GMCH STORIES

दहेज़

( Read 1016 Times)

27 Apr 24
Share |
Print This Page

रेणु सिंह राधे, कोटा (राजस्थान)

दहेज़

दहेज़ की वेदी पर,
स्वाहा हो गया बहुत कुछ ,,
कभी पिता की कमाई
कभी भाई के अरमान सारे,,,,

सोचती रहती मां बेटी के लिए
हर एक दिन जो बीतता
दे कर हर सुख सुविधा
शायद खरीद लूं खुशियां,,,,

भूल जाती है जाने क्यू वो
वो भी तो लाई थी दान
फ़िर कहा गई उसके हिस्से
की सारी खुशियां, सारे अरमान,,,,

बेटियां कोई बेकार सामान नही
बाप,भाई की कमर तोड़े
ऐसा कोई ब्याज का दाम नहीं
बंद कर दो समझना बोझ इसको
यह घर की शान है, कबाड़ नहीं,,,,,

जब वक्त और पैसा दोनो बराबर
बेटा और बेटी की परवरिश बराबर
फिर शादी में खर्चा भी हो बराबर
यह होगा तब ही समाज होगा बराबर ,,,,,

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Literature News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like