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विश्व पर्यावरण दिवस, गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

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06 Jun 25
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विश्व पर्यावरण दिवस, गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

भारत विकास परिषद बांसवाड़ा इकाई द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस, गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया।
आयोजन की अध्यक्षता भाविप के प्रांतीय संरक्षक डॉक रविन्द्र लाल मेहता, विशिष्ट अतिथि संगठन की प्रांतीय महिला सहभागिता संयोजिका गायत्री शर्मा ने की।
कार्यक्रम की शुरुआत में गोष्ठी में अतिथियों ने दीप प्रज्वलन और सामूहिक सरस्वती वंदना की।
प्रकृति प्रेमी कवि भागवत कुन्दन ने ‘पौधे ले लो, पौधे ले लो, पौधे ले लो यार, दो कोडी में मिलता जीवन का आधार’ प्रस्तुत कर जिले पर्यावरण जागरूकता के शुरुआती दिनों के प्रसंग सुनाएं।
इस अवसर पर जीजीटीयू कुलगीत रचयिता वरिष्ठ साहित्यकार हरीश आचार्य ने पर्यावरण संरक्षण संवर्द्धन के प्रसंगार्थ मुक्तक, गीत और ग़ज़ल त्रिवेणी की बहुआयामी प्रस्तुतियां दी। जहाँ एक तरफ़ " पँछी अपने विलाप में अलाप रहे थे श्राप कोई, बुलवाई थी शौक सभा दरख़्त कट जाने के बाद " जैसी संवेदनशील स्थिति से अवगत कराया तो उसी समय आशावादी नज़रिया भी पेश किया " खिडक़ी से जो मैं देखूँ कुछ ऐसा नज़्ज़ारा हो,लहराते वृक्षों पर पँछी कोई प्यारा हो "| वन्य जीव और प्राण वायु संवाहक को समर्पित " जब से जंगल शहर हुए हैं,शेर सभी दर बदर हुए हैं " तथा " सुबह की सैर और मुस्कुराहट शजर की ! जैसे कोई आनंद की लहर हो गई " जैसी अभिव्यक्ति बहुत ही सराही गई। प्रयोगधर्मी गीतकार का सदाबाहर गीत " ये बात मानती आई हरेक पीढ़ी है, स्वच्छता स्वर्ग की सीढ़ी है " पर तालियों की संगत रही। और यह प्रस्तुति तो समग्र अँचल को समर्पित रही " जैसे भगीरथ गंगा लाए हरिदेव लाए डैम माही, हरी भरी रमणीय नैसर्गिक वागड़ वसुंधरा माई, हरितिमा को जीवंत रखती वन अँचल की चहेती है, हम उस अँचल के वासी हैं जहाँ दिलों में माही बसती है "|
वरिष्ठ रंगकर्मी गीतकार सतीश आचार्य ने ‘जल बचाले भाई तेरा कल बचेगा, वरना न इस जीवन का कोई पल बचेगा, जल से है जीवन में माया, जल से तेरी कंचन काया, जल बिन कोई जीव न जाया, जल बिन नयनों में जल आया, पंचतत्व में जल का कोटा कौन भरेगा, जल बचाले भाई तेरा कल बचेगा, वरना न इस जीवन का कोई पल बचेगा।’ रचना प्रस्तुत की।
गीतकार तारेश दवे ने ‘पेड़ पौधे, ये जंगल बचा कर रखो, कल बचाना है तो जल बचा कर रखो, साफ रक्खो हवाएँ, ज़मीं, आसमां, धानी धरती का आँचल बचा कर रखो’ और युवा कवयित्री धर्मिष्ठा पंड्या ने ‘प्रकृति की गोद में खुशियां अपार है, नित नवीन किसलय फूलों की बहार है, हरियाली की चादर ओढ़े पेड़ों की कतार है, मनभावन रितुए है दिलों का करार है।’ कविता पढ़ी। उजास परिवार संयोजक भँवर गर्ग ‘मधुकर’ ने संचालन करते हुए ‘तेज़ धूप है हर तरफ, ढूंढ रहें सब छांव, नगर नगर सब जल रहे, याद आ गया गांव।’ रचनाएं पढ़ी। आभार प्रदर्शन कोषाध्यक्ष पीयूष नीमा ने किया। इस अवसर पर डॉ. युधिष्ठिर त्रिवेदी, मोटिवेशनल स्पीकर शिक्षाविद् प्रकाश पंड्या और नमिता कुलश्रेष्ठ ने विचार रखें।
परिषद के गोपाल जी सोनी साधना जी सोनी संजय गुप्ता प्रवीण सोनी अर्चना नानावती नैना जैन कल्पना मेहता राखी मेहता राजेश मेहता आदि उपस्थित रहे
 


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