हुए हादसों व उसके बाद की समस्याओं और समाधान पर विचार साझा किया।
इस दौरान पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से आए दिव्यांगजन को मॉड्यूलर कृत्रिम हाथ-पैर व कैलीपर लगाने के साथ पोलियो सुधारात्मक सर्जरी के लिए चयनित किया जा रहा है।