GMCH STORIES

सावन के आगमन के साथ ही राजस्थान में तीज त्यौहारों का सिलसिला शुरु 

( Read 666 Times)

11 Jul 25
Share |
Print This Page

सावन के आगमन के साथ ही राजस्थान में तीज त्यौहारों का सिलसिला शुरु 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

सावन राजस्थान की रगों में हरियाली, संगीत और श्रद्धा भर देता है। यह केवल मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि लोकजीवन में उमंग, आस्था और सृजन का पर्व है। पारंपरिक रीति-रिवाज़ों और प्राकृतिक उत्सवों से भरा यह महीना राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को और भी समृद्ध करता है।

भारतीय पंचांग के अनुसार शुक्रवार को सावन (श्रावण) मास शुरू हो रहा है। श्रावण मास वर्षा ऋतु का प्रमुख महीना है। देवशयनी एकादशी के साथ ही भगवान विष्णु के चार महीनों तक क्षीर सागर में शयन में चले जाने के बाद यह मास भगवान शिव को समर्पित माना जाता है और आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्व रखता है। सावन का आगमन जैसे ही होता है, सम्पूर्ण राजस्थान में एक नया उल्लास और हरियाली का वातावरण फैल जाता है।सावन के आगमन के साथ ही राजस्थान में तीज त्यौहारों का सिलसिला भी शुरू  हो जाता है।

"तीज त्योहार बावड़ी ले डूबी गणगौर" यह एक राजस्थानी कहावत है । इस कहावत का अर्थ है कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू होता है और गणगौर के साथ ही यह सिलसिला थम जाता है। हरियाली तीज के बाद नाग पंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और नवरात्र जैसे बड़े त्योहार आते हैंऔर फिर गणगौर के साथ ही इन त्योहारों का समापन हो जाता है। 

राजस्थान जो सामान्यतः शुष्क और गर्म प्रदेश के रूप में जाना जाता है, वहीं सावन में हरियाली, वर्षा की फुहारें और ठंडी हवाओं से सुशोभित हो उठता है। अरावली की पहाड़ियाँ,खेत-खलिहान और गांव-ढाणी में नई जान आ जाती है।

सावन का महीना राजस्थान के किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसी महीने से खरीफ की फसलों की बुआई आरंभ होती है, विशेष रूप से बाजरा, मक्का, उड़द, मूंग जैसी फसलें। वर्षा के साथ ही सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम की शुरुआत और जल संरक्षण की प्रेरणा भी इस महीने से जुड़ी होती है।

सावन के साथ राजस्थान में लोक परंपराएँ और त्योहार की बहार आ जाती है। राजस्थान के सावन के साथ ही त्यौहारों की शुरुआत हरियाली तीज से होती है। यह पर्व सावन में महिलाओं द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। महिलाएं झूले झूलती हैं, हरी चूड़ियां, मेहंदी, हरे वस्त्र धारण करती हैं और लोकगीत गाती हैं।

कई स्थानों पर माताओ की प्रतिमाओं को झूले में विराजमान कर झुलाया जाता है। महिलाएं भी स्वयं सावन के झूलों का आनन्द लेती है।

 ‘पधारो म्हारे देस’, ‘सावन आयो रे’ जैसे नृत्य और पारंपरिक लोकगीतों की धुनें वातावरण को भिगो देती हैं।महिलाओं का मेल-मिलाप और सामूहिक गीत-संगीत देखने और सुनने लायक होता है।

झीलों की नगरी उदयपुर के ऐतिहासिक गुलाब बाग में हर सोमवार को सावन के मेले भरते है जिनका समापन पर उदयपुर की फतहसागर झील पर और ऐतिहासिक सहेलियों की बाड़ी में महिलाओं के विशेष मेले लगते है। प्रदेश के अन्य नगरों में भी ऐसे ही उत्सव होते है।

सावन में राजस्थान के शिव मंदिरों विशेषकर एकलिंगजी (उदयपुर), केदारेश्वर (बूंदी), सोमनाथ (झालावाड़), माणिक्यनाथ (बाड़मेर) आदि शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।कांवड़ यात्रा भी राजस्थान के कई जिलों में प्रमुखता से होती है। जैन साधुओं का विभिन्न शहरों और कस्बों में चातुर्मास भी सावन के साथ हो शुरू होता है।

प्रदेश के पर्वतीय और वन क्षेत्रों की शोभा भी देखने लायक होती है विशेष कर डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, उदयपुर और माउंट आबू ,कोटा,बूंदी ,झालावाड़ जैसे आदिवासी और पहाड़ी क्षेत्र सावन में अनुपम सौंदर्य से भर जाते हैं।इस मौसम में पर्यटन में भी वृद्धि होती है। राजस्थानी महल, किले, और जलमहल आकर्षण का केन्द्र बनते हैं। 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like