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ऐसा देश है मेरा/ साहित्य रेखा पंचोली, कोटा

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14 Apr 24
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ऐसा देश है मेरा/ साहित्य  रेखा पंचोली, कोटा

किसी भी बगीचे की शोभा फूलों के राजा महकते गुलाब से होती हैं वैसे ही साहित्य के उपवन में रेखा पंचोली ऐसा नाम है जो किसी खिले गुलाब की तरह अपनी सुरभि से साहित्य को महका रही हैं। अपने समय की ध्वनि से ध्वनित इनका साहित्य समसामयिक विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। गद्य और पद्य  विधाओं में लेखन की लंबी यात्रा में जहां स्वयं साहित्य का सृजन किया वहीं आर्यन महिला मंच का गठन कर नवांकुर लेखिकाओं को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान कर साहित्य सेवा में कदम बढ़ाए। साहित्य लेखन यात्रा में अब तक करीब 26 कहानियां और करीब 90 कविताएं, आठ लघु कहानियां,तीन व्यंग्य, आठ लेख इनकी साहित्यिक पूंजी है।

    गद्य लेखन में इनकी कहानियां और कविताएं विविध विषयों के साथ-साथ अपने अधिकारों के लिए लड़ती महिलाएं, स्त्री विमर्श और नारी सशक्तिकरण की सुगंध से महकती है।  कहानी संग्रह "भीगी पलकों में उजास" राजस्थान साहित्य अकादमी, ,उदयपुर  द्वारा प्रदत्त आर्थिक अनुदान से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की कहानी कन्याभ्रूण हत्या पर आधारित " तुम क्यों हार गई मां? " के कुछ अंश कहानी के प्रभावशाली संदेश को समझने के लिए पर्याप्त हैं.........

"उफ्फ यह तीखी ठंडी हवा तो मेरी जान ही ले लेगी । यह कंकर कितने चुभ रहे हैं क्या ऐसा ही होता है संसार ? हे ईश्वर क्यों भेजा मुझे इस निर्दय संसार में ? " "इस संसार में जंतु जगत में भी मां अपने बच्चों की रक्षा कर सकती है तो तुम तो मानवी थी तुम मेरी रक्षा क्यों नहीं कर सकी तुम खामोश क्यों रही तुम तो जननी थी कहते हैं जननी में जग जननी मां भवानी का अंश होता है तुम चाहती तो उठ खड़ी होती मेरी रक्षा के लिए, कितनी आसानी से तुमने अपनी गोद को उजड़ने दिया, तुम क्यों हार गई मां?"

        किशोर वय में बच्चों के ऊपर केरियर को लेकर बढ़ते दबाव और अभिभावकों की महत्वाकांक्षाओं का बचपन पर पड़ते बुरे असर को शिद्दत से रेखांकित करती  "बंटी' और 'परिणाम' भी इसी संग्रह की कहानियां हैं ।

प्रेम में धोखा खाती पर स्त्री, विवाहेतर प्रेम में पड़े पति से प्रताड़ित होती, ससुराल और दहेज में प्रताड़ित स्त्री और इन सब के पश्चात टूट बिखर कर फिर संभलती महिलाओं की कहानियां पश्चाताप के आंसू ,दुल्हन बिन पिया की, चिता की राख में सुलगते सवाल, नई दिशा, कहां से आई थी डायन ,ऊधो माने की बात ,कडुआ घूंट, काला डोरा, शिवली भी काव्य संग्रह के खिलते पुष्प हैं। ये सभी 16 कहानियां केवल इस संग्रह तक सीमित नहीं रही वरन आकाशवाणी केंद्र से प्रसारित हो कर और देश के कई प्रकाशनों के माध्यम से आम  पाठक तक पहुंची हैं। इनकी कहानी

"सैलाब"क्रोध के कारण उजड़ते परिवार की कहानी है । तोबा उनका हेयर स्टाइल एंव श्वान प्रेम व्यंग्य कथाएं भी इन्होंने लिखी हैं। 

       इनका 10 लंबी कहानियों का एक और संग्रह प्रकाशन की प्रक्रिया में है। आने वाले संग्रह में शामिल कहानियां सेतु निर्माण, रक्त रंजित केश ,तर्पण, हैप्पी मदर्स डे और लोको पायलट देश की नामी पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इसी संग्रह में शामिल हैं समझौता ,अग्नि परीक्षा, काले संदूक का राज ,हिम शिखर पर चांदनी और घर की रौनक कहानियां।

        गद्य सृजन में उपन्यास "लोकडाउन एंड कोचिंग सिटी कोटा" में कोरोना महामारी से उपजी स्थिति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। उपन्यास के यह अंश देखिए...........

" अचानक जिंदगी कुछ ऐसे बदल गई थी मानो हर हराता झरना एक ही रात में बर्फ में तब्दील हो गया हो । सड़केें, बाजार, स्कूल, कॉलेज, मॉल ,बसें ट्रेने सब मुंह बांये खड़े थे ,स्तब्ध से हर जगह,  रेलम पेल - धकम-धक्क  मचाती वह भीड़ जैसे गुम हो गई  थी । 135 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश की जनता को कोई इतना शांत कैसे करवा सकता है । कभी सोचा नहीं था वह घटित हो रहा था । 135 करोड़ यह केवल जुमला नहीं था ,हमारे देश के प्रधानमंत्री का ,इस 135 करोड़ की जनसंख्या ने हमेशा अपने होने का पुरजोर प्रमाण दिया था । लेकिन अब जैसे ऊपर वाले जादूगर ने जादू की छड़ी घुमा दी थी और सबको जैसे सांप सूंघ गया था ।" 

      लेखिका का पद्य साहित्य का अधिकांश सृजन आध्यात्म, प्रकृति,और स्त्री पर आधारित होने के साथ विविध अन्य विषयों की खुशबू लिए हैं।  प्रतीकात्मक रचना के भावों को देखिए कितनी खुबसूरती से लिखा है..........

कैसा तुमने  ये रंग डाला ।

चांद की चांदनी में ,

सूरज रोशनी में ,

अनन्त अम्बर में ,

अथाह समन्दर में , 

मिट्टी मटियाली में, 

धरती की हरियाली में ,

कहो कैसे ये सब रच डाला ,

कैसा तुमने ये रंग डाला ।

       सामयिक विषय अयोध्या में हाल ही में राम लला की प्राणप्रतिष्ठा पर  अपने काव्य सृजन में यूं लिखती है कवियित्री...........

तुम स्वयं लौट कर अवध में आए राम,

नैना भर भर आए, खुशी मन में न समाए,

तुम्हें बुलाने के काबिल हम हो ना पाए ।

 तुम स्वयं लौटकर अवधमें आए राम ,

 स्वागत जन्मभूमि में अपने भवन में बिराजो राम।

निराकार रहे प्रभु तुम सरयू के जल में ,

पावन  अवधधरा पर, तुम सदा रहे विराजमान।

विश्वासों की रक्षा, हम ही कर ना पाये,

जब तोड़े गये,  तुम्हारे एक-एक प्रतिमान ।

तुम स्वयं लौट कर अवध में आए राम ,

स्वागत जन्मभूमि में अपने भवन बिराजो राम ।

     नदियों की महिमा और उससे उपजी सनातन संस्कृति पर क्या खूब लिखा है........

प्राचीन सरस्वती नदी की जो बहती थी, 

एक निर्मल जल धारा 

सनातन संस्कृति से फलित हुआ था 

कभी उसका किनारा

     नारी और नदी को समान प्रकृति का मानते हुए " नदी और स्त्री " कविता में लिखती हैं..........

सभ्यताओं को पन पाना,

और समंदर तक जाना

लक्ष्य तुम्हारा,  भूल न जाना

स्मरण बस यही करती रहना।

ऐसे ही बस धाराप्रवाह बहती रहना

नदियों तुम अपना काम करती रहना

     बसंत और फागुनी बयार में प्रकृति का रोम रोम खिल उठता है, उपवन की कलि - कलि खिल उठती है, तितलियों का सौंदर्य और भौरों का गुंजन,कोयल की कुहूक, नृत्य करते मयूर, ऐसे में उदास चेहरों को भी खुशी के रंगों से सरोबार करने के सतरंगी रंगों को अपनी कविता में खूबसूरत दी है का शब्द सौंदर्य देखते ही बनता है.................

बसंत और फागुनी बयार 

देख बसंत को फागुनी बयार इठलाकर मुस्काई,

झूम उठा बसंत भी उसने ताल से ताल मिलाई बिखरे गए बसंत धरती पर , रंग तुम्हारे चारों ओर

रंग बिरंगी चुनरी पहन ,हो गई वसुधा भाव विभोर।

कुछ रंग मैं भी चुरा लूं क्या ?

बोलो मैं भी होली मना लूं क्या ?

अमराईयों में कोयल कुहुक रही है, नाच रहे है मोर,

फूलों पर गुनगुन करते  भंवरे ,  पपीहे मचाए शोर।

डोल रहा बागों में बसंत , हर कली- कली मुस्काये 

झूम रहा पत्ते -पत्ते में फागुन, डाली-  डाली  लहराए ,

थोड़ी मस्ती मैं भी गले लगा लूं क्या ?

बोलो मैं भी होली मना लूं क्या ?

चेहरे कुछ बैरंग से हैं ,कुदरत बिखेर रही रंग चारों ओर।

दिल है कुछ अंधियारे से ,सन्नाटों का पहरा चुप्पी का है  दौर।

जलती होली में  ये दर्द ,ये तम गहरा जला दूं क्या ?

ढोल ताशों से ये सन्नाटा ,ये चुप्पी, दूर भगा दूं क्या ?

थोड़ा रंग इनको भी लगा दूं क्या

बोलो मैं भी होली मना लूं क्या ?

      आध्यात्म का प्रतीकात्मक पुट लिए जिंदगी के दो पहलुओं खुशी और गम को प्रतीक मान लिखती हैं जब आत्मकथा लिखूं तो यही लिखूं कि गमों को भी खुशी से जिया है...........

ये बिन बुलाए दर्द।

जिंदगी के गीतों में , 

मुखडे की तरह होते हैं ये दुख।

क्योंकि सुख और दुख दोनों,

एक ही सिक्के के दो पहलू है। 

पर यही अभिलाषा है, 

दिल के यही एक ख्वाहिश है।

और एक इल्तज़ा भी है 

तुझसे मेरे मालिक ,

कि जिंदगी के अंत में गर लिखूं 

मैं अपनी आत्मकथा तो ,

गर्व से लिख सकूं  मैं कि 

मैंने अपने दुखों को कितनी खुशी से जिया।

परिचय :

साहित्य जगत में गुलाब सी महकती रेखा पंचौली का जन्म 10 जून 1968 को सवाई माधोपुर के शिवाड़ ग्राम में पिता स्व.श्री सीताराम श्रौत्रिय  एवं श्रीमती सरला श्रौत्रिय के आंगन में हुआ। इन्होंने इतिहास और हिंदी विषय में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त कर बी.एड. की शिक्षा प्राप्त की है। बचपन में कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था और करीब 24 वर्ष की आयु से कहानियां भी लिखना शुरू किया। इन्हें 27 वर्ष का अध्यापन कार्यानुभव है। आपके पति  राम प्रकाश पंचौली  रिटा.स्टेशन अधीक्षक हैं। आर्यन लेखिका मंच कोटा की स्थापना की और स्वयं कई राष्ट्रीय और स्थानीय साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।

इन्हें इस पर गर्व और प्रसन्नता है की आज अनेक लिखिकाएं इनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से साहित्य के क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं। लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जाना इनकी साहित्यिक यात्रा की सफलता की कहानी कहता है।

संपर्क : 334 'उपासना ' शास्त्री नगर, दादाबाड़ी ,कोटा( राजस्थान )

मोबाइल : 99500 62953

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