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"भक्ति, प्रकृति व संस्कृति का संगम है गवरी"

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20 Dec 25
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"भक्ति, प्रकृति व संस्कृति का संगम है गवरी"

राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय उदयपुर के भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र द्वारा शनिवार को वागड़ के संत पुज्य गोविन्द गुरू जयंती पर "जनजातीय गौरव: आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मानबिन्दू" विषयक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

केन्द्र संयोजक प्रो नवीन कुमार झा ने प्रस्तावना रखी और प्राचार्य प्रो दीपक माहेश्वरी ने शुभारंभ भाषण दिया। सदस्य डॉ सुनील खटीक ने समापन वक्तव्य दिया।

अंत में संयोजक प्रो नवीन झा और वरिष्ठ सदस्य प्रो डीके मीणा ने पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया। प्रथम पुरस्कार प्रियांशी चौबिसा, द्वितीय जया जांगिड, तृतीय नीतू कौर सोलंकी और सांत्वना पुरस्कार नेहा वांवला, वीणा कटारा, उर्मिला मीणा, हिना खटीक व दिव्या लोहार को दिया गया।

भाषण प्रतियोगिता की सभा को संबोधित करते हुए प्रतिभागी छात्रा वीणा कटारा ने श्रम व नैतिक आधारित जीवन और प्रकृति व पूर्वज पुजा को जनजाति परंपरा से जोड़ते हुए कहा कि इनका प्रकटीकरण लोक गीत, नृत्य, त्यौहार व मेले के रूप में होता है। आध्यात्म हमें कम में संतोष व अधिक में त्याग करने की सीख देता है। वंशिका भूरावत ने कहा कि जो अपने मूल को भूल जाता है वो अपनी शक्ति खो देता है। मोनिका गांछा ने कहा कि आध्यात्मिक परंपरा जनजाति समाज को अपने अस्तित्व, पूर्वज व प्रकृति से जोड़ती है। जया जांगिड ने कहा कि पर्यावरण संकट व नैतिक पतन से जुझ रहे समाज को आध्यात्मिक मूल्यों को अपनाने की जरूरत है। संध्या कुशवाह ने कहा कि आध्यात्म धार्मिक अनुष्ठान को नैतिकता से जोड़ता है। नेहा वांवला ने कहा कि जनजाति समाज एक बरगद की तरह है जिसकी खुशहाल शाखाएं है प्रकृति व मानवता और इसकी मजबूत जड़े संस्कृति है। कृष्णा पारगी ने पुज्य गोविन्द गुरू द्वारा रचित 'भूरेटिया नई मानू रे मानू' के गीत की प्रस्तुति दी। खुशी चौबिसा ने कहा कि युवा आध्यात्म से जुडेगा तो देश का भविष्य स्वर्णिम होगा। हर्षिता मेघवाल ने कहा कि गोविन्द गुरू के एक हाथ में भक्ति की माला और दूसरे हाथ में क्रांति की मशाल थी। उन द्वारा स्थापित सफेद नेजा (ध्वज) शांति व पवित्रता का प्रतीक है, जो जनजाति परिवार अपने मकानों के बाहर आध्यात्मिक संकेत के रूप में उपयोग करते है। आध्यात्म व सेवा मिलते है तो अजेयशक्ति का निर्माण होता है। गोविन्द गुरू ने वागड़ में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव रखी। कुशबा भील ने कहा कि आध्यात्म प्रकृति व परमात्मा के साथ समन्वय है। नदी माता की तरह हमारा पोषण करती है। माया भट्ट ने औषधीय ज्ञान, प्रिया शाक्य ने गोवर्धन पुजा व अन्नकूट पर अपने विचार साझा किये। 
दिव्या लौहार ने गौत्र व्यवस्था व पितृ पूजन को जनजाति परंपरा के प्रमुख अंग बताया। नीतू कौर ने कहा कि गोविन्द गुरू संस्कृति व साहस के संरक्षक थे। नफीसा ने कहा कि जनजाति समाज की यह आध्यात्मिक शक्ति है कि वे प्रकृति के निकट और सह-अस्तित्व स्वीकार करते है और इस तरह अभावों में भी खुश है। हिना खटीक ने कहा कि खेलिए भक्ति में सराबोर होकर थाली मादल पर नृत्य साधना करते है।

कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती माँ व संत गोविन्द गुरू के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुआ और समापन पुरस्कार वितरण व राष्ट्रगान के गायन के साथ हुआ।

कार्यक्रम में निर्णायक डॉ सुदर्शन सिंह राठौड़, डॉ अनुपम व डॉ किरण मीणा थे। संचालन डॉ कैलाश नागर ने किया।
इस दौरान केन्द्र नोडल अधिकारी प्रो अशोक सोनी, संकाय सदस्य प्रो डीके मीणा, प्रो बिन्दू कटारिया, प्रो दिव्या हिरण, डॉ भव शेखर, डॉ सरोज कुमार, डॉ सागर सांवरिया, डॉ प्रहलाद धाकड़, डॉ वैशाली देवपुरा, डॉ मंजू खत्री सहित बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित रही।


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