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योग और वास्तु शास्त्र: पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि संभव

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21 Jun 25
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योग और वास्तु शास्त्र: पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि संभव

21 जून 2025, आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर, हम केवल शरीर को स्वस्थ रखने की नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवनशैली में संतुलन लाने की बात कर रहे हैं। इसी सन्दर्भ में, प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के दो महान स्तम्भ—योग और वास्तु शास्त्र—के बीच संबंध पर ध्यान देना आवश्यक है। "यथाऽण्डे तथा पिण्डे" — जैसा ब्रह्माण्ड, वैसा ही शरीर। भारतीय संस्कृति में जीवन के हर पहलू का गहरा रिश्ता प्रकृति के पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से रहा है। योगशास्त्र और वास्तुशास्त्र — दोनों ही वेदों पर आधारित विज्ञान हैं, जो इन्हीं पंचमहाभूतों के संतुलन पर टिके हैं। योग शरीर व चित्त का संतुलन साधता है, वहीं वास्तु शास्त्र हमारे निवास स्थान में इन तत्वों की दिशा, स्थान और संतुलन को नियंत्रित करता है। यदि यह तत्व शरीर और भवन दोनों में संतुलित न हों, तो बीमारियाँ, मानसिक अशांति, और जीवन में अव्यवस्था आ सकती है।

प्राचीन ग्रंथों में पंचतत्वों का महत्व -योग और वास्तु: एक ही मूल, दो माध्यम

प्राचीन ग्रंथों जैसे अथर्ववेद, विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र, बृहदसंहिता, शिल्प शास्त्र, पातंजल योग सूत्र, और हठयोग प्रदीपिका में इस गहन संबंध का उल्लेख मिलता है। तैत्तिरीय उपनिषद, वास्तु विद्या, मयमतम्, और योगसूत्र (पतंजलि) जैसे ग्रंथों में बार-बार पंचतत्वों की महत्ता बताई गई है। शरीर में ये तत्व त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के रूप में कार्य करते हैं। वास्तु में ये दिशाओं और कार्यों के अनुसार विभाजित रहते हैं — जैसे कि ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) जल तत्व के लिए, अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) अग्नि तत्व के लिए, वायव्य (उत्तर-पश्चिम) वायु तत्व के लिए आदि।

पंचतत्व शरीर में स्थान (योग) घर में स्थान (वास्तु)

(Earth) मलाधार चक्र, अस्थियाँ, स्थिरता दक्षिण-पश्चिम दिशा

(Water) स्वाधिष्ठान चक्र, मूत्राशय, भावनाएँ उत्तर-पूर्व दिशा

अग्नि (Fire) मणिपुर चक्र, पाचन शक्ति, ऊर्जा दक्षिण-पूर्व दिशा

(Air) अनाहत चक्र, श्वास, भावनात्मक ऊर्जा उत्तर-पश्चिम दिशा

(Ether) विशुद्ध चक्र, वाणी, स्पेस मध्य भाग / ब्रह्मस्थान

जब किसी भी तत्व में शरीर या स्थान में असंतुलन होता है, तो मानसिक, शारीरिक या पारिवारिक समस्याएं जन्म लेती हैं। उदाहरण के लिए:

• यदि घर में अग्नि तत्व (SE) गड़बड़ है, तो शरीर में पाचन गड़बड़ी, गुस्सा और निर्णय लेने की शक्ति प्रभावित हो सकती है। और यदि शरीर के अंदर अग्नि तत्व (जठराग्नि) मंद हो, तो पाचन तंत्र बिगड़ता है

• यदि जल तत्व गलत दिशा में है, तो भावनात्मक असंतुलन, त्वचा रोग या मूत्र संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।

• पृथ्वी तत्व की कमी से व्यक्ति अस्थिर, डरपोक व असुरक्षित महसूस करता है।

• अगर भवन का उत्तर दिशा (वायु + धन का कारक) बाधित हो, तो आर्थिक प्रगति में रुकावट आती है — ठीक वैसे ही जैसे शरीर में वायु दोष से अपच, गैस आदि होता है।

• प्राणायाम और ध्यान आकाश और वायु तत्व को संतुलित करते हैं, जिससे मानसिक शांति मिलती है।

समाधान क्या है? योग से शरीर का और वास्तु से घर का शुद्धिकरण

वास्तु शास्त्र बताता है कि कैसे भवन को पंचतत्वों के अनुसार डिज़ाइन किया जाए।

योग सिखाता है कि शरीर को कैसे शुद्ध, संतुलित और सक्रिय रखा जाए। इन दोनों के एकसाथ पालन से जीवन में संतुलन, समृद्धि और स्वास्थ्य आता है। संक्षेप में, योग और वास्तु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक अंदरूनी शुद्धता और ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करता है, तो दूसरा बाहरी संरचना और पर्यावरण में सामंजस्य लाता है।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में यदि कोई संपूर्ण जीवन-संतुलन चाहता है तो उसे घर की ऊर्जा (वास्तु) और शरीर-मन की ऊर्जा (योग) दोनों को समान रूप से समझना और साधना होगा। योग और वास्तु कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि ऊर्जा विज्ञान के दो स्तंभ हैं। इनका सही प्रयोग करके हम रोगमुक्त, सुखी और समृद्ध जीवन प्राप्त कर सकते हैं। "योग शरीर का वास्तु है, और वास्तु घर का योग है। दोनों में संतुलन हो तो जीवन धन्य हो जाता है।" इस योग दिवस पर संकल्प लें — “जैसा शरीर, वैसा ही घर। जैसा घर, वैसा ही जीवन।”


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