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“कांतारा चैप्टर 1 – आस्था, आत्मसम्मान और अद्भुत भव्यता की कथा”

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05 Oct 25
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“कांतारा चैप्टर 1 – आस्था, आत्मसम्मान और अद्भुत भव्यता की कथा”

साल 2022 में आई कांतारा ने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी थी। यह केवल एक फिल्म नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव था जिसने दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ी। अब निर्देशक और अभिनेता रिषभ शेट्टी उसी जादू को एक नई ऊँचाई पर ले जाते हैं कांतारा चैप्टर 1 के साथ — एक विशाल प्रीक्वल जो श्रद्धा, सत्ता और संस्कृति के संघर्ष को भव्य रूप में प्रस्तुत करता है।


फिल्म तुलुनाडु के पवित्र और रहस्यमयी जंगलों में स्थापित है। कहानी है बेरमे (रिषभ शेट्टी) की — एक निडर आदिवासी योद्धा जो अपने समुदाय के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए राजशाही के खिलाफ खड़ा होता है। कदंब वंश के राजा (जयाराम) और युवराज कुलशेखर (गुलशन देवैया) ईश्वरना हूठोटा नामक उस पवित्र भूमि पर अधिकार जमाना चाहते हैं, जिसे स्थानीय लोग “देवताओं का बगीचा” मानते हैं। लेकिन बेरमे के भीतर की ईश्वरीय शक्ति इस अत्याचार के खिलाफ विद्रोह बनकर उभरती है।

एक भावुक दृश्य में बेरमे अपनी माँ (मंगला) से कहता है कि व्यापार और काम सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि सम्मान और अस्तित्व की पहचान है। यही संवाद फिल्म के मूल भाव को परिभाषित करता है — आत्मसम्मान और अस्तित्व की लड़ाई।

दृश्यात्मक रूप से कांतारा चैप्टर 1 अद्भुत है। छायाकार अरविंद कश्यप का कैमरा हर फ्रेम को जीवंत बना देता है — बारिश, धूल, आग और पसीने से भीगी धरती मानो खुद बोल उठती है। रथ पर आधारित एक्शन दृश्य, देव नृत्य, और युद्ध के दृश्य इतने प्रभावशाली हैं कि दर्शक सांस रोककर देखते हैं।

संगीतकार अजनीश लोकनाथ का संगीत इस फिल्म की आत्मा है। ब्रहमकलशा और रेबल गीत ऊर्जा से भरपूर हैं और कथा को ऊँचाई प्रदान करते हैं। पृष्ठभूमि संगीत में देवत्व और विद्रोह दोनों की धड़कन महसूस होती है।

रिषभ शेट्टी का अभिनय अपने आप में एक अध्याय है। उनका आध्यात्मिक रूपांतरण — जब देवत्व उन पर हावी होता है — दर्शकों को झकझोर देता है। रुक्मिणी वसंत अपने सशक्त संवाद और भावनात्मक प्रस्तुति से फिल्म को एक गहराई देती हैं।

पहले भाग में कुछ संपादन और लय की समस्याएं जरूर दिखती हैं। कुछ दृश्यों में हल्का हास्य गंभीरता को तोड़ देता है, लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म अपनी पूरी गति और भव्यता में लौट आती है।

फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी सांस्कृतिक प्रामाणिकता है। आदिवासी परंपराएं, वेशभूषा, और रीति-रिवाज इतने वास्तविक लगते हैं कि दर्शक खुद उस दुनिया में उतर जाते हैं।

कहानी यह भी बताती है कि मनुष्य और देवत्व एक-दूसरे से अलग नहीं हैं — दोनों मिलकर ही जीवन की दिशा तय करते हैं। कांतारा चैप्टर 1 भले ही पहली फिल्म जितनी भावनात्मक गहराई न रखती हो, लेकिन इसका पैमाना, तकनीक और दृष्टि इसे एक असाधारण सिनेमा अनुभव बनाते हैं।

उदयपुर के दर्शक इस अद्भुत सिनेमाई और आध्यात्मिक यात्रा को अब आईनॉक्स में बड़े पर्दे पर देख सकते हैं। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का जीवंत उत्सव है — जिसे हर सिनेमा प्रेमी को महसूस करना चाहिए।


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