बहु-आयामी व्यक्तित्व के धनी राम स्वरूप मूंदड़ा जी साहित्य जगत का जाना- पहचाना नाम है। जिनके अब तक चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।आप अनेक कृतियों का संपादन कर चुके हैं। पुस्तकों पर भूमिका लेखन व समीक्षाएं लिख चुके हैं । अनेक पुरस्कारों से सुशोभित तथा देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। सबसे बड़ी बात है उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी आपकी जिजीविषा अद्भुत है, जो निरंतर आपको कुछ नया सृजन करने को प्रेरित करती रहती है।
भूमिका लेखन में डाक्टर लक्ष्मण लाल योगी (सेवा निवृत कालेज प्रिंसिपल, बूंदी, राजस्थान )लिखते हैं -मूंदडा जी की कविताओं में समकालीनता, तात्कालिकता और परिस्थितियों की गहरी समझ दृष्टिगोचर होती है। उनकी लेखनी में अन्तर्दृष्टि और बाह्य दृष्टि का सम्यक सहयोग है। उनका कवित्व बुद्धत्व की ओर अग्रसर है -
"मेरा प्रवेश अन्दर हो चुका है।"
छंद मुक्त होने पर भी कविताएं पाठक को बांधे रखती हैं और सोचने पर बाध्य करतीं हैं कि क्या संसार बस उतना ही है ;जितना दिखता है, या उसके पीछे का तत्व बहुत गहन गंभीर है।
"आंखें अंदर भी देखती हैं "
"मेरी आस्था आज भी डावांडोल नहीं है। मैं कटिबद्ध हूं "
"अलार्म का अंतर" कविता का भाव सौन्दर्य और सम्प्रेषणीयता देखिए -
"एक अलार्म है
गहरी नींद से
तोड़ने का।
दूसरा अलार्म है
गहरी नींद से
जोड़ने का।"पृष्ठ संख्या 131
सांसारिक व्यस्तताओं के बीच भी आप कैसे ध्यान मग्न हो सकते हैं, परमात्मा से जुड़ सकते हैं। संत परम्परा के उपदेशों को आत्मसात करने वाला व्यक्ति ही ऐसा वक्तव्य दे सकता है।
"खुला रहने दो रोशनदान!"कविता में जीवन के प्रति असीम विश्वास और जीवंतता का निदर्शन कराती पंक्तियां -
"मैं एक छोटा ही सही
वह कण हूं,
जिसने सूरज को
हर दिन जिया है
चांदनी को
हर रात पिया है ।"पृष्ठ संख्या 25
"संकेत"। कविता में अदृश्य शक्ति प्राणों में संचार कर प्राणी को कर्तृत्व से युक्त करती है और उसके माध्यम से अपने होने का संकेत करती है-
"कौन है
ये मेरे भीतर
छटपटाता
निकलने को बाहर आतुर
कलम को
उठाता है
हाथ
और वह
अक्षर -रेखाओं पर
छोड़ जाता है
अपने पद चिह्न।"पृष्ठ संख्या 27
दार्शनिक कविताओं में "मौन आवाजेगा,अक्षर की वसीयत, पंख और उजाला,खुला रहने दो रोशनदान, आंखें अंदर भी देखती हैं, अलार्म का अंतर, जैसी अत्यन्त मर्मस्पर्शी रचनाएं हैं।
प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत कवि कह उठते हैं कि संसार में सौंदर्य सर्वत्र विद्यमान है, बस आपमें जिज्ञासा वृत्ति होनी चाहिए। प्रकृति स्वत: अपने रहस्य को उद्घाटित कर देगी -
"द्वार पर तेरे सुबह आई हुई है।
भास्कर की यह छटा सबसे निराली,
मुक्त मन से सप्त रंगी फैलती किरणें रिझाएं।।
खोलना तुझको पड़ेगा द्वार अपना।"
परंतु यह ज्ञान सद्गुरु की कृपा के बिना संभव नहीं -
" ज्ञान पाना है गुरु को खोजना तुमको पड़ेगा ---------- तत्व दर्शी ज्ञानियों के पास जाकर के समझना।। पृष्ठ संख्या 26
वहीं संसार के संबंधों और बाह्य पक्षों पर व्यंग्यात्मक कथन करते हुए वे लिखते हैं -ज्योतिषी जी एक बार आपने लिखा था- "तुम्हारे जीवन में ,
जब टूटन आएगी ।
तब आएगी एक लड़की ,
अथवा महिला भी हो सकती है।
और बचा लेगी तुम्हें ,
मीरा की तरह।
न वह लड़की आई!
न महिला ही कोई।
मैं रोज ज़हर पीता हूं ।
आने वाले काल में ,
सब गड्ड -मड्ड होने वाला है ।
भविष्य कैसा होगा? ज़रा बानगी देखिए -
"हर कोई होगा नकली
जो खाओगे वह होगा मिलावटी
जिसे चाहोगे वह होगा बनावटी
जिसे लाओगे वह होगा दिखावटी।"पृष्ठ संख्या 124
वर्तमान समाज और समय कैसा आ गया है!कवि अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखता है -
"इस बुरे दौर में,
हताशा पकड़ रही है ,
हाथ कुंठा का ।
भय बुला रहा है मूल्यहीनता को ,
अपने पास,
घड़ी के पेंडुलम की तरह
लटकी ,
आदर्शहीनता,
उद्घाटित कर रही है
समय का चरम रूप!!"पृष्ठ संख्या 125
अतीत की स्मृतियां कैसे जीवंत हो उठतीं हैं बालकों को देखकर। जब वे प्रतीक्षारत बच्चों की आंखों को टकटकी लगाए दरवाजे पर देखते हैं -
"शाम चौखट पर ,
प्रतीक्षित रहतीं हैं आंखें।
आज आएंगे अनार,टाफी ,
बिस्कुट चाकलेट।
घोड़ी बनने के
याद करता हूं दिन।
किट -किट चलते हैं पिता।
कालीन सिमट जाती है।
मम्मी मुस्कुराती हैं।
याद आते हैं पिता।" पृष्ठ संख्या 23
अंततः कहना चाहूंगी कवि का दृष्टिकोण जीवन के प्रति सकारात्मक, आशावादी, उत्साह से पूर्ण है।
आत्मकथ्य में वे लिखते हैं- "जीवन बहुत खूबसूरत है ।"
जीवन के संघर्षों से जो स्थितियां निर्मित हुईं, वे ही कविता बनकर कागज़ पर उतर आईं। "हाइकू सम्राट के रूप में जाने जाने वाले मूंदड़ा जी जीवन के विविध पक्षों में संतुलन बनाकर चलते हैं और दार्शनिक दृष्टि से संसार को देखते हुए अपने कर्त्तव्य का निर्धारण करते हैं। इस पुस्तक में आपकी कुल 83कविताएं संकलित हैं, जो समय-समय पर अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं वहीं कुछ नई कविताएं भी हैं।
उनका यह संकलन निश्चित ही विद्वानों के बीच अपना स्थान बना सकेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। आप शतायु होकर अपनी लेखनी से युवाओं का मार्गदर्शन करते रहें। अनन्त शुभकामनाएं।