अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म-शताब्दी वर्ष सुशासन का सन्देश 

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Published on : 25 Dec, 25 06:12

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म-शताब्दी वर्ष सुशासन का सन्देश 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  का जन्म-शताब्दी वर्ष देश में पूरी श्रद्धा और संकल्प के साथ मनाया जा रहा है। संयोग से उनकी जयंती 25 दिसम्बर को भारत सरकार ने “सुशासन दिवस” घोषित किया है, जिसमैं अटल जी के विचारों और उनके शासन का आदर्श झलकता है।वाजपेयी जी ने हमेशा सुशासन पर ध्यान केंद्रित किया और श्रद्धांजलि के रूप में, उनकी इस विरासत को सुशासन दिवस का नाम दिया गया है।

 

प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी ने जिस सुशासन की नींव रखी, वही आज सुशासन दिवस की आत्मा है। उनके लिए शासन का अर्थ केवल सत्ता का संचालन नहीं, बल्कि आम आदमी के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना था। अटल जी के शासनकाल में पारदर्शिता, जवाबदेही और संवेदनशीलता को विशेष महत्व दिया गया।उन्होंने कहा था कि *सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन देश रहना चाहिए।* यह कथन उनकी *राष्ट्र-प्रथम* की सोच को स्पष्ट करता है। 

 

भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी जी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। अटल जी सिर्फ़ एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि अपने आप में एक संस्था थे।वाजपेयी जी ने सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में हमेशा *अटल* रह कर अपने नाम को सार्थक किया। 25 दिसम्बर 1924 को जन्मे अटल जी केवल एक कुशल राजनेता ही नहीं, बल्कि प्रखर वक्ता, संवेदनशील कवि और दूरदर्शी राष्ट्रनायक थे। अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन संघर्ष, सिद्धांत और समर्पण का प्रतीक रहा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर उन्होंने राष्ट्रसेवा का संकल्प लिया और भारतीय जनसंघ तथा बाद में भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से संसदीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने सदैव लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन किया। पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक, सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उनकी प्रतिभा और भाषा-शैली एवं वाक चातुर्य की प्रशंसा की। संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिया गया उनका भाषण आज भी भारतीय कूटनीति का गौरवशाली अध्याय माना जाता है।

 

अटल बिहारी वाजपेयी जी राष्ट्र निर्माता थे और उन्होंने भारत के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएँ शुरू की थीं। भारत को परमाणु शक्ति बनाने का उनका ही विज़न था, जिसके कारण मई 1998 में *ऑपरेशन शक्ति* अभियान सफल हुआ, जब भारत ने राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र पोखरण परीक्षणों के माध्यम से दुनिया को अपनी परमाणु क्षमताओं का अहसास कराया। वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने दुनिया को बिना बताए पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया था। इस दौरान, अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को एक नया नारा भी दिया *जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान* । इस परमाणु परीक्षण का परमाणु हथियारों वाले देशों पर गहरा असर पड़ा। हालांकि, भारत इन देशों की धमकियों और प्रतिबंधों के आगे नहीं झुका। वाजपेयी जी ने दुनिया को यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि यह एक बदला हुआ, आत्मविश्वासी और उभरता हुआ भारत है। पोखरण परमाणु परीक्षण के माध्यम से वाजपेयी जी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर किसी प्रकार का समझौता नहीं किया, वहीं लाहौर बस यात्रा और *इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत* जैसे विचारों से शांति और संवाद का संदेश भी दिया। 

 

अटल जी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में जनजातीय मामलों के मंत्रालय की स्थापना की जिसने आदिवासी समुदायों के अधिकारों, कल्याण और विकास पर ध्यान केंद्रित किया, समावेशी विकास और सबसे अलग-थलग लोगों के लिए न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का यह एक और प्रमाण था।यह वाजपेयी जी का विज़न और दूरदर्शिता ही थी, जिसके कारण छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड जैसे तीन नए राज्यों का ऐतिहासिक गठन हुआ। अटल सरकार की अनेक योजनाएँ आज भी विकास की आधारशिला मानी जाती हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने ग्रामीण भारत को शहरों और बाजारों से जोड़ा। स्वर्णिम चतुर्भुज (गोल्डन क्वाड्रिलेटरल ) प्रोजेक्ट और राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना ने देश की आर्थिक रफ्तार को नई दिशा दी। उन्होंने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग और दूरसंचार, बिजली और आधारभूत ढांचे में किए गए सुधारों से भारत 21वीं सदी की ओर तेजी से बढ़ा। उन्होंने कई अन्य परियोजनाओं जैसी बड़ी पहलों के माध्यम से सुशासन सुनिश्चित करते हुए देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया। अटल बिहारी वाजपेयीजी की महान सोच और विरासत को अब हमारे माननीय प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी बहुत कुशलता से आगे बढ़ा रहे हैं, जो भारत को विकसित भारत @ 2047 के लक्ष्य की ओर मजबूती से आगे ले जा रहे हैं।आज जब भारत अमृतकाल की ओर अग्रसर है, तब अटल बिहारी वाजपेयी का सुशासन मॉडल और अधिक प्रासंगिक हो जाता है। उनका विश्वास था कि मजबूत लोकतंत्र, सक्षम प्रशासन और जागरूक नागरिक मिलकर ही राष्ट्र को आगे बढ़ा सकते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी विरासत है और यही सुशासन का सच्चा मार्ग भी।

 

अटल जी की जन्म शती पर राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा लिखित पुस्तक  “सनातन संस्कृति की अटल दृष्टि” का मंगलवार को  उपराष्ट्रपति सी पी राधाकृष्णन ने नई दिल्ली के उप राष्ट्रपति भवन एनक्लेव में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, केन्द्रीय कृषि राज्य मन्त्री भागीरथ चौधरी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री मिलिंद मराठे उपराष्ट्रपति के सचिव अमित खरे और अन्य कई गणमान्य लोगों की उपस्थिति में लोकापर्ण किया गया है। यह कार्यक्रम समायोचित गरिमामय था।

 

आज अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म-शताब्दी वर्ष और सुशासन दिवस भारत की लोकतांत्रिक यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं। यह अवसर हमें स्मरण कराता है कि अटल जी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। राष्ट्रवाद के साथ मानवीयता, शक्ति के साथ शांति और राजनीति के साथ नैतिकता की विचारधारा उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा थे। सुशासन दिवस हमें यह संकल्प लेने का अवसर भी देता है कि हम शासन और समाज दोनों स्तरों पर ईमानदारी, पारदर्शिता और सेवा-भाव को अपनाएं।


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