अखिलेश बेगडी, कोटा
चंबल नदी की सुरम्य घाटी का प्रायः हर दृश्य मन को मोह लेने वाला है, किंतु कुछ स्थान ऐसे होते हैं जो अपनी अनूठी भौगोलिक बनावट, आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक रमणीयता के कारण रोमांच और आत्मिक शांति—दोनों का अनुभव कराते हैं। ऐसा ही एक विलक्षण और मनोहारी स्थल है रावतभाटा के निकट स्थित मेंढ़कीपाल महादेव गुफा।
प्रकृति की गोद में बसा अलौकिक परिसर चंबल की गोद में स्थित यह स्थान चारों ओर से घने जंगलों, ऊँचे पहाड़ों, नदियों, खाड़ियों, जलधाराओं और हरियाली से घिरा हुआ है। कहीं पानी के धौरे बहते हैं तो कहीं खेत-खलिहान और बाग-बगीचे ग्रामीण जीवन की सादगी को दर्शाते हैं। दूर-दूर तक फैली भैंसरोड़गढ़ की रियासतकालीन विरासत और शांत, सरल ग्रामीण जनजीवन इस क्षेत्र को एक विशेष पहचान प्रदान करता है।
स्थान और पहुँच:
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की रावतभाटा तहसील में स्थित यह गुफा मंदिर रावतभाटा शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर, बालापुरा गाँव के समीप एक विशाल पहाड़ी के मध्य अवस्थित है। गुफा तक पहुँचने के लिए पहाड़ी क्षेत्र में लगभग 500 मीटर का दुर्गम और रोमांचकारी पैदल मार्ग तय करना पड़ता है, जो श्रद्धालुओं और प्रकृति-प्रेमियों के लिए एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है।
मानसून में निखरता सौंदर्य :
मानसून के दौरान यह क्षेत्र अपने सबसे मनोहारी रूप में दिखाई देता है। जगह-जगह बहते नाले, जलधाराएँ, पहाड़ी झरने और हरियाली से आच्छादित ढलानें इस स्थल को स्वर्गीय आभा प्रदान करती हैं। हालांकि वर्षा ऋतु में पहाड़ी रास्ता चुनौतीपूर्ण हो जाता है, परंतु वही चुनौती इस यात्रा को रोमांच से भर देती है।
गुफा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
इस गुफा में भगवान शिव का प्राकृतिक रूप से स्थापित अथवा खोजा गया शिवलिंग विराजमान है, जिसे स्थानीय श्रद्धालु मेंढ़की महादेव या मेंढ़कीपाल महादेव के नाम से पूजते हैं। विशेष रूप से सोमवार को यहाँ भक्तों की संख्या बढ़ जाती है।
सावन मास में यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है तथा लड्डू, बाटी-चूरमा जैसी पारंपरिक गोठ (भोग) का आयोजन किया जाता है।
विहंगम दृश्य और जीवंत प्रकृति :
गुफा पहाड़ी के मध्य स्थित है, जहाँ से नीचे दृष्टि डालने पर चट्टानों, हरियाली और घाटियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ से चंबल नदी भैंसरोड़गढ़ पुलिया तक स्पष्ट दिखाई देती है। यह दृश्य ऐसा है जिसे शब्दों में बाँध पाना कठिन है—इसे केवल महसूस किया जा सकता है।
मानसून में गुफा के नीचे बहती जलधाराएँ, झरने और चारों ओर फैली हरियाली एक आलौकिक वातावरण रच देती हैं। भंवरों की गूंज, रंग-बिरंगी तितलियों की उड़ान, कीट-पतंगों की हलचल, झींगुरों की स्वर-लहरी और दादुरों का सामूहिक गान—ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति स्वयं उत्सव मना रही हो।
नाव से यात्रा का अनूठा अनुभव
सड़क और कच्चे रास्तों के अतिरिक्त, आसपास के ग्रामीण श्रद्धालुओं को नाव द्वारा गुफा के नीचे तक भी लाते हैं, विशेषकर बरसात के मौसम में। यह यात्रा इस स्थल को और भी यादगार बना देती है।
स्थानीय आस्था और ऐतिहासिक परंपरा
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह स्थल अत्यंत प्राचीन और पौराणिक आस्था से जुड़ा हुआ है। रियासतकाल में भी यहाँ राजपरिवारों द्वारा पूजा-अर्चना की परंपरा रही है, जो इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है।
अछूती प्रकृति का संरक्षण यद्यपि मेंढ़कीपाल महादेव गुफा स्थानीय स्तर पर भक्ति-पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र है, किंतु इसे अब तक बड़े पर्यटन मानचित्र पर शामिल नहीं किया गया है। शायद यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।
पर्यटन का अति-विकास कई बार विनाश भी लाता है, जबकि यहाँ विकास का अभाव इस स्थान को प्रकृति की दृष्टि से निर्मल, शांत और अछूता बनाए हुए है। इसी कारण यहाँ वही लोग पहुँच पाते हैं जिनमें दुर्गम मार्ग तय करने का साहस और प्रकृति से साक्षात्कार की तीव्र इच्छा होती है।
यात्रा संबंधी जानकारी :
सैलानियों को अपने वाहन बालापुरा गाँव या आसपास ही पार्क करने होते हैं। इसके बाद पहाड़ी मार्ग से पैदल चढ़ाई कर गुफा तक पहुँचा जाता है।