भारतीय चिंतन में महिला विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

( 2221 बार पढ़ी गयी)
Published on : 15 Sep, 25 04:09

डिप्टी सीम दिया कुमारी ने किया संगोष्ठी का शुभारंभ

भारतीय चिंतन में महिला विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

- भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का गौरवशाली इतिहास, नई पीढ़ी को उससे जोड़ने जरूरत - डिप्टी सीएम दिया कुमारी
-आधुनिकता के नाम पर भारतीय मूल्यों से दूर हो रही है नई पीढ़ी - दिया कुमारी
-नारी भारतीय चिंतन की मूल भावना, केवल पूजनीय नहीं, सृजनशील शक्ति है - दिया कुमारी

उदयपुर  / भारत अपने प्राचीन काल से ही अपने दर्शन और दृष्टिकोण के माध्यम से विश्व को संदेश देता आया है, किंतु वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए आज हमें महिला विषय जैसे महत्वपूर्ण पहलू पर गहन विमर्श की आवश्यकता है। आज व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की सामूहिक चेतना के स्थान पर व्यक्तिगत स्वार्थ केंद्र में आ गया है, और वैश्विक वैचारिक प्रभावों के कारण हमारी नई पीढ़ी भ्रमित हो रही है। आधुनिकता और अधिकारों के नाम पर हमें हमारी परंपराओं और मूल्यों से दूर करने का प्रयास हो रहा है, जहाँ हमारी पीढ़ी आधुनिक उपकरणों और आभासी दुनिया में उलझती जा रही है। ऐसे समय में हमारा दायित्व है कि हम नई पीढ़ी को हमारे गौरवशाली संस्कार, परंपरा, धार्मिक मूल्य, रीति-रिवाज और पौराणिक वैभव से परिचित कराएं, और उनकी वैज्ञानिकता को भी समझाएं।
उक्त विचार रविवार को राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय एवं प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वावधान में प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में भारतीय चिंतन में महिला विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करती हुई राजस्थान सरकार की डिप्टी सीएम दिया कुमारी ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भारत का इतिहास विदुषी महिलाओं से भरा है, जिन्होंने राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रज्ञा और प्रतिभा का परिचय दिया है। त्याग, समर्पण, प्रेम, संस्कार, आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहाँ भारतीय महिलाओं की भागीदारी न रही हो। दुर्भाग्यवश वर्तमान पीढ़ी इससे कटती जा रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उन्नति के लिए हमें मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत का हस्तांतरण सुनिश्चित किया जा सके, जिसमें परिवार और महिलाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी ने सनातन संस्कृति, आध्यात्म को बढावा देने व संस्कृति को संरक्षित के लिए कई कार्य किए हैं

प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय दर्शन में महिलाओं को केवल पूजनीय नहीं, बल्कि श्रुति, स्तुति, काव्य, तर्क और स्वयं रिचा के रूप में देखा गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय महिला आदर्श शिल्पकार, अग्रणी नेतृत्वकर्ता और प्रज्ञा, आर्थिक तथा बौद्धिक शक्ति की प्रतीक रही है। चाहे प्राचीन काल हो या वर्तमान युग, भारतीय महिलाओं ने सेवा, आत्मनिर्भरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, राजनीति और समाजसेवा जैसे सभी क्षेत्रों में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय सनातन परंपराएं स्वभाव से ही प्रगतिशील रही हैं, जहाँ किसी भी कालखंड में महिलाओं की भूमिका को कम करके नहीं आंका गया। वर्तमान समय में आवश्यकता है कि इस गौरवशाली परंपरा को पुनः समाज के समक्ष लाया जाए और महिलाओं के ऐतिहासिक योगदान को सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाए।

आयोजन सचिव डाॅ. युवाराज सिंह राठौड़ ने बताया कि संगोष्ठी के मुख्य वक्ता अखिल भारतीय प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंद कुमार ने कहा कि भारत ने इतिहास में अनेक आक्रांताओं के प्रहार सहे, लेकिन भारतीय मनीषा और सांस्कृतिक चेतना ने उन्हें आत्मसात कर लिया। पश्चिमी आंदोलनों और वैचारिक हस्तक्षेपों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को विकृत कर, विशेष रूप से महिलाओं की भूमिका को लेकर भ्रम फैलाने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन सदैव से शक्ति को केंद्र में रखता है, जहाँ स्त्री को केवल पूजनीय नहीं, बल्कि सृजन, ज्ञान और चेतना का स्रोत माना गया है। यहां स्त्री-पुरुष में भेद नहीं, पूरकता का भाव है। वर्तमान समय में बाहरी प्रभावों द्वारा समाज में नारी की भूमिका को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसे में आवश्यकता है कि भारतीय समाज, विशेषकर महिलाएं, अपने गौरवशाली इतिहास और योगदान को समझें तथा इन विकृत विचारों से सजग रहें।

वक्ता डॉ कमलेश शर्मा ने भारतीय विचारधारा सृष्टि को विभाजित नहीं, एकात्मक दृष्टि से देखती है। यहां धरती को केवल संसाधन नहीं, मां के रूप में सम्मान दिया गया है। जबकि पश्चिमी सोच में भौतिक सुख और स्वार्थ पूर्ति के कारण प्रकृति से दूरी और विभाजन की भावना विकसित हुई। भारतीय चिंतन में चराचर जगत में एक ही चेतना का वास माना गया है, जिससे समग्र सृष्टि के मंगल और शाश्वत विकास की भावना प्रकट होती है। यही एकात्म भाव भारत की सांस्कृतिक विशेषता है।

अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने मीराबाई, पन्नाधाय, झांसी की रानी, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू और इंदिरा गांधी जैसे उदाहरणों के माध्यम से भारतीय चिंतन में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपराओं में नारी ने भक्ति, त्याग, सेवा और राष्ट्र निर्माण सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमारी    सांस्कृतिक विरासत में महिला शक्ति को सदैव सम्मान और नेतृत्व का स्थान मिला है। उन्होंने वर्तमान पीढ़ी से इस गौरवशाली परंपरा से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
आयोजन सचिव डाॅ. शिवानी स्वर्णकार ने एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की जानकारी देते हुए बताया कि आईब्रिड मोड पर आयोजि संगोष्ठी में 150 आॅफ लाईन व 250 से अधिक आॅन लाईन प्रतिभागियों ने भाग लिया।
समापन सत्र में पेसिफिक विवि समूह के अध्यक्ष प्रो. भगवती लाल शर्मा तथा विभिन्न तकनीकी सत्रों में प्रख्यात शिक्षाविद् एवं लेखक हनुमान सिंह राठौड, उच्च न्यायालय नई दिल्ली अधिवक्ता डाॅ. मोनिका अरोड़ा, अतिरिक्त महाधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर के डाॅ. प्रवीण खण्डेलवाल, डाॅ. अर्पिता जैन, डाॅ. खुशबू चारण, डाॅ. मेगनी राठौड़ ने भारतीय चिंतन में महिला - ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, भारत में महिला -     सांस्कृतिक संदर्भ, भारतीय महिला एवं समसामयिक चुनौतियाॅ, भारतीय ज्ञान परम्परा एवं मातृशक्ति, भारतीय चिकित्सा शास्त्र एवं मातृशक्ति, भारतीय न्याय संहिता एवं महिला, राजनीति एवं प्रशासन में महिला, महिला एवं मानवाधिकार - भारतीय दृष्टि, राजस्थान की प्रमुख मातृशक्ति, विभिन्न कालखण्डों में पाश्चात्य एवं भारतीय दृष्टिकोण में महिला चिंतन विषयों पर पर अपने विचार व्यक्त किए।






पुस्तक का हुआ विमोचन:-

समारोह में अतिथियों द्वारा भारतीय चिंतन में महिला व कुलति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत व डाॅ. चन्द्रेश छतलानी द्वारा लिखित पुस्तक पाइथन प्रोग्रामिंग का विमोचन किया गया।

संचालन डाॅ. श्रुति टंडन ने किया जबकि आभार आयोजन सवि डाॅ. युवराज सिंह राठौड़ ने जताया।

इस अवसर पर विद्या प्रचारिणी सभा के मंत्री प्रो. महेन्द्र सिंह आगरिया, डाॅ. अलका मुंदडा,  नवल सिंह जुड़, कवि अजात शत्रु,  रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डाॅ. पारस जैन, प्रो. मंजु मांडोत, डाॅ. युवराज सिंह राठौड,  डाॅ. धमेन्द्र राजौरा, प्रो. कमलेश शर्मा, डाॅ. देवीलाल गर्ग, नीरज शर्मा, डाॅ. सतीश अग्रवाल, प्रो. सरोज  गर्ग, डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. अमी राठौड, डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. अशोक सोनी, डाॅ. हरीश नरसावत, डाॅ. अंजु बेनीवाल एडवोकेट अशोक सिंघवी, डाॅ. भूरालाल श्रीमाली, डाॅ. कमल सिंह, निजी सचिव कृष्णकांत कुमावत, डाॅ. गौरव गर्ग, डाॅ. यज्ञ आमेटा, डाॅ. भारत सिंह देवडा, डाॅ. चन्द्रेश छतलानी, डाॅ. जयसिंह जोधा, डाॅ. हिम्मत सिंह चुण्डावत, डाॅ. हरीश मेनारिया, डाॅ. तिलकेश आमेटा, डाॅ. हरीश चैबीसा सहित शहर के गणमान्य नागरकि व विद्यापीठ  के डीन डायरेक्टर उपस्थित थे।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.