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गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।

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12 Jul 25
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गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरू बिन ज्ञान ना उपजै, गुरू बिन मिले न मौक्ष .....
गुरू ज्ञान ही नहीं, जिने का तरीका सीखाते है ........
मूल्यों संस्कारों के वाहक है गुरू - कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत
विद्यापीठ - गुरूओं का किया सम्मान

उदयपुर :  गुरू पुर्णिमा के पावन पर्व पर गुरूवार को राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक प्रशिक्षण महाविद्यालय के सभागार में आयोजित गुरू सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि मूल्यों व संस्कारों के वाहन है गुरू इसलिए गुरू के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरू पुर्णिमा। गुरू ज्ञान ही नहीं , जीने का तरीका सिखाते है। हम कितना भी तकनीक का उपयोग कर ले, भावात्मक ज्ञान, संस्कार, अनुभव गुरू से ही आते है। गुरू के लिए पूर्णिमा से बढकर और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरो को करा सकता है। पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति जिसमे जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंतकरण मेेें ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। उन्होने कहा कि भारतीय परम्परा में गुरु को साक्षात् भगवान की उपमा दी गई है। गुरू के बिना ज्ञान अधूरा है, गुरू किसी भी उम्र का हो सकता है जिस व्यक्ति से कोई ज्ञान या अच्छी चीज प्राप्त होती है वही हमारा गुरू हेै।  अन्धकार से प्रकाश की और ले जाने वाले गुरू ही होते है। गुरू के मार्गदर्शन के बिना हम समाज में रहना नहीं सीख पाते है। गुरू के बिना हम यह भी नहीं सीख पाते है कि समाज की बुराईयों को दूर करने में हम कैसे अपना योगदान दे सकते है। संस्कृत के प्रख्यात पण्डित वेदव्यास ने गुरू पूर्णिमा के दिन ही चारों वेदों की रचना की। हमारे जीवन में  माँ हमारी सबसे पहली गुरू होती है। गुरू अपने शिष्यों में चेतना जागृत करने का कार्य करता है।

भारतीय ज्ञान परम्परा पूरे विश्व में अद्भुत - कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर

मुख्य अतिथि कुलाधिपति एवं कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि हमारी भारतीय ज्ञान परम्परा पूरे विश्व में अद्भुत है पूरे देश में हर रोज कोई न कोई पर्व त्यौहार अवश्य ही मनाया जाता है। आज की युवा पीढ़ी हमारे से संस्कारों से दूर होती जा रही है जो चिंताजनक है उन्हें पुनः रास्ते पर लाने का काम शिक्षकों अर्थात गुरूओं का है।
प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि गुरू अपने शिष्यों में चेतना जागृत करने का कार्य करता है। समारोह में डाॅ. तिलकेश आमेटा, महेन्द्र वर्मा ने संगीतमय गुरू वंदना प्रस्तुत कर सभी भावविभोर कर दिया।
संचालन डाॅ. हरीश चैबीसा ने किया जबकि आभार डाॅ. रचना राठौड़ ने दिया।

इस अवसर पर डाॅ. रचना राठौड, डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. अमी राठौड, डाॅ. भुरालाल शर्मा, डाॅ. अमित बाहेती, डाॅ.  डाॅ. हरीश मेनारिया, डाॅ. अमित दवे, डाॅ. रोहित कुमावत, डाॅ. सुभाष पुरोहित, डाॅ. हरीश चैबीसा, डाॅ. शीतल चुग   सहित कार्यकर्ता उपस्थित थे।

दिन भर चला गुरू सम्मान का दौर:-

कुलपति सचिवालय में देर शाम तक विद्यापीठ के सभी संघटक विभागों के कार्यकर्ता, शहर के गणमान्य व्यक्तियों ने कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत का उपरणा, माला , श्रीफल देकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली, पीठ स्थविर डाॅ. कौशल नागदा, परीक्षा नियंत्रक डाॅ. पारस जैन, डाॅ. मंजु मांडोत, डाॅ. विजय दलाल, डाॅ. चन्द्रेश छतलानी, डाॅ. अपर्णा श्रीवास्तव, डाॅ. सुनिता मुर्डिया, डाॅ. ललित श्रीमाली, डाॅ. कुल शेखर व्यास, डाॅ. धमेन्द्र राजौरा,  डाॅ. युवराज सिंह राठौड़, डाॅ. नीरू राठौड, डाॅ. मनीष श्रीमाली, डाॅ.़ भारत सिंह देवडा, डाॅ. दिनेश श्रीमाली, डाॅ. प्रदीप सिंह शक्तावत, डाॅ. दिलिप चैधरी, जितेन्द्र सिंह चैहान, सहित कार्यकर्ताओं ने प्रो. सारंगदेवोत का उपरणा, माला पहना कर सम्मान किया।


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