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तज़ाकिस्तान के राजदूत श्री लुकमोन बोबोकालोनज़ोडा से पूर्व कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह की शिष्टाचार भेंटवार्ता

( Read 2013 Times)

12 Apr 24
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तज़ाकिस्तान के राजदूत श्री लुकमोन बोबोकालोनज़ोडा से पूर्व कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह की शिष्टाचार भेंटवार्ता

जयपुर,, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं निम्स विश्वविद्यालय के सलाहकार प्रोफेसर अमेरिका सिंह ने आज दिल्ली में आयोजित एक चर्चा कार्यक्रम में निम्स विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल के रूप में सहभागिता निभाई और तज़ाकिस्तान के राजदूत श्री लुकमोन बोबोकालोनज़ोडा से शिष्टाचार भेंटवार्ता की। इस अवसर पर प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रो. सिंह ने भारत में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण और इससे जुड़े वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की और अपने सुझाव प्रस्तुत किए। प्रतिनिधिमंडल को प्रो. सिंह ने  "वन निम्स वन वर्ल्ड" पुस्तक की प्रति भेंट की और निम्स विश्वविद्यालय द्वारा संचालित विभिन्न अंतराष्ट्रीय अकादमिक पाठ्यक्रमों, एमओयू एवं अंतराष्ट्रीय शैक्षिक सहयोग के बारे में बताया। दोनों के मध्य राजस्थान में अंतराष्ट्रीय शैक्षिक आदान-प्रदान, नवाचार, वैश्विक शोध और अनुसन्धान के नवीन अवसरों को लेकर व्यापक चर्चा हुई। दो देशों के उच्च शिक्षा को लेकर द्विपक्षी से संबंधों को गति देने की दिशा में यह चर्चा महत्वपूर्ण रही। इस चर्चा में तज़ाकिस्तान दूतावास के काउंसलर मनप्रीत सिंह कई प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

भारत में तज़ाकिस्तान के राजदूत श्री लुकमोन बोबोकालोनज़ोडा ने कहा की अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्वीकरण ने अंतराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को भी प्रभावित किया है। कई विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में वैश्विक परिप्रेक्ष्य को अपनाया है, जिसमें वैश्विक संदर्भ से संबंधित विषयों और मुद्दों को शामिल किया गया है। इससे शिक्षा के प्रति अधिक अंतःविषय और सहयोगात्मक दृष्टिकोण और वैश्विक मुद्दों और चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले नए कार्यक्रमों और पाठ्यक्रमों के विकास को बढ़ावा मिला है। विश्व में कई विश्वविद्यालय अब विविध स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का घर बन गए हैं। इसके परिणामस्वरूप कई विश्वविद्यालयों में विविध और बहुसांस्कृतिक छात्र आबादी बढ़ी, शैक्षिक अनुभव समृद्ध हुआ और अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सीखने के अवसर पैदा हुए। जिससे वैश्विक व्यापार और वाणिज्य की वृद्धि के साथ, अधिक से अधिक छात्र विदेशों में शिक्षा के अवसरों की तलाश कर रहे हैं, और दुनिया भर के विश्वविद्यालय सक्रिय रूप से अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपने देश में उच्च शिक्षा के लिए आकर्षित कर रहे हैं। जिससे अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सीखने के नवीन अवसर पैदा हो हैं। शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिभाशाली विदेशी शिक्षाविदों की भागीदारी के साथ वृहत अकादमिक नेटवर्क की वैश्विक पहल करते हुए भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संकाय की उपस्थिति से देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक उत्कृष्टता में वृद्धि हुई हैं।

चर्चा के दौरान प्रोफेसर अमेरिका सिंह ने कहा की उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण देशों के बीच मजबूत अंतर्संबंधों के विकास और पारस्परिक निर्भरता एवं बढ़ते आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देता है। देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के अनुरूप भविष्य में भारत की उन्नति और शैक्षणिक विकास के लिए उच्च शिक्षा का अंतराष्ट्रीयकरण किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं। इससे न केवल शिक्षा के स्तर में सुधार होगा बल्कि वैश्विक संदर्भ में विद्यार्थी भी सशक्त होंगे और उच्च शिक्षा के अंतराष्ट्रीय मंच पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। अंतराष्ट्रीयकरण से भारतीय विद्यार्थियों को विश्व स्तरीय शिक्षा सुलभ होगी और अनुसंधान के असीमित अवसर प्राप्त होंगे जिससे उन्हें अन्य देशों के शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामजिक अंतर को पाटने में मदद मिलेगी। इससे विद्यार्थियों को नए विचारों से अवगत होने और देश की संभावित सांस्कृतिक क्षमता को बढ़ाने के नए अवसर प्राप्त होंगे। आज दुनिया को एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीयकरण शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो शिक्षा व्यवस्था में अपेक्षित सुधारों के साथ सकारात्मक बदलाव ला सके। बेहतर शैक्षणिक गुणवत्ता के साथ अंतर्राष्ट्रीय छात्र नामांकन में वृद्धि की जा सकती हैं। नई शिक्षा नीति में कई अपेक्षित सुधार किए गए हैं, जिनका उद्देश्य हमारे छात्रों, शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों को सही दक्षताओं और क्षमताओं से लैस करके और एक जीवंत नए भारत के लिए एक सक्षम और पुनर्जीवित शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करके एक आदर्श बदलाव लाना है। यह नीति अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए सस्ती कीमत पर भारत को एक शीर्ष स्तरीय अध्ययन स्थल के रूप में विकसित करेगी। जिससे भारत के विश्व गुरु के रूप में इसकी स्थिति फिर से स्थापित हो सके।


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