पारस हेल्थ उदयपुर ने हाई-लेवल CME में नॉन-ऑन्कोलॉजिकल इलाज में रेडिएशन की बढ़ती क्लीनिकल मांग को किया हाइलाइट

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Published on : 26 Nov, 25 08:11

पारस हेल्थ उदयपुर ने हाई-लेवल CME में नॉन-ऑन्कोलॉजिकल इलाज में रेडिएशन की बढ़ती क्लीनिकल मांग को किया हाइलाइट

एक्सपर्ट्स ने इस बात पर जोर दिया है कि कैसे प्रिसिजन रेडियोथेरेपी कैंसर के अतिरिक्त कॉम्प्लेक्स बिनाइन और फंक्शनल बीमारियों के लिए गेम चेंजर के तौर पर उभर रही है।
उदयपुरः
पारस हेल्थ उदयपुर ने अपने ऑन्को साइंसेज डिपार्टमेंट के ज़रिए नॉन-ऑन्कोलॉजिकल इंडिकेशन्स में रेडिएशन की बढ़ती भूमिका पर एक हाई-इम्पैक्ट एकेडमिक कंटिन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन (CME) सेशन को होस्ट किया। इसमें सीनियर स्पेशलिस्ट्स को नई फाइंडिंग्स (सबूत), केस के अनुभव और इलाज के रिजल्ट बताने के लिए बुलाया गया। साइंटिफिक चर्चा इस बात पर फोकस थी कि कैसे रेडियोथेरेपी, जो पारंपरिक रूप से कैंसर केयर से जुड़ी है, अब उन मरीज़ों के लिए इलाज़ के तरीके बेहतर बना रही है जिनमें कुछ बिनाइन और फंक्शनल डिसऑर्डर हैं और जो स्टैंडर्ड थेरेपी पर ठीक से रिस्पॉन्ड नहीं करते हैं।
CME ने ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया, केलोइड्स, हेटेरोटोपिक ऑसिफिकेशन, फंक्शनल डिसऑर्डर और कुछ सूजन वाली बीमारियों में रेडिएशन के नए उपयोग के बारे में पता लगाया, ताकि उन मरीज़ों के लिए अच्छे इलाज़ के तरीके मिल सके जिनके पास पहले कम इलाज़ के विकल्प होते थे।
डॉ कीर्ति शिवहरि, रेडिएशन आंकोलॉजिस्ट, पारस हेल्थ उदयपुर ने कहा, "रेडियोथेरेपी को देखने के हमारे नज़रिए में यह एक बहुत महत्वपूर्ण बदलाव है। एडवांस्ड कैंसर के इलाज के अलावा अब हम नॉन-ऑन्कोलॉजिकल मरीज़ों में दर्दनाक स्थिति से राहत दिलाने, बीमारी को दोबारा होने से रोकने और रोज़ाना के काम को बेहतर बनाने के लिए प्रिसिजन रेडिएशन का उपयोग कर रहे हैं। कई मरीजों के लिए इस तरह के प्रिसिजन रेडिएशन का उपयोग ज़िंदगी बदलने वाला हो सकता हैं क्योंकि ऐसे इलाज पारंपरिक थेरेपी से मिलना मुश्किल होता है।"
इंडियन टेरटियरी सेंटर्स के हालिया इंस्टीट्यूशनल अनुभव भी इस ट्रेंड को और मज़बूत करते हैं। लंबे समय के ऑडिट से पता चला है कि जब केलोइड एक्सिशन के बाद तुरंत पोस्टऑपरेटिव रेडियोथेरेपी की जाती है, तो बीमारी के दोबारा होने की दर काफी कम हो जाती है, जबकि भारत की केस रिपोर्ट्स में जब इलाज के तहत वोएडजुवेंट रेडिएशन शामिल किया जाता है तो हेटेरोटोपिक ऑसिफिकेशन में फंक्शनल रिकवरी देखी गई है। ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया में भी इंडियन डोसिमेट्रिक स्टडीज़ इस बात की पुष्टि करती हैं कि गामा नाइफ, साइबरनाइफ और लिनेक-बेस्ड सिस्टम्स सहित स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी प्लेटफॉर्म सुरक्षित टिश्यू बचाने के साथ हाई प्रिसिजन देते है। यह भारतीय इलाज़ के परिप्रेक्ष्य में नॉन-ऑन्कोलॉजिकल दर्द से राहत और फंक्शन को बचाने के लिए उनके बढ़ते उपयोग को सपोर्ट करते हैं।
साक्ष्य आधारित मल्टीडिसिप्लिनरी फैसले लेने पर ज़ोर देते हुए पारस हेल्थ उदयपुर में मेडिकल ऑन्कोलॉजी सर्विसेज़ के डायरेक्टर डॉ. मनोज महाजन ने कहा, "नॉन-ऑन्कोलॉजिकल सिनेरियो में रेडिएशन को कभी भी अकेले क्विक फिक्स के तौर पर नहीं देखना चाहिए। सबसे अच्छे नतीजे तब मिलते हैं जब फैसले मज़बूत क्लीनिकल साक्ष्य, मिली-जुली एक्सपर्टीज़ और पर्सनलाइज़्ड जांच के आधार पर लिए जाते हैं। टीम आधारित योजना यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि रेडिएशन का उपयोग सिर्फ़ वहीं किया जाए जहाँ यह असल में इलाज़ को बेहतर बनाता है।"
सर्जरी के नज़रिए से पारस हेल्थ उदयपुर के सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ शर्मा ने बताया, "केलोइड्स या हेटेरोटोपिक ऑसिफिकेशन जैसी बार-बार होने वाली बिनाइन बीमारियों में ऑपरेशन के बाद रेडियोथेरेपी दोबारा होने की दर को काफी कम कर सकती है। यह इलाज़ के नतीजों को स्थिर करके, काम करने की क्षमता को बनाए रखकर और लंबे समय तक आराम देकर सर्जरी को सफल बनाती है।


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