गीत सुहाने बचपन के : गीतों का महकता गुलदान

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Published on : 25 Nov, 25 05:11

गीत सुहाने बचपन के : गीतों का महकता गुलदान

डाॅ. विमला भंडारी द्वारा सलूम्बर, राजस्थान में स्थापित 'सलिला संस्था' बालसाहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली देश की अग्रगण्य संस्था है। यह संस्था सन् 1994 से ही अपने विभिन्न आयोजनों के माध्यम से बाल साहित्य एवम् बाल साहित्यकारों को निरन्तर प्रोत्साहित करती आ रही है। 
बालसाहित्य संस्था 'सलिला' ने वर्ष 2025 की विधा गत प्रतियोगिता के लिए बालगीत को चुना और प्रविष्टियाँ आमंत्रित की थीं। प्रतियोगिता के अन्तर्गत चयनित बाल गीतों को संस्था ने एक पुस्तक के आकार में प्रकाशित किया और पुस्तक को नाम दिया 'गीत सुहाने बचपन के'।बालगीत संग्रह 'गीत सुहाने बचपन के' प्रथम खंड में अपेक्षाकृत युवावर्ग के प्रतियोगी बाल गीतों के रचनाकारों को स्थान दिया गया है। इस खण्ड में सम्मिलित बाल साहित्यकारों के नाम हैं- यशपाल शर्मा, फहीम अहमद, नीलम मुकेश वर्मा, योगेन्द्र मौर्य, बलवीर सिंह वर्मा, अनीता गंगाधर, कन्हैयालाल साहू' अमित', भाऊराव महन्त, विनीता काबरा, नीरज शास्त्री, सिराज अहमद, राम नरेश उज्ज्वल, शादाब आलम, राजूराम बिजारणियाँ, योगिता जोशी, केदार शर्मा। साथ ही द्वितीय खंड में प्रबुद्ध बाल रचनाकारों की आमंत्रित रचनाओं को स्थान दिया गया है।द्वितीय खण्ड में सम्मिलित रचनाकार हैं - विष्णु शर्मा 'हरिहर', माणक तुलसीराम गौड़, सुरेश चन्द्र 'सर्वहारा', डाॅ. गोपाल राजगोपाल, संतोष कुमार सिंह, डाॅ. इंदु गुप्ता, डाॅ. सरिता गुप्ता, सुनीता माहेश्वरी, गोविन्द भारद्वाज, गोपाल माहेश्वरी, भगवती प्रसाद गौतम, दिविक रमेश, कुसुम अग्रवाल, चक्रधर शुक्ल, प्रकाश तातेड़, डाॅ. आर. पी. सारस्वत, राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव, रेखा लोढ़ा 'स्मित' किशोर श्रीवास्तव, डाॅ. विष्णु शास्त्री 'सरल', श्यामपलट पांडेय, बलदाऊ राम साहू, डाॅ. नागेश पांडेय 'संजय', प्रभुदयाल श्रीवास्तव, डाॅ. अंजीव 'अंजुम'। इस प्रकार 'सलिला' संस्था द्वारा नवोदित एवं स्थापित रचनाकारों के समकालीन साहित्य को प्रामाणिक रूप से सहेजने का यह स्तुत्य प्रयास किया गया है। संग्रह में इक्यावन बाल गीतों को संगृहीत किया गया है जो बच्चों के बालमन को आनन्द से आप्लावित करने के साथ ही उन्हें सहज रूप से जीवनोपयोगी सीख भी देते हैं। उदाहरण के तौर पर 'मैं इतिहास रचाऊँगी' कविता में कवि नीरज शास्त्री बालिका शिक्षा का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहते हैं - 
"पापा मुझे मँगा दो बस्ता /मैं भी पढ़ने जाऊँगी /
अ आ इ ई अक्षर पढ़कर /मैं भी नाम कमाऊँगी/
कितना अच्छा लगता है /जब भैया पुस्तक पढ़ते हैं /
मम्मी कहती पढ़ने वाले /जग में आगे बढ़ते हैं /
मैं भी पापा ! आगे बढ़कर /गीत खुशी के गाऊँगी/
पापा मुझे मँगा दो बस्ता /मैं भी पढ़ने जाऊँगी... /" (पृष्ठ 38)
        बालमन प्रकृति से ही जिज्ञासु होता है। उसका प्रश्नाकुल मन अपने आसपास के परिवेश को बड़ी उत्सुकता से देखता है। कवि योगेन्द्र मौर्य अपनी कविता 'काॅलोनी की सत्ता' में मधुमक्खी के छत्ते को लेकर बच्चे की जिज्ञासा को बड़े ही सुन्दर ढंग से व्यक्त करते हुए कहते हैं - 
"मधुमक्खी तुम आखिर कैसे /रच लेती हो छत्ता /
शिल्प गजब यह सीखी हो क्या /जाकर तुम कलकत्ता /
छत्ते में जो मीठा मधु है /ढूँढ कहाँ से लाती /
दिन में कितनी बार बताओ /फूलों पर मँडराती/
दूर - दूर तक जाती हो पर /नहीं भूलता रस्ता /
मधुमक्खी तुम आखिर कैसे /रच लेती हो छत्ता... /"(पृष्ठ 26)
       बाल साहित्य बच्चों को मनोरंजन प्रदान करता है। बच्चों के मन में खुशियों का संचार कर देना ही बाल साहित्य की सफलता की कसौटी है। शब्दों में सरल होते हुए भी ये रचनाएँ भाषा के अनुपम सौन्दर्य को प्रकट करती हैं। बाल मनोविज्ञान पर आधारित इन कविताओं का लक्ष्य बच्चों को कोई सीख देना नहीं वरन् किसी भी वस्तु की रोचक जानकारी के माध्यम से बच्चों का मन बहलाना है। कवि श्यामपलट पांडेय की कविता 'हाथी आया' इसी तरह की कविता है -
"लम्बी सूँड़ हिलाता आया /हाथी आया हाथी आया /
मस्त चाल से है वह चलता /नहीं किसी से पथ में डरता /
दाँतों को दिखलाता आया /हाथी आया हाथी आया /
बच्चे हाथी से हैं डरते /पर चढ़ने की जिद भी करते /
बिठा पीठ पर खूब घुमाया/हाथी आया हाथी आया /
पीलवान के वश में रहता /जो वह कहता हाथी करता /
तैर नदी में खूब नहाया /हाथी आया हाथी आया /" (पृष्ठ 65)
      बाल साहित्य का उद्देश्य बच्चों को खेल - खेल में नैतिक शिक्षा देना भी है। आज के बच्चे ही कल के नागरिक होंगे। बचपन से ही अच्छे संस्कारों का अंकुरण होने से आगे चलकर बच्चे मानवीय गुणों से युक्त होंगे, जिससे वे सुन्दर समाज की रचना में सहायक होंगे। डाॅ. अंजीव 'अंजुम' बालमन में उत्साह का संचार करते हुए 'हिम्मत पर विश्वास है' कविता में कहते हैं - 
"नहीं भाग्य पर नहीं कर्म पर /हिम्मत पर विश्वास है /
धरा सजाने को हम सब का /ये ही नवल प्रयास है /
सूखी तपती धरती पर /आशा-नीर बहानी है /
संकल्पों के बीज गिराकर /फसलें नई उगानी हैं /
दृढ़ता का सूरज जब जागे /सुखमय तभी प्रकाश है /
धरा सजाने को हम सब का /ये ही नवल प्रयास है /"  (पृष्ठ 69)
      पर्यावरण संरक्षण आज के समय की महती आवश्यकता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण धरती के जीवों पर अब अस्तित्व का ही संकट मँडराने लगा है। हमें प्रकृति का संरक्षण कर आने वाली पीढ़ियों के लिए यह अनमोल विरासत सहेज कर रखना है। ऐसे में बच्चों को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना आवश्यक है, जिससे कि वे आगे चलकर प्राकृतिक सौन्दर्य को बचाने में अपना योगदान दे सकें। 'पर्यावरण बचाना है' कविता में कवि भाऊराव महन्त का कहना है - 
"हम सबको आगे आना है /यदि पर्यावरण बचाना है /
सूख रहे हैं ताल - तलैया /सूख रही है गंगा - मैया /
कैसे पार करेंगे बच्चो /बोलो तब हम जीवन - नैया /
इस धरती का निर्मल पानी /बेकार न हमें बहाना है /
यदि पर्यावरण बचाना है.../" (पृष्ठ 34)
                 'गीत सुहाने बचपन के' बाल गीत संग्रह के उक्त कतिपय उदाहरणों की तरह ही इस संग्रह के शेष सभी गीत भी मनोरंजन, ज्ञान और शिक्षा से भरपूर हैं।संग्रह के सभी गीतों में फूलों - से कोमल बचपन की महक को बचाए रखने का आग्रह है। इन गीतों में बालमन की कोमल भावनाओं को बड़ी संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त किया गया है। विषय - विविधता वाले ये गीत शब्द - शब्द में कोमल भावनाओं को सँजोये हुए हैं। भाव और भाषा दोनों ही दृष्टि से ये गीत उत्कृष्ट हैं और गीत विधा की कसौटी पर खरे उतरते हैं। सभी गीतों में गीत विधा के आवश्यक तत्त्वों मुखड़ा, अंतरा और टेक के साथ ही लयबद्धता, गेयता एवम् भावप्रवणता का निर्वाह किया गया है।भाषायी सौन्दर्य से युक्त, फूलों की गन्ध से महकते ये गीत बच्चों की सुकोमल भावनाओं की रक्षा करते हुए उन्हें सहज ही जीवन - मूल्यों की सीख दे जाते हैं।ये गीत बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास में सहायक हैं।'गीत सुहाने बचपन के' गीत संग्रह की भूमिकाओं में जहाँ  श्री प्रकाश तातेड़ ने बाल गीत को 'भावनाओं का समंदर' कहा है, वहीं श्री इंजी. संतोष कुमार सिंह ने 'गीत और उसका शिल्प' विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है। डाॅ. विमला भंडारी जी ने अपने आत्मकथ्य में 'गीत सुहाने बचपन के'  बाल गीत संग्रह को ऐसे बीजों का बाग कहा है जिनसे भावी भारत की खुशबू फूटेगी।बच्चों को अपनी भाषा, संस्कृति, संस्कार और मानवीय संवेदनाओं से जोड़ने कीदृष्टि से किया गया डॉ. विमला भंडारी जी का यह नवाचार निश्चित रूप से बाल साहित्य जगत में समादृत होगा।'गीत सुहाने बचपन के' बाल गीत संग्रह के कुशल सम्पादन के लिए बालसाहित्य के उन्नयन के लिए समर्पित डॉ. विमला भंडारी जी को हार्दिक बधाई।


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