उदयपुर, । हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतुः शती समारोह के प्रथम सोपान के अंतर्गत मेवाड़ लघु चित्र कार्यशाला में कलाकारों की कूंचियों ने इतिहास को रंगों में उकेर दिया है।
प्रताप गौरव केंद्र, पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर एवं संस्कार भारती उदयपुर महानगर इकाई के सहयोग से आयोजित शिविर में मेवाड़ की गौरवगाथा चित्रों के माध्यम से जीवंत हो उठी है।
शिविर संयोजक प्रो. रामसिंह भाटी ने बताया कि चित्रों में मेवाड़ के चटक रंग, गहरी रेखाएं और विषयवस्तु की विविधता दर्शकों को विशेष रूप से आकर्षित कर रही है। चित्रों में महाराणा प्रताप की युद्धनीति, भक्ति, वीरता और लोकसंपर्क को उकेरा गया है।
राधेश्याम स्वर्णकार ने महाराणा प्रताप व अजब दे कंवर के विवाह उपरांत एकलिंग दर्शन का चित्र उकेरा है, वहीं प्रमोद सोनी ने भामाशाह के समर्पण भाव को दर्शाया। राजेश सोनी की कृति में प्रताप अपने प्रिय हाथी रामप्रसाद पर सवार दिखते हैं। खूबीराम शर्मा ने चावंड युद्ध के दृश्य में अमर सिंह को रणभूमि में दर्शाया, संदीप शर्मा ने चेतक के चयन का क्षण चित्रित किया।
मदनलाल शर्मा ने हल्दीघाटी युद्ध का सजीव चित्र प्रस्तुत किया तो गणेशलाल गौड़ ने प्रताप को युद्ध से पूर्व एकलिंग दर्शन करते दिखाया। 24 जून तक कलाकार कृतियों को अंतिम रूप देंगे और 25 जून को चित्र प्रदर्शनी आमजन के अवलोकन के लिए रखी जाएगी।
छोटू लाल जी ने अपने चित्र में बंदी मुगल महिलाओं को स्वतंत्र करने की आज्ञा देते हुए महाराणा प्रताप को बनाया है। अशोक शर्मा एवं रामचंद्र शर्मा ने भी अपने चित्रों में युद्ध के दर्शन अंकित की है।
खरोष्ठी से ब्राह्मी तक की रोचक यात्रा को समझ रहे प्रतिभागी
-इधर, आईसीएचआर व साहित्य संस्थान राजस्थान विद्यापीठ के सहयोग से चल रही भाषा-विज्ञान एवं पुरालिपि कार्यशाला में सोमवार को प्राचीन लिपियों व भाषाओं के विविध पक्षों पर विद्वानों ने गहन प्रकाश डाला।
डेक्कन कॉलेज, पुणे के पुरातत्व विभाग से आए डॉ. अभिजित दाण्डेकर ने खरोष्ठी व ग्रीक लिपियों की रोचक तुलना विभिन्न प्राचीन सिक्कों के माध्यम से प्रस्तुत की। सिक्कों पर अंकित लिपियों ने श्रोताओं को भारत की बहुलतावादी लिपिक परंपरा से परिचित कराया। इसके पश्चात भाषा-साहित्य मर्मज्ञ डॉ. जेके ओझा ने पांडुलिपियों और बहियों में प्रयुक्त लोकभाषाओं की विविधता और उनके व्याकरणिक स्वरूप को स्पष्ट किया। साथ ही प्राचीन मौद्रिक इकाइयों रुपया, आना, पैसा के ऐतिहासिक संबंधों को लिखित उदाहरणों से समझाया।
कार्यक्रम में डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित ने मेवाड़ राज्य के शासकीय पत्रों की भाषा की विशिष्टताओं पर प्रकाश डालते हुए प्रशासनिक भाषा के ऐतिहासिक स्वरूप को रेखांकित किया। मैसूर आर्कियोलॉजी विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. रविशंकर ने ब्राह्मी लिपि की संरचना व विकास को सूक्ष्म उदाहरणों सहित समझाया।
पुरातत्वविद् विवेक भटनागर ने विभिन्न उत्खनन स्थलों से प्राप्त शिलालेखों व पुरावशेषों के माध्यम से उनकी लिपिक पहचान पर चर्चा की। कार्यशाला में उपस्थित प्रतिभागियों ने सभी सत्रों में उत्साहपूर्वक भाग लेकर ऐतिहासिक ज्ञान को आत्मसात किया।