आज रविवार दिनांक 7-12-2025 को हम प्रातः आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के रविवासरीय साप्ताहिक सत्संग में सम्मिलित हुए। सत्संग का आरम्भ प्रातः 8.30 बजे आर्यसमाज के पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी के द्वारा सामूहिक यज्ञ से हुआ। यज्ञ के पश्चात आर्यसमाज के सभागार में सत्संग आरम्भ हुआ। आरम्भ में श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की कन्याओं ने भजन गाया। उसके बाद सामूहिक प्रार्थना सम्पन्न की गई। आर्यसमाज के पुरोहित जी ने ऋषि दयानन्द जी के जीवन चरित्र से कुछ प्रसंगों का पाठ किया। उन्होंने दो भजन भी प्रस्तुत किये। आज के सत्संग में सहारनपुर के आर्यसमाज के युवा विद्वन श्री मोहित कुमार शास्त्री जी व्याख्यान के लिए आमंत्रित थे।
श्री मोहित कुमार शास्त्री ने अपने व्याख्यान के आरम्भ में कहा कि मनुष्य की मृत्यु होने पर उसकी जीवात्मा अकेले ही संसार से जाती है। हमने संसार में जो धन सम्पत्ति इकट्ठी की हुई होती है वह हमारे साथ नहीं जाती, यही संसार में छूट जाती है। विद्वान वक्ता ने तीन प्रकार के मनुष्य के कर्मों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्रथम क्रियमाण कर्म हमारे वर्तमान काल में किये जाने वाले कर्मों को कहते हैं। हम कर्म करने में स्वतन्त्र होते हैं। हम जो कर्म करते हैं और जिनका हमें साथ साथ फल नहीं मिलता वह कर्म संचित कर्म की श्रेणी में आते हैं। प्रारब्ध कर्म उन कर्मों को कहते हैं जो हमने पहले किये होते हैं, जो संचित कर्म कहलाते हैं तथा जिनका फल व भोग हमें कालान्तर में प्राप्त होता है। आचार्य मोहित शास्त्री जी ने कहा कि मनुष्य अपने वर्तमान के कर्मों में सुधार कर अपने संचित एवं प्रारब्ध के कर्मों को सुधार सकता है। शुभ व अच्छे कर्मों का फल सुख प्रदान करने वाला तथा अशुभ कर्मों का परिणाम दुःख देने वाला होता है। शास्त्री जी ने कहा कि हमारे बुरे संस्कार हमें जीवन भर परेशान करते वा दुःख देते हैं। उन्होंने कहा कि जिन मनुष्यों के संस्कार अच्छे होते हैं वह जीवन भर अच्छे कर्म करते हैं तथा उनको अन्यों की तुलना में अधिक सुख प्राप्त होता है। आचार्य जी ने कर्म से सम्बन्धित कुछ प्रेरक कथायें व प्रसंग भी श्रोताओं को सुनायें। रत्नाकर डाकू जो बाद में ऋषि बाल्मीकि बने, उस कथा को भी आचार्य जी ने श्रोताओं को सुनाया। उन्होंने महापुरुषों की प्रेरणा व स्वाध्याय से होने वाले संस्कारों में परिवर्तन के कुछ प्रसंग भी श्रोताओं को सुनाये। आचार्य जी ने बताया कि महाराजा जनक का जीवन साधुओं के समान तप व त्याग का जीवन था तथा उन्हें विदेह की संज्ञा प्राप्त है।
आचार्य मोहित शास्त्री जी ने बताया कि यज्ञ की आत्मा ‘स्वाहा’ शब्द होता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति यज्ञ से प्रेरणा लेकर यज्ञ के घृत, समिधाओं एवं साकल्य की भांति समर्पित भाव से आगे बढ़ेगा तभी वह सफलता व सुख को प्राप्त होगा। उन्होंने यह भी कहा कि स्वाहा का मर्म अपने आपको यज्ञ व सत्कर्मों में समर्पित कर देना है। आचार्य जी ने कहा कि जो मनुष्य पाप कर्मों को करते हैं उनकी मृत्यु जल्दी होती है। इस क्रम में आचार्य जी ने गीता में कृष्ण व अर्जुन संवाद से कुछ प्रसंग भी प्रस्तुत किये। आचार्य जी ने कहा कि जो मनुष्य पाप अधिक करते हैं उनका अगला जन्म तुरन्त पशु व कीट पतंग आदि योनियों में होता है। आचार्य मोहित कुमार जी ने कहा कि जो मनुष्य अपने कर्तव्यों को करते हुए भक्ति करता है वह परमात्मा की शरण में रहता है। उस मनुष्य का पुर्नजन्म तुरन्त न होकर कुछ समय पश्चात होता है। यह सम्भव है कि ऐसे मनुष्य को मनुष्य का ही जन्म प्राप्त हो। आचार्य जी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जो मनुष्य वेद विहित कर्मों सहित परोपकार के कर्मों को अधिक करते हैं उन्हें परमात्मा मोक्ष प्रदान करते हैं।
वैदिक विद्वान पं. मोहित शास्त्री जी ने कहा कि यज्ञ के प्राण ‘इदन्न न मम’ होते हैं। इसका अर्थ है कि हमारे पास व संसार में जो है वह सब ईश्वर का है, हमारा अपना नहीं है। आचार्य जी ने कहा कि हमें यह भावना अपनानी होगी कि जो कुछ मेरे पास है वह परमात्मा का दिया हुआ है, वह मेरा अपना नहीं है। विद्वान वक्ता ने कहा कि मनुष्य की असली दौलत उसके अच्छे संस्कार होते हैं। उन्होंने कहा कि जिस मनुष्य की सन्तानें अच्छे संस्कारों से युक्त हैं, वही मनुष्य असली दौलत से युक्त हैं। यज्ञ के सार की चर्चा कर उन्होंने कहा यज्ञ का सार ‘सुगन्ध’ है। उन्होंने कहा कि जहां शुद्ध यज्ञ के पदार्थों घृत, सामग्री एवं समिधाओं से यज्ञ किया जाता है वहां का सारा वातावरण सुगन्धित होता है। वहां जो सुगन्ध फैलती है वही यज्ञ का सार कहलाती है। इसके आगे विद्वान वक्ता ने कहा कि यदि हमारा जीवन परोपकारमय होगा तो हमारे जीवन से भी सुगन्ध उत्पन्न होगी। अपने व्याख्यान का समापन करते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन को सारगर्भित बनाकर उसे समर्पित भाव से व्यतीत करना होगा। इसी के साथ आचार्य जी ने अपने वक्तव्य को विराम दिया।
आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने विद्वान वक्ता श्री मोहित कुमार शास्त्री जी के आज के सुन्दर एवं प्रेरक व्याख्यान के लिए उनका धन्यवाद किया। उन्होंने सूचनायें भी दी। उन्होंने कहा कि आगामी 12 व 13 दिसम्बर को स्थानीय आर्यसमाज राजपुर, देहरादून का दो दिवसीय वार्षिकोत्सव सम्पन्न होगा। प्रधान जी ने रविवार दिनांक 21 दिसम्बर, 2025 को श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम में स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस के मनाये जाने की जानकारी भी सदस्यों को दी। कार्यक्रम की समाप्ति पर संगठन सूक्त के मन्त्रों के पाठ सहित शान्ति पाठ भी किया गया। इसी के साथ आज का सत्संग समाप्त हुआ। आज सम्पन्न हुए सत्संग में श्री कुलभूषण कठपालिया जी, श्री देवकी नन्दन शर्मा, श्री देवेन्द्र सैनी जी, श्री प्रीतम सिंह आर्य जी, श्री बसन्त कुमार जी, श्री पवन कुमार जी, माता सुदेश भाटिया जी आदि अनेक स्त्री व पुरुषों सहित श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम के बालक व बालिकायें उपस्थित थे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य