विद्यापीठ - चतुर्थ बी. एस. गर्ग व्याख्यानमाला का हुआ आयोजन

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Published on : 09 Dec, 25 06:12

प्रजातंत्र में शिक्षक की भूमिका विषय पर हुआ विचार मंथन।

विद्यापीठ - चतुर्थ बी. एस. गर्ग व्याख्यानमाला का हुआ आयोजन

राजनीति सेवा का माध्यम बने, स्वार्थ का नहीं - प्रो. वासुदेव देवनानी
राष्ट्र निर्माण और सांस्कृतिक संरक्षण में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका - प्रो. वासुदेव देवनानी
लोकतंत्र की मजबूती में शिक्षक की निर्णायक भूमिका अहम - प्रो.  कैलाश सोडाणी
लोकतांत्रिक मूल्यों के संवर्धन में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका -  प्रो.सारंगदेवोत
 

उदयपुर:   देशहित की नीति ही वास्तविक राजनीति है और इतिहास साक्षी है कि स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक शिक्षकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा कई ने अपने प्राणों की आहुति भी दी। शिक्षक प्रजातंत्र में चरित्र, गौरवशाली संस्कृति और राष्ट ªगौरव को बनाए रखने वाले सच्चे संरक्षक होते हैं। शिक्षक वह माली है, जो राष्ट्र-रूपी बगिया को जीवन मूल्यों से सींचकर उन्नति का नया मार्ग प्रशस्त करता है।
उक्त विचार सोमवार को राजस्थान विद्यापीठ  विश्वविद्यालय की ओर से प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में कीर्तिशेष बीएस गर्ग स्मृति में प्रजातंत्र में शिक्षक की भूमिका विषय पर आयोजित चतुर्थ व्याख्यानमाला में  राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवानानी ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि राजनीति सेवा का माध्यम बने, स्वार्थ का नहीं। इस क्षेत्र में शिक्षक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। शिक्षक राष्ट्र की आत्मा होते हैं, और समाज व देश में उत्पन्न चुनौतियों का समाधान भी उसी प्रकाश की किरण से निकल सकता है, जो एक शिक्षक से प्रस्फुटित होती है।
उन्होंने वर्तमान सामाजिक बहसों और असहिष्णुता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत का संविधान हमें एकता का संदेश देता है, इसलिए असहिष्णुता को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अच्छे राजनीतिज्ञ तैयार करने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों पर ही है, जो राष्ट्रगौरव की भावना और सार्थक संवादों के माध्यम से जिज्ञासुओं को सही दिशा दिखा सकते हैं। विद्यार्थियों की प्रतिभा को संवारकर प्रजातंत्र की मजबूत नींव तैयार करना भी शिक्षक का महत्वपूर्ण दायित्व है।
प्रो. देवनानी ने कहा कि तकनीकी युग में शिक्षकों को स्वयं को तकनीक से अद्यतन रखना चाहिए, ताकि वे विद्यार्थियों को तथ्यपरक, सटीक और संतुलित जानकारी प्रदान कर सकें। राजनीति को स्वार्थ नहीं, बल्कि सेवा का मिशन माना जाना चाहिए और यह सही सोच केवल शिक्षक ही दे सकते हैं। भारत की मूल विचारधारा सनातन से ही इसी भावना को पोषित करती आई है।
समारोह का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती की प्रतिमा एवं प्रो. बीएस गर्ग के चित्र पर पुष्पांजली अर्पित कर किया।

मुख्य वक्ता पुर्व कुलपति एवं राज्यपाल सलाहकार प्रो. कैलाश सोडाणी ने कहा कि लोकतंत्र को सुरक्षित रखने और उसे निरंतर मजबूती प्रदान करने के लिए शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है, जिसके लिए उनका राजनीति में आना समय की मांग बन गया है। उन्होंने राजनीति में नौकरशाहों की बढ़ती सक्रियता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे जनप्रतिनिधिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। प्रो. सोडाणी  ने बदलते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में शिक्षा जगत की चुनौतियों तथा शिक्षक की जिम्मेदारियों पर विस्तृत प्रकाश डाला। प्रो. कैलाश सोडाणी ने लोकतंत्र में शिक्षक की महत्ता पर बोलते हुए सतयुग से लेकर वर्तमान समय तक शिक्षक की भूमिका, उसके प्रभाव तथा बदलते स्वरूप का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि शिक्षक के भीतर निहित समाज के प्रति संवेदनशील सोच, मनोभाव, समस्या-समाधान क्षमता और सकारात्मक प्रगतिशील दृष्टिकोण ही देश के लोकतंत्र को सशक्त बनाए रखने का आधार है।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए व विषयप्रवर्तन पर अपनी बात रखते हुए कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि विश्वविद्यालय शिक्षा के मूल उद्देश्यों की पूर्ति के प्रति निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षक लोकतंत्र का वह सशक्त आधार है, जो कक्षा-कक्ष के माध्यम से राष्ट्र चेतना, चिंतन, जीवन-मूल्य और सामाजिक जागरूकता का बीजारोपण करता है। प्रो. सारंगदेवोत के अनुसार लोकतांत्रिक संस्कृति, संस्कार, मूल्य-बोध और ईमानदारी जैसे तत्व शिक्षक के माध्यम से ही विद्यार्थियों में विकसित होते हैं, जो आगे चलकर प्रजातंत्र की मूल भावना को मजबूती प्रदान करते हैं। यही मूल्य राष्ट्र को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए मार्गदर्शक प्रकाश का कार्य करते हैं।
उन्होंने प्रजातांत्रिक मूल्यों के संरक्षण एवं सुदृढ़ीकरण में शिक्षक की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। साथ ही उन्होंने संस्थागत दायित्वों पर भी विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षा संस्थानों का दायित्व है कि वे ऐसे वातावरण का निर्माण करें, जो विद्यार्थियों में जिम्मेदार नागरिकता और लोकतांत्रिक सोच को मजबूत करे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कुल प्रमुख एवं कुलाधिपति बी एल गुर्जर ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा और उसकी निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखने में शिक्षकों की सहभागिता अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

निजी सचिव कृष्णकांत कुमावत ने बताया कि इस अवसर पर भाजपा शहर जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड, हरीश राजानी, प्रमोद सामर, प्रो. अनिल कोठारी, राजीव गर्ग,  विजय आहुजा,  डॉ. दीपक शर्मा, रजिस्ट्रार डॉ. तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डॉ. पारस जैन, पीजीडीन प्रो. जीएम मेहता, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. मंजु मांडोत, प्रो. जीवन सिंह खरकवाल, डॉ. युवराज सिंह राठौड, डॉ. कला मुणेत, डॉ. अवनीश नागर, प्रो. गजेन्द्र माथुर, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. हेमेन्द्र चौधरी, डॉ. अमी राठौड, डॉ. रचना राठौड, डॉ. एसबी नागर, डॉ. लीली जैन, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड, डॉ. गौरव गर्ग, डॉ. सपना श्रीमाली, डॉ. गुणबाला आमेटा, डॉ. ओम पारीक,  सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्टर एवं शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
संचालन डॉ. अर्पिता मटठ्ा ने किया जबकि आभार प्रो. जीएम मेहता ने जताया।


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