भगवान् योगेश्वर श्री कृष्ण भक्ति ही सच्ची भक्ति है:- विश्व आत्मा दास, इस्कॉन जन्ममृत्यु हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाऽशुभम्। नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्

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Published on : 15 Dec, 25 06:12

भगवान् योगेश्वर श्री कृष्ण भक्ति ही सच्ची भक्ति है:- विश्व आत्मा दास, इस्कॉन जन्ममृत्यु हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाऽशुभम्। नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्

बांसवाड़ा:  जिस प्रकार मनुष्य अकेला ही जन्म लेता है, उसी प्रकार अकेले ही उसे पाप और पुण्य का फल भी भोगना पड़ता है। अकेले ही अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं अर्थात अकेले ही उसे नरक का दुख उठाना पड़ता है और अकेला ही वह मोक्ष को प्राप्त होता है।

 

उक्त विचार व्यक्त करते हुए इस्कॉन केन्द्र बांसवाड़ा द्वारा आचार्य विश्व आत्मा दास प्रभु ने गीता भागवत वितरण जन सम्पर्क अभियान के दौरान व्यक्त किए।

 

उन्होंने कहा कि मनुष्य के जन्म और मृत्यु के चक्र में उसका कोई साथ नहीं देता। वह जब जन्म लेता है तब भी अकेला होता है। जब उसकी मृत्यु होती है तब भी वह अकेला होता है।

 

 अतः बार-बार जन्म लेने और मरने के चक्र में मनुष्य को अकेले ही भागीदारी करनी होती है।

 

इस अवसर पर चंद्र कांता वैष्णव और साधिका श्रीमति रचना व्यास ने संकीर्तन भजन करते हुए 429 गीता भागवत वितरण किया।

 

जिले में विभिन्न स्थानों पर भागवत वितरण जन सम्पर्क अभियान में इस अवसर पर सुश्री खुशी त्रिवेदी, अनिता ,भारती, चैतन्य,नीरज पाठक,कृपाली भट्ट, कुशल,डिम्पल,सुनील,सुरेश नैमिष, निखिल, अरुण व्यास, अजय,रौनक,रतन,किशोर पंड्या,ओड्रिला,शिल्पा,हिमानी पाठक,अचिंत्य दृष्टि,अक्षी, दीपिका ,विभा ,अर्चना सहित अनेक साधक साधिकाओं श्रद्धालुओं ने संकीर्तन भजन करते हुए गीता भागवत के स्वाध्याय को लेकर भगवान् योगेश्वर श्री कृष्ण भावनामृत भक्ति साधना युक्त विचार व्यक्त किए।

 

केवल पुस्तकों का ही होता है जिनमें अपने अनुभवों शामिल होते हैं जिसमें क्या सीखा, क्या खोया, क्या पाया मूल्यांकन आवश्यक हैं इन सबका शांत चिंतन ही मन को परिष्कृत और आत्मा को उज्ज्वल बनाता है।

 

जो मनुष्य स्वाध्याय में स्थिर होता है उसका हर दिन पहले दिन से श्रेष्ठ बन जाता है वह संसार से नहीं भागता ।वह संसार को ज्ञान की आँख से देखना सीख लेता है।

 

भगवान् योगेश्वर श्री कृष्ण की वाणी उपनिषद् स्वाध्याय को मुक्ति का अनिवार्य द्वार बताते हैं।

 

स्वाध्याय प्रवचनाभ्यां न प्रमदित व्यम्

 

स्वाध्याय और सत्संग — इनसे कभी दूर नहीं होना चाहिए।


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