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बाल मन को गुदगुदाती, सीख देती कविताएं

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03 Jul 25
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बाल मन को गुदगुदाती, सीख देती कविताएं

कोटा की साहित्यकार डॉ. सुशीला जोशी की पिछले दिनों आई बाल कविता संग्रह कृति " भोर के तारे" की कविताएं बाल मन की छू कर उनके दिल में सीधे उतर जाती है। कविताएं ठीक वैसे ही बच्चों को कोई न कोई ज्ञान का उजाला दे जाती हैं जैसे भोर का तारा कुछ देर रोशनी दे कर छिप जाता है। बहुत ही सरल भाषा में लिखा होना इनकी विशेषताएं हैं। हर कविता बाल मनोविज्ञान पर खरी उतरती है। कविताओं में बोलता है बाल मन। कृतिकार अच्छी तरह जानती है बच्चों को क्या पसंद आयेगा, उन्हें सरल रूप से संदेश कैसे दिया जाए, उनका मनोरंजन भी हो और जीवन में कोई न कोई पाठ भी सीखें। इन बिंदुओं पर कविता रचते समय उनका पूरा फोकस रहा है।
     कुछ कविताएं आपस में संवाद करती हैं।इन्हें पढ़ते समय बाल साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम का स्मरण हो आया जब हाल ही में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने जंगल के राजा शेर को लेकर एक संवाद कविता पाठ किया था। जितना रोचक उनका संवाद था उतना ही रोचक इन कविताओं के संवाद है।
संग्रह की कविता " पटाखे कहते हैं मुझ से" ऐसी ही कविता है जिसमें हर पटाखा संवाद करता दिखाई पड़ता है.( पृष्ठ ६२ ).......

पहले फुलझड़ी बोली " मुझसे, पतली हूँ थोड़ी कमजोर हूँ। /पर मैं हताश नहीं, उत्साह से भर कर जब में जलती। /चारों ओर रंगीन चिंगारी छोड़, /बच्चों को ताली पीटने पर ओर, हँसने पर विवश कर देती हूँ । "
"अनार भी कहाँ पीछे रहता, "आकर मुझसे बोला यूँ । हृदय में छिपा कर रखो गुण, जब अंदर से निकले गुण। / चारों तरफ खुशी सौंदर्य, की बौछारें छोड़ो तुम।"
 दीपक भी टिमाटिमाते बोला, " आज अंधेरी रात है, पर मन में हमारे उजास है, संसार को जगमगा देंगे, अंधेरे को हम दूर भगा देंगे।"
इतने में पीछे से बम फटा, " तुम मुझको क्यों भूले हो ? "ठीक है, अभी छोटे रूप में, तुम्हारे पास हूँ। / पर सीमा पर जब दुश्मन आता, बड़े धमाके हम ही तो करते।"
 धैर्य से मोमबती भी बोली " यूं सरल बनकर जलते रहो/ मिट जाओ ; पर डरो मत/ भूले भटकों की राहों में अविचल-निडर-स्थिर रहकर/ हमेशा उजाला बिखेरते रहो तुम।" 

ये हैं पटाखों की आवाज उनका संवाद जो देंते हमें जीवन संदेश। हौसलों की उड़ान भरते रहो पथ में सितारों की तरह चमकते रहो।
    बालक कोमल टहनी और कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिस सांचे में ढाले उसी में ढल जाते हैं। इस भाव को लेकर लिखी गई कविताओं में एक बानगी है " सफलता के मुक्तामणि " ( पृष्ठ ५० )........

" अपने मन में दृढ़ निश्चय करना होगा/ डाँवाडोल हृदय को रोकना होगा/ दृढ़ निश्चय के साथ अथक परिश्रम करना होगा / उसी से सफलता का अंकुर फूटेगा / अंकुर फूटेगा उसी से आत्मविश्वास जागेगा, / बस फिर आगे बढ़ने से कोई न रोकेगा/ अब काम की रूपरेखा बनानी होगी/ सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ना होगा/ बस अब मन में एकाग्रता लानी होगी " /इसके लिए अर्जुन का ध्यान करना होगा / अब काम के प्रति समर्पण लाना होगा/ मंजिल तुम्हारे सामने होगी / बस अब उत्साह के पंख फैलाओ/ और आसमान में उड़ जाओ / इस तरह दृढ़ निश्चय /अथक परिश्रम / आत्मविश्वास / रूपरेखा/ एकाग्रता/ समर्पण और उत्साह तेरे असली मोती ।"
  कृति शीर्षक कविता " तुम बनो भोर का तारा" बच्चों को भारत का भविष्य बताते हुए उन्हें मेहनत, प्रेम, समरसता से आगे बढ़ने  और एकता की मशाल जलाने का महत्व बताती है ( पृष्ठ २०)..........
    
विश्व के शान्तिदूत बनो/ भारत के सच्चे सपूत बनो /तम को हर, उजियारे बनो / बच्चों तुम भोर के तारे। मेहनत के पर्याय बनो / देश प्रति समर्पित बनो स्वार्थी न कभी तुम बनो/ बच्चो तुम भोर के तारे / उच्छंखल न तुम बनो/ प्रेम का पर्याय बनो/ कर्त्तव्य वान तुम बनो बच्चो तुम भोर के तारे/ तुम भगतसिंह, अब्दुल कलाम/ प्रतिभा को तुम्हारी सौ सौ प्रणाम/ तुमसे ही खिल रहा चमन / बच्चो तुम भोर के तारे। सभ्यता संस्कृति का पाठ पढ़ाओ / समरसता को हथिया बनाओ/ एकता की मशाल जलाओ / बच्चों तुम भोर के तारे।"
   
तकनीकी ज्ञान के युग में आगे बढ़ने के लिए शिक्षित होना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। निरक्षरता अभिशाप है। निरक्षर व्यक्ति तकनीकी समय में कहाँ टिक पाएगा। कविता के माध्यम से बच्चों को साक्षरता अभियान में जुटने और सबको साक्षर बनाने को प्रेरित करती  कविता " आओ सबको साक्षर बनाए" की बानगी देखते हैं ( पृष्ठ  ३८ )........

"आओ, मिलकर कदम बढ़ाएँ/ देश को हम साक्षर बनाएँ /कखगघ का पाठ पढ़ा कर/ जीवन का सच्चा राज समझाएँ / गली-गली का चप्पा-चप्पा बोले / च छ ज झ, भारत माँ की जय / त थ द ध का पाठ पढ़ाकर उन्नति का मार्ग सुझाएँ/ एक-एक को ढूंढ-ढूँढ़ कर/ पढ़ने का महत्व समझाएँ / हर बच्चा ये कहता डोले / काका-पाटी बस्ता लादे / ऐसा सबके मन में भाव जगाएँ / आओ मिल कर कदम बढ़ाएँ / साक्षरता का पाठ पढ़ाऐं/ देश को हम साक्षर बनाए।"
     आए दिन सड़क दुर्घटनाओं में हर रोज कई व्यक्तियों की असमय मौत हो जाती है। इसका एक बड़ी वजह लोगों में यातायात नियमों की जानकारी की कमी होना भी है। बच्चों में बचपन से ही इन नियमों की जानकारी कराने के उद्देश्य को ध्यान में रख कर " यातायात के नियम" के बारे में समझती हैं ( पृष्ठ ४६ ).......

" खुशी से भर जाए उसकी झोली/ जिसने यातायात के नियम टटोले / सिर पर बाँध हेलमेट का सेहरा / पहुंचेगा मंजिल/ पाएगा नया सवेरा /  मोटर गाड़ी तो दौड़ानी है /  पर तेज रफ्तार नहीं रखनी है /चौराहे पर बत्ती हो जाए लाल / तो रुकना है तुम्हारा काम /
पीली बत्ती हो जाए जब / झटपट हो जाओ तुम तैयार/ अरे ! हरी बत्ती जल गई /  तू भी गाड़ी बढ़ा ले भाई "
  जीवन में मनोरंजन भी आवश्यक है। मनोरंजन नहीं हो तो जीवन नीरस बन जाता है। बच्चों के लिए लिखी गई मनोरंजनपूर्ण कविताओं में " बंदरी देखने गई पिक्चर " के भाव देखिए ( पृष्ठ ३७ )..............

बन्दर बोला बंदरी से, 'झटपट हो जा तैयार, ले आया हूँ टिकट मैं/ पिक्चर देखने चल मेरे यार /  टाई-सूट पहना बंदर ने / मिडी-मैक्सी बंदरी ने/ देख रहे थे आँखें फाडे / परदे पर चलते फिरते लोग / जब देखा, जलती रेल का सीन/ बंदरी घबराई और चिल्लाई /  जल्दी भागो, जल्दी भागो / जाने किसने आग लगाई / सुनकर छूटा हंसी का फव्वारा / बंदरी मन ही मन शर्मा गई।"
  गांधी जी पर लिखी कविता " सत्यता" सच्च बोलने का महत्व बताती है, " स्वच्छता" में साफ - सफाई से रहने, " दृढ़ संकल्प " में सप्फलता का मंत्र, " मंगल कामना" में कौमी एकता का महत्व, " मुन्नी स्कूल जाएगी " में एक बच्ची के स्कूल जाने की ललक, " दरोगा जी" में सपने में दरोगा बनने के मजे, " आई परीक्षा - आई परीक्षा" में खेल कूद और मस्ती छोड़ पढ़ाई में लगने, " छोड़ो ये धींगा मस्ती"  में पुस्तकों का महत्व, " होली आई रे " में मन का मैल धोकर संभावना , भाईचारे और प्रेम से रहने  और " शहीदों को नमन " में देश प्रेम का जज़्बा जगाने का प्रयास किया है। संग्रह की अन्य कविताएं आओ खुशियों के दीप जलाएं, पेड़ लगा दे तू दो चार, बचपन के खेलकूद,
चाचा नेहरू, राखी, सबसे अच्छा रविवार, प्राकृतिक दुनिया के दूत, आया बसंत - आया बसंत, वक्त की कीमत, स्वागत है नव वर्ष का, मेरा चंद्रयान - 3, जीवन एक संघर्ष है आदि भी बाल मन को छू लेने वाली हैं।
    कृतिकार डॉ . सुशीला जोशी मन की बात में लिखती हैं, " हर बच्चा कोमल होता है हृदय से निश्चल होता है भेदभाव का वह अर्थ नहीं समझता, भूत, वर्तमान, भविष्य को भी नहीं समझता। वह आसमान में फौरन उड़ जाता है। तितली पकड़ने दौड़ लगाता है। अगर शरारत भी करता है तो बडे ही सरल हृदय से। बच्चों के भीतर एक तूफान छुपा रहता है और वक्त पर वह स्वयं उदित होता है। यही कोशिश की है मैंने अपनी इन कविताओं में । बच्चों के सपनों को उमंग का पानी दे कर सजाया है। मैंने अपनी इस पुस्तक को नाम दिया है, भोर के तारे । " 
  कृति की भूमिका में साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही लिखते हैं, " बच्चों को भोर का तारा बनाना चाहती हैं, अतः " भोर के तारे" काव्य संकलन का नाम सार्थक सिद्ध होता है।" अभिमत में साहित्यकार अतुल कनक लिखते है, " कविताओं में बच्चों के संसार को संवारने का एक सपना है और बच्चों के माध्यम से इस दुनिया के सुखों को सहेजने की कामना है। ये तत्व इस संकलन की रचनाओं को महत्वपूर्ण बनाता है क्योंकि सच्चा साहित्य वही है जो समूची दुनिया को संवारने की प्रेरणा जगाए।"
अभिमत में रंगीतिका की संस्थापक स्नेहलता शर्मा लिखती हैं, "  दरोगा जी', 'बंदरिया गई पिक्चर देखने' धींगा मस्ती' जैसी मनोरंजन कविताएं निःसंदेह बाल मन को गुदगुदाती हैं। खेल-खेल में सिखाने के मनोविज्ञान को अनुभवी सुशीला जी बखूबी पहचानती हैं और वर्णमाला, यातायात नियम, पुस्तकें मेरी मित्र का महत्व रोचक ढंग से सिखा जाती हैं। भोर के तारे' डॉ. सुशीला जोशी का प्रथम बाल कविता संग्रह बच्चों के लिए तो एक सुंदर उपाहार है ही - बाल साहित्यकारों के लिए भी अनमोल सौगात है।" शीर्षक अनुरूप आकर्षक आवरण पृष्ठ कविताओं के साथ चित्र  और अच्छी प्रिंटिंग कृति को सुंदरता प्रदान करते हैं। कृति उन्होंने अपने स्व. पति पत्रकार मुनीश जोशी को समर्पित की हैं।


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