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बेरोजगारी का तांडव

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11 Dec 23
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डॉ प्रेरणा गौड़ 'श्री’

बेरोजगारी का तांडव

रात्रि के अंधकार में मीनाक्षी शांत भाव से पढ़ाई में लीन थी । लगभग रात के 2:00 बजे थे  । तभी उसके पिता  कमरे में प्रवेश करते हैं, पिता चाय का कप लेकर आते हैं और मुस्कुराते हैं।
पिता ओमप्रकाश कहते हैं “ मीनाक्षी बिटिया ! पढ़ाई के प्रति तुम्हारी  मेहनत मुझे बेहद पसंद है तुम निरंतर जो पढ़ाई करती हो उससे मुझे बहेद खुशी मिलती है ईश्वर से प्रार्थना
  हैं कि तुम्हें जल्दी से जल्दी सफलता प्राप्त हो अब जल्दी से गरमा गरम चाय लो”

मीनाक्षी “ जी पिताजी, आपका स्नेह और दुलार मुझे हौसला देता है और मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित करता है रात के 2:00 बजे आप हमेशा मेरे लिए चाय लाते हो और मेरा ख्याल रखते हो इसके लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है कि मैं किन शब्दों में आपका शुक्रिया करूं”

पिता ओमप्रकाश “ मीनाक्षी  बिटिया यह तो मेरा फर्ज है और तुम मेरी बच्ची हो इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है तुम बस सफल हो जाओ और तुम्हारी जिंदगी अच्छी चले इससे ज्यादा मेरे लिए और खुशी की क्या बात 
 हो सकती है”

मीनाक्षी पढ़ने लगती है पढ़ते पढ़ते सुबह के 7:00 बज जाते हैं मां रमिला का कमरे में प्रवेश होता है
मां रमीला गठिया की मरीज़ है उन्हें जोड़ों का असहनीय दर्द होता है फिर भी अपनी बेटी का पूरा ख्याल रखती है ।

रमिला कहती हैं “ मीनाक्षी बिटिया  ब्रश करो और नहा लो मैं तुम्हारे लिए आलू के पराठे बना रही हूं और तुम्हारा दूध भी उबाल दिया है जल्दी से  आ जाओ। 
खा पी कर तुम विश्राम कर लो ताकि तुम्हारा स्वास्थ्य खराब ना हो “

मीनाक्षी “ जी माताश्री । आपका हुकुम सर आंखों पर”

मीनाक्षी खा पीकर विश्राम करती है करीब 2 घंटे बाद टेलीफोन की घंटी बजती है  माताश्री मीनाक्षी को आवाज देकर सूचना देती हैं कि तुम्हारी सहेली रजनी का फोन है जल्दी से आकर बात कर लो।
मीनाक्षी फोन पर बात करने के लिए आती है।

मीनाक्षी “ कहो रजनी कैसे फोन किया। आज तुम्हें मेरी याद कैसे आई “

रजनी “ मीनाक्षी तुम तो जानती हो हम लोगों को करीब 5 से 6 वर्ष हो गए हैं पढ़ाई करते हुए लेकिन हम अभी तक सफल नहीं हो पा रहे हैं  कैसी भारी विडंबना है”

मीनाक्षी “ रजनी साफ-साफ यही है की कॉलेज लेक्चरर बनने के लिए हम लोगों ने खूब मेहनत की है लेकिन परिणाम सकारात्मक नहीं आ पा रहा है सीट भी बहुत कम निकलती है एक सीट के लिए हजारों दावेदार होते हैं और बेरोजगारी का तांडव जोरो सोरों पर है” 

रजनी “ मैं बहुत हताश हो गई हूं पिछले 6 वर्षों में मैंने खूब इंटरव्यू दिए हैं एक सीट के लिए कई दावेदार होते हैं एक बात मैंने देख ली है पढ़ाई की कोई वैल्यू नहीं है “

मीनाक्षी हंसते हुए कहती है “ बिल्कुल सही कहा रजनी तुमने । हम लोग पढ़ाई नहीं करते और पकौड़े तलने का काम करते तो अपना पेट अवश्य पाल लेते “ 

रजनी हंसने लगती है और कहती है “ कम से कम हमारी पहचान तो होती एक मीनाक्षी पकोड़े वाली दूसरी रजनी पकोड़े वाली” 

मीनाक्षी “ हा हा हा हा हा हा हा हा”

रजनी “ कल मेरा दिल्ली में इंटरव्यू है “

मीनाक्षी “ बहुत शुभकामनाएं इंटरव्यू के लिए”

रजनी “ मीनाक्षी यार कैसी शुभकामनाएं अब तो यह शुभकामनाएं भी मुझे जहर सी लगने लगी है क्योंकि सिलेक्शन तो होता नहीं है बस जेब से खर्च हो जाता है आने जाने का रहने का खाने पीने का और मिलता कुछ नहीं बस एक चीज है जो मिल जाती है वह है बेरोजगारी”

मीनाक्षी “ बिल्कुल सही कहा तुमने मेरा भी कल दिल्ली का टिकट है परसों मेरा भी इंटरव्यू है “

रजनी “ तुम्हारी तैयारी कैसी है ? ”

मीनाक्षी “ अपनी तरफ से मेरी तैयारी अच्छी है लेकिन हर बार असफल हो जाती हूं और उस असफलता को भूल जाती हूं नई तैयारी में जुट जाती हूं”

रजनी “ मीनाक्षी तुम्हारी यही बात मुझे अच्छी लगती है  तुमसे  मुझे हौसला मिलता है और मैं भी नई तैयारी के लिए जुट जाती हूं”

मीनाक्षी “ बेरोजगारी का तांडव तो जोरो पर है लेकिन हमें हौसला बनाए रखना है और मेहनत करते रहना है”

रजनी “ हंसते हुए हाय रे यह बेरोजगारी का तांडव”

मीनाक्षी “ जोर से ठहाका लगाते हुए कहती हैं बेरोजगारी का तांडव बेरोजगारी का तांडव हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा “

 


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