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अरावली पर हमला: खनन माफिया नहीं, बड़े उद्योगपति भी निशाने पर

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23 Dec 25
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अरावली पर हमला: खनन माफिया नहीं, बड़े उद्योगपति भी निशाने पर

उदयपुर | माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अरावली पर्वतमाला संरक्षण को लेकर देशभर में उठी आवाज़ के बीच उदयपुर देहात जिला कांग्रेस कमेटी ने कड़ा और स्पष्ट वक्तव्य जारी किया है। जिला अध्यक्ष रघुवीर सिंह मीणा ने चेताया कि अरावली आज सिर्फ खनन माफियाओं की नहीं, बल्कि बड़े उद्योगपतियों की भी लालसा का केंद्र बन चुकी है।

मीणा ने कहा, “अरावली का बड़ा हिस्सा राजस्थान में है और मेवाड़ इस निर्णय से सबसे अधिक प्रभावित होगा। इतिहास गवाह है—महाराणाओं ने इन्हीं अरावलियों की शरण में रहकर मेवाड़ के स्वाभिमान और पर्यावरण की रक्षा की। आज भाजपा शासित केंद्र, राजस्थान और हरियाणा सरकारों की रिपोर्टों के आधार पर लिया गया यह फैसला सिर्फ खनन का मुद्दा नहीं, बल्कि पहाड़ियों और ज़मीनों पर सुनियोजित कब्ज़े की तैयारी है। अरावली हमारा सुरक्षा कवच है; इसे कमजोर किया गया तो पर्यावरण तहस-नहस होगा और हमारी आने वाली पीढ़ियां असुरक्षित होंगी।”

उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि सोशल मीडिया के साथ-साथ धरातल पर भी आंदोलन कर केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाएं, ताकि इस फैसले पर पुनर्विचार हो।
“मुख्यमंत्री यदि जनता के साथ हैं, तो सुप्रीम कोर्ट में अरावली संरक्षण के लिए मज़बूती से पैरवी करें,” मीणा ने कहा।

उदयपुर देहात जिला कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. संजीव राजपुरोहित ने तीखा सवाल उठाते हुए कहा,
“विधानसभा चुनाव में भाजपा ने संकल्प पत्र में केंद्र के साथ मिलकर अरावली को सुरक्षित रखने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाने का वादा किया था। आज वही सरकारें मिलकर इसे अवैध खनन कॉरिडोर में बदलना चाह रही हैं।”

डॉ. राजपुरोहित ने वैज्ञानिक दृष्टि से समझाते हुए कहा,
“अरावली केवल पहाड़ नहीं, बल्कि राजस्थान सहित कई राज्यों की जीवन रेखा है। यह एक निरंतर श्रृंखला है—छोटी पहाड़ियां भी उतनी ही अहम हैं जितनी ऊंची चोटियां। दीवार से एक ईंट भी निकली, तो सुरक्षा टूट जाती है। अरावली कुदरत की बनाई ‘ग्रीन वॉल’ है, जो थार की रेत और लू को दिल्ली, हरियाणा और यूपी के उपजाऊ मैदानों तक पहुंचने से रोकती है। यदि खनन के लिए रास्ते खुले, तो रेगिस्तान हमारे दरवाज़े तक आ जाएगा और तापमान भयावह रूप से बढ़ेगा।”

संदेश स्पष्ट है:
अरावली बचेगी तो जीवन बचेगा। संरक्षण नहीं हुआ, तो भविष्य की कीमत चुकानी पड़ेगी।
अब निर्णय सरकारों के हाथ में नहीं—जनता की चेतना और संघर्ष ही अरावली की ढाल बनेगा।


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