पुस्तक समीक्षा:प्रश्न पूछता और उत्तर देता रोचक, शिक्षाप्रद बाल उपन्यास -कहानी वाला शंख 

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Published on : 09 Nov, 25 06:11

पुस्तक समीक्षा:प्रश्न पूछता और उत्तर देता रोचक, शिक्षाप्रद बाल उपन्यास -कहानी वाला शंख 

बाल साहित्य के उत्थान के लिए निरंतर प्रयत्नशील, अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित, साहित्य की हर विधा में पारंगत प्रतिष्ठित वरिष्ठ  साहित्यकार विमला जी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। आपके बाल तथा प्रौढ़ साहित्य पर लगभग 45 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कई पुस्तकों का अंग्रेजी,असमिया,पंजाबी, गढ़वाली तथा उड़िया भाषा में अनुवाद हो चुका है। उनकी कुछ बाल कहानियाँ पाठय पुस्तकों में शामिल हैं। उनकी सहज़, सरल भाषा में लिखी कथोपकथन शैली न केवल बच्चों को वरन बड़ों का भी मन मोह लेती है।

प्रसिद्ध बाल साहित्यकार विमला भंडारी जी का ‘कहानी वाला शंख’ उपन्यास पढ़ते हुए मुझे अनायास विक्रम बैताल की कहानियाँ याद आ गईं। जिस तरह हर कहानी के अंत में बैताल, विक्रम से प्रश्न पूछता है तथा उचित उत्तर पाकर पुनः पेड़ पर जाकर बैठ जाता है ठीक उसी तरह विमला जी के इस बाल उपन्यास  ‘कहानी वाला शंख’ में शंख, चाचा जमालुद्दीन को कहानी सुनाकर उनसे प्रश्न पूछता है तथा ठीक होने पर एक महीने पश्चात् पुनः आने के लिए कहता है। इस संग्रह में 14 कहानियाँ हैं जो बच्चों को हिन्दी पंचांग के महीनों, उन महीनों के मौसम के बारे में जानकारी भी देती हैं। 

बच्चों के नाम कहानी सुनाने वाले शंख की ओर से पैगाम में विमला जी कहती हैं -
इस पुस्तक के पन्नों में छिपे हैं
हंसी और रहस्य के पल
सोचने और समझने की बातें 
और सबसे जरूरी-तुम्हारे दिल से जुड़े सवाल।
 
‘चाचा जमालुद्दीन कलई वाला’ में वह चाचा जमालुद्दीन उनके शंख के साथ उनके व्यवसाय बर्तनों पर कलई चढ़ाने के काम के साथ, यह भी बताती हैं कि पुराने समय में हर घर में पीतल के बर्तन हुआ करते थे। उन पर कलई करवाने पर वे बर्तन चांदी जैसे चमकने लगते थे।

 ‘जंगल, प्यास और  शंख की कहानी’ में लेखिका शंख से उनके मिलने तथा हर महीने उससे 12 महीनों में 12 कहानी सुनाने के जाल में फंसने की बात बताते हुए शंख के द्वारा पहली आषाढ़ मास की कहानी ‘जिम्मी और बन्दर’ चाचा जमालुद्दीन   सुनवाती हैं।

जिम्मी के बारे में वह कहती हैं उसे शॉर्टकट से जाना अच्छा लगता था। रास्ते की बाधाएं उसके लिए खेल और रोमांच जैसी थीं। एक दिन उसके मार्ग में बन्दर आ गया। जिम्मी उससे डर कर भागी या साहस से समस्या का समाधान किया। वास्तविकता और धोखे में क्या अंतर है? शंख के इस प्रश्न का चाचा जमालुद्दीन द्वारा दिए उत्तर को जानने के लिए, इस रोचक कहानी को पढ़ना ही चाहिए।

श्रावण मास की दूसरी कहानी है ‘टोनी की बरसाती छुट्टी’  -शहर का नाम छपछपपुर। नाम से ही समझ लो, वहां बारिश ऐसे गिरती थी जैसे बादलों में टपकने की होड़ लगी हो। नालियाँ इतनी चतुर थीं कि बारिश के साथ रेस लगाती थीं, जहाँ गड्ढा मिला वहीं अपना झरना खोल देती थीं।-पेज 18 
गोलू और उसके बैग टोनी के माध्यम से बारिश से बचने के लिए के लिए रैनकोट के महत्व को लेखिका ने बच्चों को बताया है।

भाद्रपद मास की कहानी ‘तेजा की यात्रा’ के द्वारा नागौर जिले के खरनाल में स्थित लोकदेवता तेजा जी, के दर्शन को जाते जत्थे के बारे में बताते हुए विमला जी बच्चों को समझाती हैं कि साहस और समझ से इंसान बाधाओं को पार कर सकता है। इसके साथ ही यह उल्लेख भी किया है कि भाद्रपद मास में बिलों में पानी भर जाने के कारण सांप अधिक निकलते हैं अतः सतर्क रहना आवश्यक है।

आश्विन मास की कहानी ‘झूले वाली टहनी’ के द्वारा बरसात, झूला तथा सावधानी की बात बताते हुए विमला जी कहानी के माध्यम से बच्चों को बताती  हैं कि असली बहादुर वही होता है जो बड़ों की सलाह मानते हुए, मजा लेते हुए समझदारी से खेले। वे आषाढ़ श्रावण, भाद्रपद, अश्विन को बरसात के चार महीने बताते हुए उनसे जुड़ी कहानी कहती हैं।

कार्तिक मास की कहानी दीपावली, गधा, बाइक नाटक और मंच के द्वारा लेखिका बाइक के आने पर गधे की व्यथा उकेरती हुई कहती है - अक्सर ऐसा होता है कि कभी -कभी इंसान रिश्तों को पुराने जूते की तरह समझ लेता है, ज़ब तक जरूरत हो पहनो, फिर कोने में ऱख दो।  लेकिन असली रिश्ता वही होता है जो जरूरत के बिना भी साथ चले। पेज- 36
यह कहानी सीख देती है कि कुछ रिश्ते पहियों से नहीं, भरोसे से चलते हैं।

मार्गशीर्ष मास की कहानी ‘अँधेरे में बुद्धि की रोशनी’ की शुरुआत करते हुए वह कहती हैं -मार्गशीर्ष आते ही गुलाबी सर्दी प्रारम्भ हो गई थी। रातें लम्बी और दिन छोटे होने लगे थे। इस कहानी में तीव्र बुद्धि और जिज्ञासु स्वभाव वाले बीदा ने ज़ब बेधशाला के उपकरणों का अपनी तीव्र बुद्धि से पता लगा लिया तो शंख ने चाचा जमालुद्दीन से पूछा-”चाचा जमालुद्दीन क्या कभी डर के अँधेरे में सोचने की शक्ति भी खो जाती है? तब हम बुद्धि की रौशनी कैसे जलाएं?”
“हे शंख डर एक धुंध है, जो हमारे भीतर के रास्तों को ढँक देती है। लेकिन ज़ब सवाल दिल में हो, तो दिमाग़ जवाब ढूंढना नहीं छोड़ता। डर से लड़ने का सबसे आसान तरीका है -एक छोटा सा कदम सही दिशा में, जैसे बीदा ने उठाया था। बस पहला कदम उठाओ, अंधेरा खुद पीछे हट जाता है। बुद्धि की रोशनी भीतर से निकलती है, ज़ब तुम उसे बंद नहीं करते।” पेज -41 

पौष माह की ठिठुराने वाली सर्दी के बारे में बताते हुए ‘चिड़िया के चार प्रश्न’ पलायन करते लोगों के छूटे घर, उनकी यादें पर लिखी बेहद मार्मिक अनेकों प्रश्नों से मनमस्तिष्क को मथती कहानी है। इस कहानी में शंख चाचा जमालुद्दीन से पूछता है - “चाचा जमालुद्दीन!ज़ब कोई गाँव चुप हो जाये, तहखाने में यादें बंद हो जाएं, बच्चे मोबाइल में खो जाएं तब क्या वक्त सच में पीछे नहीं लौट सकता? क्या चिड़िया के बीज कभी अंकुर बन पाएंगे?”
“सुनो शंख वक्त कभी पीछे नहीं लौटता लेकिन इंसान लौट सकता है। चिड़िया ने जो बीज बोए, वे बीज समय के नहीं समझदारी के हैं। जब कोई बच्चा उन बीजों को सींचेगा किसी संदूक को फिर से खोलेगा किसी वायलन को नया तार देगा, किसी हवेली को फिर से घर बनाएगा तब गांव जगेगा। तहखाना रोशनी से भर जाएगा और बूढ़े पीपल की जड़ें मुस्कुराएंगी।”
वे फिर बोले, “हम सबके भीतर एक छोटा  तहखाना होता है उसमें कहानियाँ है, रिश्ते हैं, मिट्टी की गंध है। अगर हम उसे रोज थोड़ा-थोड़ा खोले तो गांव कभी नहीं मरेगा… गांव कभी नहीं मरता वह सिर्फ इंतजार करता है।”पेज -45 
रिश्तों में आती संवेदनहीनता को बताती बेहद मर्मस्पर्शी कहानी है। बच्चे बड़े अगर इस इस कहानी में दिए प्रश्नों के साथ उत्तर को आत्मसात कर लें तो जीवन में  अवश्य सुधार आएगा।

माघ मास की सर्दी की धुंधली सुबह, देश की सीमाओं के निकट पहाड़ी पर बना गाँव। “कोई भी दरवाजा अगर एक ओर बंद हो तो दूसरी ओर खुल भी सकता है।” कहकर आतंकी को इंसान बनने की प्रेरणा देती नन्हीं अनन्या। अगर किसी में पछतावा और स्वयं को बदलने की इच्छा है तो अपराधी अपराध छोड़, नई जिंदगी की ओर अग्रसर हो सकता है। अच्छी कहानी।

फाल्गुन मास का वर्णन करते हुए मौसम में आते परिवर्तन के बारे ‘गोलू कि बातें’ कहानी के द्वारा लेखिका बच्चों को बताती हैं -सर्दी में ठिठुरे पेड़ों के पत्ते झड़कर टूट चुके थे। बदले मौसम की दस्तक के साथ नंगे खड़े पेड़ों से नन्हीं कोपलें फूटने लगी थी, नये वस्त्र पहनने के लिए, उन्हें फाल्गुन मास का तथा बसंत ऋतु का स्वागत जो करना था। 
इस ऋतु के बारे में लेखिका ग्रेसी बिल्ली मम्मी और उसके नन्हें बच्चे गोलू के द्वारा सपनों की सैर, धूप, तितली, फूल के बारे में बताती हुई यह शिक्षा देती हैं कि दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह माँ की गोद होती है।

चैत्र मास की कहानी ‘अन्वी और बोलता हुआ रिबन’ कहानी का प्रारम्भ लेखिका यह कहकर करती हैं कि प्रकृति अपना उत्सव चैत्र मास के महीने में मनाती है क्योंकि यह मास हिन्दी कैलेंडर का नव वर्ष है। ‘अन्वी और बोलते रिबन’ कहानी द्वारा बच्चों को सन्देश देती हैं कि स्वयं को श्रेष्ठ मानने की भावना को त्याग कर ही हम अच्छे इंसान बन सकते हैं।

बैशाख मास में मौसम खुशनुमा रहता है तो वहीं परीक्षा के परिणाम का भी। ‘शाबास पल्ल्वी’ कहानी में पल्लवी के मन में बोर्ड की  परीक्षा में टॉप करने के कारण श्रेष्ठता का बोध आ गया था। ऐसा क्या हुआ जिससे उसकी आंखों पर पड़ी पट्टी हट गई। चाचा जमालुद्दीन ने शंख के प्रश्न पर कहा, जो कहानी का सार हैं -अगर किसी की आँखों में श्रेष्ठता के बोध के कारण मैं से हटकर हम दिखाई देने लग जाये तब वह सच्चा टॉपर बन जाता है।

जेठ माह की कहानी ‘साइकिल की आत्मकथा’ में लेखिका कहती हैं कि तपती दोपहरी लेकर आता है जेठ मास। धूप और भीषण गर्मी इतनी कि छाया भी पनाह मांगती है।चाचा जमालुद्दीन की शंख के पास जाने की अंतिम यात्रा थी इसलिए उन्होंने नदी का जल लाने के लिए कमण्डल भी साथ ले लिया था। साइकिल की आत्मकथा के द्वारा जहाँ विदुषी लेखिका ने साइकिल के बारे में जानकारी दी है वहीं वह यह सन्देश देना चाहती हैं कि साइकिल की  तरह जिंदगी भी सदा चलती जाती है। शंख ने शायद इसीलिए चाचा जमालुद्दीन को अपना साथी बना लिया तथा स्वयं को उसे सौंपते हुए कहा कि ज़ब भी तुम इसे बजाओगे यह कहानी सुनाएगा। 

पुस्तक का अंतिम वाक्य -इस तरह कहानी वाला शंख एक गांव से दूसरे गाँव, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक, कहानियों की ज्योत जलाता चला गया। यह इंसानी जीवन का एक शाश्वत कथन है जो कहानियों के माध्यम से अपनी सभ्यता, संस्कृति को आने वाली पीढ़ी में हस्ताँतरित करता है।

सुभद्रा पब्लिशर्स एन्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली द्वारा प्रकाशित 68 पेज वाला 225 रुपये वाला खूबसूरत चित्रों से सजा ‘कहानी वाला शंख’ बाल उपन्यास बच्चों के मन को अवश्य भायेगा। विमला जी उनके  बालोपयोगी बाल कहानी संग्रह के लिए एक बार पुनः बधाई।

समीक्षक
सुधा आदेश
बेंगलुरु ( कर्नाटक )


साभार :


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