उदयपुर। साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में प्रवचन में कहा कि हर प्राणी की इच्छा है कि दुख बिल्कुल नही चाहिए, बस सुख चाहिये लेकिन ये कहाँ, कैसे मिलेगा ये पता नही है। चार गतियाँ देव लोक, नरक, मनुष्य और तिर्यंच बताई गई हैं लेकिन किस में सुख है? उपासरे में सुख है तो सब यहीं होते। धर्म की आराधना में सुख है लेकिन यहां बैठकर भी एकाग्रता कहाँ है? सामायिक करते हुए भी ध्यान कहीं और चल रहा है। घर, दुकान, उपासरे कहीं सुख नहीं है तो फिर सुख है कहाँ? अपनी आत्मा में ही सुख है। कोई कुछ भी कहे, हम समता में रहें यही सुख है।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि दूध उबलने के समय भी प्रतीक्षा करनी पड़ती है लेकिन कोई कुछ कह दे तो प्रतीक्षा होती है क्या? स्वयं पर नियंत्रण रख लिया तो सबसे बड़े सुखी हो अन्यथा आउट ऑफ कंट्रोल होते ही सब गड़बड़ हो जाती है। गाड़ी चलाये, एसी चलाये, दुकान पर नौकर हो सबको कंट्रोल करते हैं, बीवी- बच्चों पर ऑर्डर करके कंट्रोल करते हैं लेकिन खुद पर ही कंट्रोल नही होता। अपनी समझ पर कंट्रोल कर लिया तो सर्व सुखी रहोगे। आमने सामने दोनों तरफ बिना कंट्रोल गाड़ी चलेगी तो एक्सीडेंट तय है।
साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि घर में बीवी बच्चों से अगर बिगड़ गई आउट ऑफ कंट्रोल हो गए तो वो एक्सीडेंट भयंकर होता है। मनुष्य जीवन में सुख कैसे प्राप्त करना है इसका यही उपाय है। ऐसे छोटे छोटे सूत्र हैं जिससे हमारा जीवन सफल हो सकता है। साध्वी कृतार्थ प्रभा श्री जी ने गीत प्रस्तुत किया।