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ऐसा देश है मेरा/ साहित्य

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16 Apr 24
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ऐसा देश है मेरा/ साहित्य

 

छोटे छोटे सुख ढूंढे थे मैनें कई अभावों में 

आज मेरा दम घुटता है 

समय की कस्ती बाहों में 

मै आजाद पखेरू बन ,

व्योम में विचरा करती थी ।

परिवेश और संदर्भों के साथ हर रचना में कोई न कोई संदेश देने में कुशल रेणु सिंह ' राधे ' एक ऐसी रचनाकार हैं जिन्होंने 15 वर्ष उम्र में  आत्म कथ्य शैली में प्रथम उक्त कविता लिखी। आग़ाज़ से ही इनकी काव्य शैली इंगित करती है की बात निकली है तो दूर तक जायेगी। इसी रचना को आगे बढ़ाती हुई लिखती हैं.............

सावन की घनघोर घटा बन 

जमीं पर उतरा करती थी 

मोजों को भी मिली रवानी

धूप में कभी छाव में 

राते भी थी सर्द पलकों में छुपे थे सपने 

भोर साँझ ने साथ निभाया बन कर मेरे अपने 

वो सपनीली यादें भी अब छूट गए हे राहों में

मै पिजरे का पंछी बन कर 

थोड़ा हँसी ,फिर रो गई 

वहीं से दुनियां देखी और तन्हा हो गईं 

सभी हसरते घुटन बनके बदल गई है आहो में 

छोटे - छोटे सुख ढूंढे थे मैने कई अभावो में।

**  " सपने" शीर्षक से लिखी प्रथम कविता में  बैचेन मन की भावनाओं को सृजित किया है जो कभी न कभी हर स्त्री को महसूस होती है ।

बस यहीं से रुचि बनी और शुरू हो गई सृजन यात्रा की कहानी। पढ़ने के शोक ने लेखन की तरफ रुझान कर दिया। कविताओं से शुरू होकर कहानियां और उपन्यास लेखन के विषय बन गए। लेखन में मातृभाषा हिंदी को ही अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। 

एक और रचना " तेरी गलियों में "की बानगी देखिए जिसमें विरह बोध को बखूबी उजागर किया है................

तेरी गलियों में

तेरी गलियों में भटकने की आदत जो हो  गई 

मेरी तन्हाइयों में यादों की बस्ती आबाद हो गई।

सूरत में मेरी ,तेरी ही सूरत की झलक रह गई 

ग़म _ए  जिंदगी अब खुशियों की मोहताज हो गई।

सोचती हूं मैं बेबस ,लाचार , अकेली हो गई 

मा तेरी आंखों का नूर थी मै फिर तुम क्यू खो गई।

लौट आओ ना बस एक बार मेरी दुनिया में 

देखो तुम बिन तेरे बच्चों की क्या हालत हो गई।

मां सा न कोई , नहीं कोई हो सकता " राधे "

वो जन्नत थी मेरी और आज खुद जन्नत में खो गई

हालत कुछ ख़ास नहीं थे पहले भी मेरे आज से

वो दीवार थी मेरे दुखों की,वो दीवार ढह गई

**  श्रृंगार रस, विरह वेदना, भक्ति रस और सामाजिक रचनाओं के साथ साथ स्त्री विशेष, स्त्री का अस्तित्व, स्त्री का संघर्ष दर्शाती और अन्य स्वतंत्र कविताओं में कोई न कोई संदेश छुपा हुआ है। "न जा तू परदेश"रचना में नायिका अपने प्रीतम को अपने पास रखने के लिए कई तरह के जतन करती नजर आती है, "अंधों की सरकार"में आज के राजनैतिक माहौल पर कटाक्ष किया गया है,"प्रदूषण फैलाता इंसान"में आज के स्वार्थवादी इंसान को दिखाया गया है, "स्त्री होना पाप है क्या ?" कविता में स्त्री का हर किसी से यही सवाल है कि स्त्री होना पाप होता है क्या ? "मुसाफिर खाना " में जीवन की क्षण भंगुरता को दर्शाया गया है। ऐसी लगभग 700 से अधिक कविता लिखी चुकी हैं जो ऑनलाइन मंच पर हर दिन कई पाठकों द्वारा पढ़ी जाती हैं। काव्य गोष्ठियों और विभिन्न मंचों से काव्यपाठ के माध्यम से भी रचना और उनके संदेश समाज तक पहुंचते हैं। इनका प्रथम काव्य संग्रह  "रंग बदलते अल्फाज" प्रकाशन प्रक्रिया में है।

**  इनकी कहानियों की विषय वस्तु भी प्रमुखत: आस पास का परिवेश और सामाजिक कुरीतियां हैं। कहानी लेखन का सिलसिला तब से शुरू हुआ जब कक्षा 9 में इन्होंने पहली कहानी लिखी और उस पर खुश हो कर इनके चाचा जी ने इन्हें 10 रुपए का इनाम दिया। इस इनाम से इनका हौंसला बढ़ाया।

**  इनकी  कहानियों में "सौतन", "बड़े घर की बहू", "गौरी", सर पर पल्लू आदि में समाज में प्रचलित रीति रिवाजों उचित मूल्याकन किया गया है। "वो लडकी एवं औरत", " बहू " कहानियों में स्त्री बहु या बेटी से हट कर स्त्री को स्त्री मानने का संदेश दिया गया है। "गलती किसकी" कहानी में बच्चो को मिलने वाले अनुचित लाड प्यार पर सवाल किया गया है। " मिलन चंबल घाट में" दो सहेलियों का आपसी प्रेम और द्वेष दर्शाया  है। " तुम मेरे_ मगर कब तक"  प्रेम की चासनी में पगी एक प्रेम कहानी है। "मुझे मत छूना " में अपने लिए लड़ती महिला की कहानी है।

** रचनाकार की एक लघु कथा "जिंदगी..लव यू " की बानगी देखिए जिसमें केंसर से पीड़ित एक बच्चे की खुशी बांटने की मनोदशा को सिद्दत से रेखांकित कर प्रेम का संदेश दिया गया है..........

प्यारा सा बच्चा , शैतानों से भरी उसकी हरकतें, हर खेल को जी जान से जीता हुआ। हर रोज पार्क में मिलता था धीरे - धीरे मेरे बच्चों से उसकी दोस्ती हो गई। वैसे वह हर किसी का दोस्त था छोटा हो या बड़ा यहां तक कि युवा और बुजुर्ग भी उसके दोस्त थे वह हर किसी के साथ मस्त था सबको खुश रखता था और सब उसको प्यार करते थे।

पिछले कुछ दिनों से बच्चों को लेकर पार्क नहीं जा पाई । घर के कामों में ही व्यस्त थी बच्चे भी स्कूल और पढ़ाई में व्यस्त थे। वह लड़का अपने दोस्तों को ढूंढता हुआ मेरे घर आ गया पार्क ना आने का कारण पूछने लगा मैंने उससे माफी मांगी और बोला कि बस ऐसे ही आना नहीं हुआ आ जाएंगे अभी थोड़ा समय मिल जाए । इस पर वह मुस्कुराते हुए बोला यह बताइए आंटी कि जरूरी है कल हो, हो सकता है कल आप सब हो लेकिन मैं ना रहूं ।

पढ़ना बहुत जरूरी है और आपके घर के काम भी मगर थोड़ा समय खुश रहने के लिए भी निकाल लेना चाहिए और उनके लिए भी जो आपसे मिलकर खुश होते हैं। मैंने उसको बोला तुम तो बहुत समझदार हो , कहां से आई इतनी समझदारी , इस पर वह खिलखिला कर हंस दिया और बोला आप आएंगी ना ! मैंने कहा अब मैं रोज आया करूंगी तुम्हारे दोस्तों को लेकर, इस पर वह खुश होता हुआ चला गया। 

अब मैं रोज बच्चो के साथ पार्क जाती ओर वहा बच्चे अपनी मस्ती में मस्त खलते रहते ,ओर मैं अपनी सहेत बनाने में ,ऐसे ही एक साल कब निकल गया पता ही नही चला और वो बच्चा आज पार्क नहीं आया । मुझे लगा कहीं गया होगा इंतजार करते हुए चार दिन यूं ही बीत गए पर वो नहीं आया । अब रुका नहीं गया तो उसके घर चल पड़ी कदम खुद ब खुद उसके घर जल्दी पहुंच जाना चाहते थे मन में अजीब अजीब खयाल आ जा रहे थे।

उसके घर जाकर मैने आवाज लगाई ...विशु  ओ विशु । उसकी मां सुजी हुई आंखो के साथ बाहर आई उनको देखते ही मन में किसी दुर्घटना की आशंका से भर उठा । उनके साथ अंदर कदम रखते ही वहां विशु की तस्वीर पर हार चढ़ा हुआ देख कर, खुद को गिरने से बड़ी मुश्किल से  संभाल पाई। आंखो में आंसूओं की लडी लग गई । थोड़े समय बाद खुद को संभाल कर उसके मम्मी पापा को धीरज देकर इन सब का कारण पूछा उसके पापा ने बताया की विशु को पिछले तीन साल से ब्लड कैंसर था ये बात विशु को भी पता थी और वो किसी को भी ये बात बताने से मना किया करता था वो कहता कोई मुझे दया की वजह से प्यार करे ये मुझे अच्छा नहीं लगता । मैं अपनी जिंदगी को हमेशा खुश ओर दूसरो के दिलों में जगह बना हमेशा जिंदा रहना चाहता हूं । एक 12 साल की उम्र का लड़का इतनी बड़ी सोच रखता था ये जानकर मुझे बहुत गर्व हुआ उस पर और उसके मा पापा पर भी, आज एक छोटा बच्चा खुद तो चला गया पर मुझे जिंदगी जीना सिखा गया। दूर कहीं विशु का मन पसन्द गाना बज रहा था......लव यू जिंदगी...

जिंदा तो सभी हैं,

जीता कोई कोई है 

परेशानी सबके साथ है 

उसमें मुस्कुराता कोई कोई है।।।।

**  अरुंधती द रक्षक" और "सितारा," दोनों ही उपन्यासों में महिलाओं की प्रेरणा दायक कहानी है, जिनमें महिला अलग - अलग क्षेत्र में खुद को साबित करती । " नुक्कड वाला प्यार" प्रेम के साथ साथ पुनर्जन्म की दास्तान बयान करता उपन्यास है, जिस में एक साथ दो समय की कहानी चलती है जिसके 65 भाग लिखे जा चुके हैं और कुछ लिखने शेष हैं। ये सभी उपन्यास ऑन लाइन पाठकों को पढ़ने के लिए सुलभ हैं। 

** परिचय :

अपने सृजन से परिवेश और संदर्भों को मुखरित कर आशा और विश्वास के दीप प्रज्वलित करने वाली संवेदनशील रचनाकार रेणु सिंह ' राधे ' का जन्म 1 अक्टूबर 1983 को उत्तरप्रदेश में शामली के समीप सुजती गांव में पिता स्व. राम धन सिंह राठी एवं माता स्व. श्रीमती महेंद्री देवी के आंगन में हुआ। इनके पति शक्ति सिंह एक्स आर्मी मेन हैं। इन्होंने बी, ए.,बी.एड. तक शिक्षा प्राप्त की। इनकी 200 से अधिक रचनाएं विभिन्न साझा संकलनों और

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो कर आम पाठकों तक पहुंची हैं। डायरी लेखन भी किया है। लेखन कर्म को मान्यता देते हुए इन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा चार दर्जन से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया हैं। 

 संपर्क : 

4 डब्लू 19 तलवंडी, कोटा (राजस्थान)

मोबाइल : 9664467129

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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवम् पत्रकार, कोटा


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