सर्द हवा वाली रात है।
महिपाल बरामदे में बैठा हुक्का पी रहा है। डोर बेल बजती है।
छोटी बहू बानी रसोई घर से दौड़ी दौड़ी आती है और दरवाजा खोलती है । नरपत और आकाश दोनों ही कपड़े की दुकान से लौट कर आते हैं।
महिपाल “ नरपत और आकाश तुम दोनों को समय का भान नहीं है ठंड का मौसम है, रात के बारह बजे हैं तुम्हें भोजन की भी चिंता नहीं है। तुम्हारी मां प्रमिला कब से रसोई घर में तुम्हारे खाने के लिए इंतजार कर रही है, समय का ध्यान रखा करो”
नरपत “ पूज्य पिताश्री व्यवसाय में समझौता करना मुझे कतई बर्दाश्त नहीं रोटी का क्या है रोटी तो खा लेंगे लेकिन व्यवसाय बहुत जरूरी है”
आकाश “ पिताश्री बड़े भाई साहब नरपत जी का मैं सहयोगी हूं जब वे खाना खाएंगे तभी मैं खा पाउंगा जब वे दुकान से आएंगे तभी मैं भी आ पाऊंगा इसलिए आपसे क्षमा चाहता हूं”
महिपाल “ चलो अब तुम लोग खाना खा लो , बड़ी बहू सुगना, छोटी बहू बानी और तुम्हारी मां प्रमिला तीनों रसोई घर में तुम्हारा इंतजार कर रही है “
प्रमिला “ आ गए मेरे लाडलो चलो अब गरमा गरम रोटी खा लो “
नरपत “ मां व्यवसाय में जब तक बढ़िया मुनाफा ना हो तब तक रोटी मेरे गले से न उतरे लेकिन आपका प्यार मुझे रोटी खाने के लिए मजबूर कर देता है हंसते हुए आपकी डांट खाने से अच्छा है कि मैं रोटी खा लूं और ठहाका लगाता है हा हा हा”
आकाश “ बड़े भाई साहब जैसे करते हैं उनका अनुकरण माताश्री मुझे करना होता है इसलिए आपसे क्षमा चाहता हूं”
प्रमिला “ छोटी बहू बानी तुम रोटी सेको, बड़ी बहू सुगना तुम थाली परोसो , तब तक मैं अपने लाडलो को निहारती हूं”
आकाश “ माताश्री आपका यह लाड प्यार हमारी भूख को ही मिटा देता है आपका यह प्रेम अद्भुत है”
प्रमिला “ मेरे लाडलो अब तुम रोटी खा लो”
रात के दो बज गए हैं प्रमिला और महिपाल सो रहे हैं उधर छोटी बहू और बड़ी बहू रसोई का सारा काज करके अपने अपने सोने के लिए चली गई
अगले दिन आकाश दुकान के लिए कपड़े खरीदने के लिए दोपहर बारह बजे की ट्रेन से सूरत रवाना होता है
मां प्रमिला बड़े प्रेम से अपने बेटे आकाश को सूरत के लिए रवाना करती है।
करीब शाम पांच बजे ट्रेन दुर्घटना में आकाश की मृत्यु का समाचार घर वालों के पास आता है
हंसते खेलते परिवार में मातम छा जाता है कल तक जो परिवार खुशियों से सराबोर था, आज उसी परिवार को मातम की काली छाया ने घेर लिया है।
मां प्रमिला बेटे की मृत्यु का समाचार पाते ही आगबबूला हो जाती है।
प्रमिला अपनी छोटी बहू बानी से कहती है “ कलमूहीं खा गई मेरे बेटे को , पहले चार-चार बेटियां पैदा कर दी पोते का मुंह तो दिखा नहीं पाई। बेटा था उसे भी तू खा गई , चल तेरी असली जगह दिखाती हूं बानी को घसीटते हुए अंधेरी कोठरी में धकेल देती है , अब तेरी असली जगह यही है पड़ी रह ।
बानी रोती बिलखती आकाश की यादों को याद करती हुई उस अंधेरी कोठरी में अकेले सिसकियां ले रही है लेकिन उसकी सिसकियां किसी के भी हृदय में सहानुभूति पैदा नहीं कर पाती है।
सवेरे प्रमिला गुस्से में अंधेरी कोठरी में आती है और बानी से कहती है “ ये ले सफेद साड़ी, उतार दे लाल चूड़ियां, पोछ ले अपने माथे का सिंदूर, अब तू विधवा है तुझे मेरे हिसाब से चलना होगा और इस सफेद साड़ी को पहनना होगा”
मोहल्ले भर की स्त्रियां आज महिपाल के घर आकाश की शोकसभा में शामिल होने के लिए आती है।
मां प्रमिला स्त्रियों से कहती है “ मेरा बेटा आकाश बहुत ही समझदार और होनहार था मेरी आंखों का तारा था लेकिन ऐसी अपशकुनी बहू बानी को लाकर मैंने बहुत भारी गलती की पहले तो उसने मेरे बेटे का वंश नहीं बढ़ाया और चार-चार बेटियां पैदा कर दी और अब रही सही कसर मेरे बेटे को खाकर पूरी कर ली”
एक स्त्री कहती है “ सही कहा काकी आपने , बानी बहु पूरी की पूरी अभागी है पहले बेटे का मुख नहीं देख पाई चार-चार बेटियां जन दी और अब पति का मुख नहीं देख पाएगी “
प्रमिला को सांत्वना देते हुए मोहल्ले की स्त्रियां बानी बहू से मिलने की बात कहती है और कहती है की बानी बहू कहां है?
प्रमिला “ चलो मैं आप लोगों को बानी बहू के पास ले चलती हूं”
प्रमिला और मोहल्ले की स्त्रियां अंधेरी कोठरी में प्रवेश करती है बानी उन्हें देखती हैं और रोने लगती है
प्रमिला कहती हैं “ अब तू रोने धोने का नाटक मत कर तुझे जो करना था कर गई तू आखिरकार खा गई मेरे बेटे को”
तभी एक स्त्री कहती है “ बानी बहू तू तो बड़ी अभागन है पहले तू बेटा पैदा नहीं कर पाई और अब अपने पति को ही खा गई तेरी जैसी अभागी मैंने कहीं नहीं देखी”
प्रमिला और मोहल्ले की स्त्रियां अंधेरी कोठरी से बाहर निकलती है और बानी अंधेरी कोठरी में अकेले आकाश की यादों के साथ बिलखती है ।
आकाश की मृत्यु को एक माह हो गया है प्रमिला दिनों दिन कड़वी होती जा रही है उसका व्यवहार बानी के प्रति बड़ा ही अशोभनीय हो गया है।
अभी भी बानी अंधेरी कोठरी में सफेद साड़ी में लिपटी अपने वैधव्य को जीने के लिए मजबूर और असहाय है
खाने के लिए बानी को सिर्फ दलिया दिया जाता है, जिसके कारण उसका शरीर दुबला होता जा रहा है एक तरफ पति के जाने का गम उसे अंदर ही अंदर तोड़ रहा है तो दूसरी तरफ भोजन नहीं मिल पाने के कारण
उसका स्वास्थ्य उसका साथ नहीं दे पा रहा है।
कड़कड़ाती हुई ठंड में बिछाने के लिए मात्र बानी के पास चटाई है ठंड से बचने के लिए ओढने के नाम पर कुछ भी नहीं है।
सांस प्रमिला बानी की कोठरी में आती है ।
बानी से कहती है “ ये ले दलिया खा ले दलिया अब तेरे नसीब में रोटी नहीं केवल दलिया है मेरे जवान बेटे को खा गई अब तू खा दलिया”
बड़ी बहू सुगना ने चार बेटे थे इसीलिए सांस की भी लाडली थी। सांस प्रमिला को बुलाने के लिए सुगना भी बानी की कोठरी में आती है ।
सांस प्रमिला सुगना को देखती हैं और कहती है “ सुगना मेरी लाडली बहू मुझे ढूंढते हुए तू यहां आ गई, तूने तो मेरी सारी ख्वाहिश पूरी की मुझे चार पोते दिए और घर का काम भी बहुत अच्छे से करती है और इस अभागन को देख इसने मुझे पोतो का सुख भी नहीं दिया और जो मेरा बेटा था उसे भी निगल गई, तू इस कोठरी में मत आया कर मैं इस अभागन का साया तुझ पर नहीं पड़ने देना चाहती”
सुगना “ जी मांजी, जैसा आपका आदेश”
प्रमिला “ इसे कहते हैं संस्कारी बहू मेरी प्यारी सुगना बहू”
सुगना “ बानी देवरानी , तुम्हारी वजह से मांजी को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए, तुमने बेटे को जन्म नहीं दिया इसका दर्द मांजी को था और अब तुमने इनके बेटे आकाश देवर जी को ही निगल लिया है इसका दर्द भी इन्हें है तुम्हारा अभागापन न जाने कब तक हम लोगों को खाता रहेगा”
तभी अचानक से महिपाल के तेज स्वर को सुनते ही प्रमिला और सुगना महिपाल के पास जाती है।
महिपाल प्रमिला से कहता है एकांत में चलो तुमसे कुछ बात करनी है।
महिपाल और प्रमिला दोनों कमरे में जाते हैं।
महिपाल “ हमारे बेटे आकाश को गए हुए दो माह से ऊपर हो गए हैं अब मैं जो तुम्हें कहता हूं वह तुम कान खोल कर सुन लो । यह लो काली चूड़ियां और काली साड़ी तुम्हारे लिए”
प्रमिला “ यह सब क्या लेकर आ गए हो मेरे लिए काली चूड़ियां और काली साड़ी”
महिपाल “ आकाश के नहीं रहने पर तुम सफेद साड़ी बानी बहू के लिए लाकर देती हो मेरे जिंदा रहते हुए तुम यह काली साड़ी और काली चूड़ियां क्यों नहीं पहन लेती हो?”
प्रमिला “ देखो जी, आप ऐसा उलट-पुलट व्यवहार क्यों कर रहे हो?”
महिपाल “ अच्छा तो हमारा व्यवहार उलट-पुलट है और तुम्हारा व्यवहार बानी बहू के प्रति अच्छा है, हमने बहुत साहस जुटाया तब जाकर निर्णय लिया कि तुम जो कर रही हो बानी बहू के साथ वह बिल्कुल उचित नहीं है, तुम्हारे द्वारा उसे अंधेरी कोठरी में रखना, सफेद साड़ी पहनने के लिए मजबूर करना, बिछाने के लिए चटाई देना, कड़कड़ाती ठंड में ओढ़ने के लिए कुछ नहीं देना, खाने के नाम पर मात्र दलिया देना, दिन रात उसे अभागी होने के ताने देना यह सब ठीक है। तुम्हारा यह व्यवहार कहां तक उचित है बानी बहू के प्रति”
प्रमिला “ मुझे क्षमा कर दीजिए मुझसे भारी गलती हो गई। मैं रूढ़ियों और आडंबरों में बंधी रहकर न जाने कितने कुकृत्य बानी बहू के साथ कर गई। आज आपने मेरी आंखें खोल दी। वैधव्य कोई अपराध नहीं है , जिसके लिए यह रूढ़िवादी समाज दंड देता है, तिल तिल घुलकर जीने लिए मजबूर करता है , अब मैं इन रूढ़ियों और आडंबरों का त्याग करती हूं , बानी बहू को अंधेरी कोठरी से बाहर निकालकर सामान्य जीवन जीने के लिए इजाजत देती हूं अब उसे वैधव्य बंदी नहीं बना पाएगा , स्वाभिमान के साथ स्वावलंबिनी बनने की अधिकारिणी भी अब वह बन पाएगी”
महिपाल “ शाबाश प्रिये शाबाश। तुम्हारा यह निर्णय समाज की रूढियो और आडंबरों पर करारा प्रहार है, वैधव्य अभिशप्त नहीं रहेगा । जब समाज उसके प्रति अपना दृष्टिकोण बदलेगा और इसकी शुरुआत तभी संभव है जब स्त्री स्त्री की सहयोगी बनकर इन आडंबरो और रूढियो के खिलाफ मोर्चा उठायेगी”
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