साहित्यकार शिखा अग्रवाल ने रखा अनुवाद विधा में कदम

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Published on : 19 Nov, 25 16:11

 "विदेश प्रवास और हिन्दी सेवा" कृति का किया अंग्रेजी में अनुवाद

साहित्यकार शिखा अग्रवाल ने रखा अनुवाद विधा में कदम

 

 कोटा / भीलवाड़ा की साहित्यकार शिखा अग्रवाल द्वारा डॉ.अर्पणा पाण्डेय की कृति" विदेश प्रवास और हिन्दी सेवा" का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। अनुवादक  शिखा अग्रवाल का मत है कि  डॉ.अपर्णा मैडम ने अपने ढाका प्रवास के दौरान की स्मृतियों को संजो कर समाज को अपने प्रयासों की महत्वपूर्ण जानकारी दी हैं। यह कृति संस्मरण विधा में मील का पत्थर बनेगी। अंग्रेजी में अनुवाद इस कृति को दूर तक ले जाने में सफल होगा।
डॉक्टर अपर्णा पाण्डेय ने अनुवादक शिखा अग्रवाल और अनुवाद कराने और प्रकाशन में डॉ.प्रभात कुमार सिंघल का विशेष सहयोग के प्रति आभार व्यक्त किया है।
     इस कृति पर कोटा के प्रसिद्ध कथाकार और समीक्षक विजय जोशी का मत है," आपके कथन कलात्मकता लिए हुए हैं। इस कृति में आपका हिन्दी प्रेम देखने को मिलता है। आपने बाग्ला देश में हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार किया है।" 
     डॉ.अतुल चतुर्वेदी का मत है  कि यह कृति पठनीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, इसमें बोझिल बातें नहीं है, संस्मरण शब्द किसी भी घटना, यात्रा का स्मरण करना है।  संस्मरण में लेखक अतित को सजीव करने का प्रयास करता है, जिससे समाज को शिक्षा मिलती है, संस्मरण व्यक्तिपरक है। इस संस्मरण में कब उनका लेटर आया, कब आप गई, यह सब तिथि सहित बताया गया है, इससे आपको ऐसा लगे कि यह तथ्यात्मक है, इससे पाठक का विश्वास बनता है। परिवार से दूर रहकर जहाँ हिंदी भाषा का कोई महत्व नहीं है, वहाँ जहाँ जाकर हिन्दी भाषा के लिए जागृति लाना तारीफ के काबिल है, आपने वहाँ गरिमा नाम की पत्रिका भी निकाली हैं। आपने सांस्कृतिक राजदूत का कार्य बाग्लादेश में किया है। आपने दो सभ्यताओं के बीच में सेतु बनाने का कार्य किया है। यह कृति डायरी और यात्रा वर्णन की शैली में है। कथेतर गद्य की हाड़ौती अंचल में कमी थी, यह कृति उसकी कमी को पूरा करतीं है। 
 हिन्दी व राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ समीक्षक जितेन्द्र निर्मोही का मत है कि आज संवाद परम्परा टूटती जा रहीं हैं। अपर्णा जी की व्यजंनात्मक और प्रश्नात्मक शैली लाजवाब है। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् चितौड़ प्रान्त के अध्यक्ष विष्णु शर्मा हरिहर ने कहा कि  यह कृति हमें वसुधैव कुटुम्बकम की प्रेरणा प्रदान करतीं हैं । 
    कृतिकार डॉ.अर्पणा पाण्डेय कहती हैं कि मुझे वहाँ बहुत सिखने को मिला, मुझे वहाँ पढ़ाने के लिए कोई सेलेबस नहीं था, वहाँ प्रारंभ में मात्र दस विद्यार्थी थे। धीरे - धीरे वहाँ से संख्या सैकड़ों में पहुंच गई । वहाँ के लोग प्रबुद्ध है, ढाका विश्वविद्यालय में मैंने हिन्दी भाषा को पढ़ाया। मेरी दो छात्राओं को आकाशवाणी में सेवाएं प्रदान करने का अवसर मिला है। मेरा वहाँ का अनुभव बहुत अच्छा रहा है। परमात्मा ने मुझे जो लिखने की शक्ति प्रदान की है, इसलिए सदैव उनकी आभारी हूँ।


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