खतरगच्छाधिपति मणिप्रभ सूरीश्वर महाराज आदि ठाणा का दादाबाड़ी में हुआ भव्य प्रवेश

( 1785 बार पढ़ी गयी)
Published on : 10 Jun, 25 16:06

 गुरू के मार्गदर्शन से मनुष्य के जीवन को मिलती है सही दिशाः आचार्य मणिप्रभ सूरीश्वर

खतरगच्छाधिपति मणिप्रभ सूरीश्वर महाराज आदि ठाणा का दादाबाड़ी में हुआ भव्य प्रवेश



उदयपुर। परमपूज्य खतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिन मणिप्रभ सूरीश्वर महाराज आदि ठाणा का आज दादाबाड़ी स्थित वासुपूज्य मंदिर में शोभायात्रा के रूप में बाजे गाजे के साथ मंगल प्रवेश हुआ। प्रातःकालीन वेला में आचार्यश्री सैकड़ों समाजजनों की उपस्थिति में ज्योति होटल उदियापोल से बैण्ड बाजों के साथ सूरजपोल चौराहा, चम्पालाल धर्मशाला से मेवाड़ मोटर्स की गली से होते हुए दादाबाड़ी स्थित वासुपूज्य मन्दिर पहुंचे। यहां पर मंगल प्रवेश के बाद विशेष परिधान में सजी मंगल कलशधारी महिलाओं ने गुरुवर का वन्दन किया। उसके बाद गुरूदेव मन्दिर पहुंचे, भगवान की प्रतिमाओं के  दर्शन किए और धर्मसभा में पहुंचे। वहां पर महिला मंडल की सदस्यों द्वारा मंगल गान किया गया।
धर्म सभा में समाज के प्रतिनिधियों ने आचार्यश्री से चातुर्मास 2025 उदयपुर में ही करने की विनती की। इसके बाद अध्यक्ष ने उदयपुर समाज द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किए गए सेवा कार्यों की जानकारी दी। समारोह का संचालन प्रकाश नागौरी ने किया।
इस अवसर पर आयोजित धर्म सभा में परमपूज्य खतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरीश्वर महाराज ने कहा कि जीवन में गुरु का मार्गदर्शन मिलना बहुत जरूरी है जिससे कि मनुष्य अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सके। गुरु के सानिध्य में ही आत्मा को परमात्मा बनाया जा सकता है। गुरुदेव ही पाषाण को परमात्मा बनाने का सामर्थ्य रखते हैं। हमारे पुण्योदय से ही हमारे जीवन में गुरु प्राप्त होते हैं । हमें कई साधना और तपस्या के बाद ही मोक्ष की प्राप्त होती है। हम जीवन में कई प्रकार के गुरु प्राप्त करते हैं लेकिन बिना धार्मिक गुरु की प्राप्ति के हमारा जीवन अधूरा रहता है।
आचार्य मणिप्रभ महाराज ने कहा कि उदयपुर में लगभग साढ़े तीन वर्षों बाद आना हुआ। केसरियानाथ के दर्शन करने का मन था। दस तारीख को ही आने का भाव था और दस तारीख को ही पहुंचे। उदयपुर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी अपनी अपनी परम्परा का पालन करते हैं। गुरु भक्ति का भाव तो सभी की रग रग में है। यहां की यही भक्ति भाव बार-बार हमें यहां खींच कर लाती है। हमें जीवन में जो भी मिला, जैसा भी मिला, जो भी रंग रूप मिला, गरीबी मिली या अमीरी मिली हमें स्वीकार करना है। हम जीवन निर्माण के चौराहे पर खड़े हैं, हमें अपने कदम किस और बढ़ाने हैं जहां हमें हमारी मंजिल मिल जाए। इसके लिए हमें अपने अन्तर्मन से पूछना पड़ेगा। मुझे करना क्या है, मुझे होना क्या है यह निर्णय हमें स्वयं करना है। किस दिशा में हमें कदम बढ़ाना है जिससे हमारे जीवन का कल्याण हो सकंे। हम सरल सुगम सहज भक्ति की धारा में बह जाएं, हमें ऐसा काम करना है।
आचार्य श्री ने कहा कि बांसुरी में स्वयं परमात्मा बसते हैं। वह परमात्मा के हाथों की शोभा होती है और वह भगवान श्रीकृष्ण के होंठों से लगती है। जहां दांत हैं, जहां गांठ है, उसमें मिठास नहीं, उसमें रस नहीं। बासूरी के दांत नहीं होते इसीलिए वह सुरीली होती है। गन्ने में भी जहां गांठें होती है वहां न रस होता है न मिठास होती है। हमें अपने जीवन से भी किसी के भी प्रति लगी मनमुटाव या नाराजगी की गांठें खोलने का काम करना है। जहां गांठें होती है वह समाज कभी प्रगति नहीं कर सकता। हमें गांठें खोलने का काम करना है। इस अवसर पर मयुखप्रभ म.सा. एवं साध्वीश्री अमितगुणाश्रीजी ने भी प्रवचन दिये। कार्यक्रम में ट्रस्टी एंव अध्यक्ष राज लोढ़़ा, सचिव दलपत दोशी, सहित पूरी कार्यकारिणी के सदस्य मौजूद थे।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.