उदयपुर।महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) का 19वां दीक्षांत समारोह सोमवार को आरएनटी मेडिकल कॉलेज सभागार में गरिमामय वातावरण में आयोजित हुआ। समारोह को संबोधित करते हुए माननीय राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागडे ने फसलों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इसका दुष्प्रभाव वर्तमान पीढ़ी झेल रही है और यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।

राज्यपाल ने कहा कि प्रदेश में कैंसर रोगियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। अध्ययन और आंकड़े संकेत देते हैं कि आने वाले समय में हर आठवां व्यक्ति कैंसर से पीड़ित हो सकता है, जो बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों और विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ स्वस्थ, सुरक्षित और पोषणयुक्त कृषि प्रणाली विकसित करने पर भी ध्यान दें।
1181 उपाधियां और 44 स्वर्ण पदक वितरित
दीक्षांत समारोह में राज्यपाल एवं अतिथियों द्वारा कुल 1181 उपाधियां और 44 स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। स्वर्ण पदक प्राप्त करने में छात्राओं का पलड़ा भारी रहा, जहां 27 छात्राओं और 17 छात्रों को यह सम्मान मिला। राज्यपाल ने कहा कि यह इस बात का प्रमाण है कि अवसर मिलने पर छात्राएं हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं।
कृषि में आत्मनिर्भरता से वैश्विक नेतृत्व तक का सफर
राज्यपाल बागडे ने कहा कि 1980 तक भारत को अन्य देशों से अनाज आयात करना पड़ता था, लेकिन आज 140 करोड़ की आबादी के बावजूद देश न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि अतिरिक्त भंडार भी रखता है। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि आगामी 50–100 वर्षों की जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए उच्च उत्पादन और उच्च प्रोटीन युक्त फसल किस्मों का विकास करें।
उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने के साथ जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिसे किसानों के लिए अवसर में बदला जा सकता है।
देसी नस्लों के संरक्षण पर जोर
राज्यपाल ने कहा कि राजस्थान दूध उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है, बावजूद इसके यांत्रिक संसाधनों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ रही है। उन्होंने देसी गायों और पारंपरिक पशु नस्लों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि देसी गाय का दूध अधिक गुणकारी होता है और इसका वैज्ञानिक उपयोग किसानों की आय बढ़ा सकता है।
उन्होंने महाराणा प्रताप को स्वाधीनता का प्रथम सेनानी बताते हुए कहा कि जिनके नाम पर विश्वविद्यालय स्थापित है, उनके आदर्श युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेंगे। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह शिक्षा का अंत नहीं, बल्कि जीवन के नए अध्याय की शुरुआत है।
कृषि अनुसंधान में उपलब्धियां
राज्यपाल ने विश्वविद्यालय की अनुसंधान उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा कि यह गर्व का विषय है कि एमपीयूएटी अब तक 57 पेटेंट और डिजाइन पंजीकरण अर्जित कर चुका है, जिनमें से 8 पेटेंट हाल के वर्षों में प्राप्त हुए हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय से मौलिक अनुसंधान और विशिष्ट फसलों के पेटेंट बढ़ाने का आह्वान किया।
राष्ट्रीय तिलहन मिशन में अहम भूमिका निभाएं विश्वविद्यालय
राज्यपाल ने बताया कि प्रधानमंत्री की प्रेरणा से केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन (2024-25 से 2030-31) प्रारंभ किया गया है, जिसका उद्देश्य देश को तेलबीज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है। उन्होंने कहा कि इस मिशन की सफलता में कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका निर्णायक होगी। जैविक और प्राकृतिक खेती वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
कृषि मंत्री का युवाओं से आह्वान
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री श्री करोड़ी लाल मीणा ने कहा कि ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने कृषि स्नातकों से किसानों को समृद्ध और खुशहाल बनाने की दिशा में कार्य करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सरकार का उद्देश्य युवाओं को नौकरी खोजने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनाना है।
उन्होंने बताया कि देश का खाद्यान्न उत्पादन 2015-16 में 251.54 मिलियन टन से बढ़कर 2024-25 में 357.73 मिलियन टन हो गया है, जो कृषि क्षेत्र में तीव्र प्रगति का प्रमाण है। कृषि स्टार्ट-अप, एग्री-बिजनेस इन्क्यूबेशन, मूल्य संवर्धन और फूड प्रोसेसिंग में युवाओं के लिए अपार संभावनाएं हैं।
पांच उन्नत फसल किस्मों का लोकार्पण
समारोह के दौरान राज्यपाल द्वारा विश्वविद्यालय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित पांच उन्नत फसल किस्मों—प्रताप मूंगफली-4, प्रताप संकर मक्का-6, प्रताप ज्वार-2510, प्रताप ईसबगोल-1 एवं प्रताप असालिया-1 का लोकार्पण किया गया।
दीक्षांत अतिथि का वैश्विक दृष्टिकोण
दीक्षांत अतिथि प्रो. भगवती प्रसाद वर्मा, अध्यक्ष, यूनेस्को संचालित महात्मा गांधी शांति एवं विकास संस्थान, ने कहा कि घटती हरितिमा, लुप्त होती जैव विविधता और आधुनिक कीटनाशकों से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यदि देश उपलब्ध जल संसाधनों का समुचित उपयोग करे तो भारत विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम बन सकता है।
उन्होंने कृषि उपजों के मूल्य संवर्धन, विविध वृक्षारोपण और पारंपरिक पादप प्रजातियों के संरक्षण को समय की आवश्यकता बताया।