राजस्थान सरकार और कुलाधिपति द्वारा जैसे ही प्रो. बी.पी. सारस्वत को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर का कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया गया, किसी ने कल्पना नहीं की थी कि मात्र तीन कार्यदिवस में वे वह तेज़ी ला देंगे जिसकी प्रतीक्षा कैंपस महीनों से कर रहा था। दृढ़ प्रशासनिक शैली, दीर्घ शैक्षणिक अनुभव और जमीनी सामाजिक समझ के लिए पहचाने जाने वाले प्रो. सारस्वत ने पद संभालते ही स्पष्ट कर दिया—विश्वविद्यालय की धुरी ‘छात्र’ हैं।
22 वर्ष विश्वविद्यालयों में और 17 वर्ष महाविद्यालयों में कार्य, साथ ही चार से अधिक विश्वविद्यालयों में एक साथ जिम्मेदारी—यह अनुभव उन्हें न सिर्फ सक्षम बनाता है, बल्कि यह भूमिका उनके लिए केवल औपचारिक नहीं, बल्कि संपूर्ण निष्ठा से निभाए जाने वाला कर्तव्य लगता है।
अनुभव और विचारधारा से गढ़ा व्यक्तित्व
अजमेर से शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रो. सारस्वत ने शिक्षण, सामाजिक संवाद और संगठनात्मक कार्यों का लंबा सफर तय किया है। वाणिज्य के अनुभवी प्राध्यापक के रूप में ही नहीं, बल्कि जनसामान्य की नब्ज़ समझने वाले प्रशासक के रूप में भी उनकी पहचान है। ज़िले स्तर पर छह वर्ष की संगठनात्मक भूमिका ने उन्हें जमीनी मुद्दों से जोड़ा।
संगठनात्मक विचारधारा से जुड़े रहने को वे जनता से भावनात्मक जुड़ाव का आधार बताते हैं—लोगों की समस्याएँ, उनकी आकांक्षाएँ और उनकी सांस्कृतिक पहचान उनके काम की प्रेरणा है।
महाराणा प्रताप की भूमि का सम्मान
उदयपुर उनके लिए केवल कार्यस्थल नहीं, बल्कि प्रेरणा की मिट्टी है। बचपन से सुनी महाराणा प्रताप की कथाएँ—साहस, सेवा, न्याय और सत्य के लिए अकेले खड़े होने का आदर्श—उन्हें भावनात्मक रूप से जोड़ता है। वे मानते हैं कि इस पवित्र भूमि पर कार्य करना सौभाग्य भी है और जिम्मेदारी भी।
"कार्यवाहक नहीं—पूर्ण अधिकारों वाला कुलपति"
हालाँकि वे कार्यवाहक कुलपति के रूप में नियुक्त हुए हैं, पर सीमित भूमिकाओं की धारणा को वे अस्वीकार करते हैं। उनके शब्दों में,
“कुलपति, कुलपति होता है—चाहे समय कम हो या अधिक, जिम्मेदारी पूर्ण रहती है।”
तीन दिनों में ही उनके निर्णयों से यह स्पष्ट हो गया—
छात्रों को मिलने के लिए अपॉइंटमेंट की आवश्यकता नहीं।
कुलपति कक्ष से ‘नियत समय’ वाली पट्टिका हटवा दी गई।
विद्यार्थी किसी भी समय कार्यालय समय में, और आवश्यकता पड़े तो निवास पर भी मिल सकते हैं।
“छात्र विश्वविद्यालय के देवता हैं”
वाणिज्य से जुड़े होने के कारण वे कहते हैं:
“जैसे व्यवसायी ग्राहक को देवता मानता है, विश्वविद्यालय को छात्रों को देवता मानना चाहिए।”
वे स्पष्ट करते हैं कि विश्वविद्यालय, उसके विभाग, कर्मचारी और प्रशासन—सभी छात्रों के कारण ही अस्तित्व में हैं। युवा भावनात्मक होते हैं—नारे लगाते हैं, असहमति जताते हैं—पर इसे वे अपरिपक्वता मानते हैं, विद्रोह नहीं।
“हम उनके भविष्य को नष्ट नहीं कर सकते,” वे कहते हैं। “जो संभव है वह करेंगे, जो नहीं हो सकता उसे समझाएंगे।”
प्राध्यापकों के प्रति गहरी श्रद्धा
प्रोफेसर के पद को वे सर्वोच्च शैक्षणिक सम्मान मानते हैं—जो योग्यता, पूर्व कर्म, माता-पिता के आशीर्वाद और ईमानदारी से हासिल होता है। प्रशासनिक पद—कुलपति सहित—सरकार द्वारा दिया गया अस्थायी दायित्व है।
वे उन प्राध्यापकों की आलोचना करते हैं जो छोटे प्रशासनिक पदों के लिए कुलपति को प्रसन्न करने में लग जाते हैं।
उनके अनुसार, प्राध्यापक राजगुरु की भाँति होते हैं, जिन्हें कुलपति भी सम्मान दें और उनसे मार्गदर्शन लें।
डिजिटल क्रांति: छात्रों के लिए नया पोर्टल
उनके नेतृत्व में शीघ्र ही एक व्यापक डिजिटल स्टूडेंट पोर्टल शुरू होने जा रहा है—संभवत: राजस्थान का पहला इस स्तर का पोर्टल। यह छात्रों को देगा—
अंकतालिकाएँ
प्रमाणपत्र
माइग्रेशन प्रमाणपत्र
टाइम-टेबल
परीक्षा शेड्यूल
सभी आवेदन ऑनलाइन
आवेदन की ट्रैकिंग
डिजिटल परिणाम
आदिवासी और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए यह सुविधा अत्यंत सार्थक है। एक प्रमाणपत्र के लिए दिनभर का समय, यात्रा और खर्च समाप्त हो जाएगा। “अगर ऑनलाइन सुविधा है तो छात्र एक प्रमाणपत्र के लिए क्यों परेशान हों?” वे पूछते हैं।
विद्या परिषद में बड़ा प्रस्ताव
अगली बैठक में वे प्रस्ताव रखने जा रहे हैं—
स्नातक होते ही अंकतालिका, माइग्रेशन और प्रोविजनल एक साथ जारी किए जाएँ।
शुल्क संरचना कम की जाए।
विश्वविद्यालय आने की आवश्यकता खत्म हो।
इस मॉडल को वे कोटा विश्वविद्यालय में भी लागू करना चाहते हैं।
नई शिक्षा नीति के कारण सेमेस्टर विलंब
वे स्वीकार करते हैं कि एसई स्कीम और दो बार परीक्षाओं के कारण छात्रों में देरी को लेकर नाराज़गी है। वे आश्वस्त करते हैं कि एक वर्ष में समयबद्धता फिर से सामान्य हो जाएगी।
पीजी के बिना पीएचडी—अफवाह का खंडन
वे स्पष्ट बताते हैं—
कोई प्रस्ताव नहीं आया
सरकार से कोई निर्देश नहीं
अनुसंधान की गुणवत्ता बिना पात्रता कम नहीं की जा सकती
स्टाफ और कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों के मुद्दे
SFS और अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारियों की समस्याओं को वे गंभीरता से ले रहे हैं। राज्य सरकार को पत्र भेजकर मौजूदा व्यवस्था को निरंतर रखने का आग्रह किया है।
भूमि और पेंशन का गंभीर संकट
सुखाड़िया विश्वविद्यालय की भूमि, अतिक्रमण और पेंशन पर पड़ते प्रभाव बड़ी चुनौती हैं। कपूर नामक व्यक्ति के निकट बनी सड़क और भूमि वर्गीकरण में बदलाव पेंशन संसाधनों को प्रभावित कर रहे हैं।
उन्होंने तत्काल कदम उठाए—
यूडीए को पत्र लिखा
अधिकारियों के साथ बैठक तय
पंजाब के राज्यपाल और वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया से चर्चा
750 से अधिक पेंशनरों के भविष्य पर चिंता
राजस्थान में कई विश्वविद्यालय पेंशन संकट से जूझ रहे हैं—जोधपुर और जयपुर की स्थिति गंभीर है। सुखाड़िया विश्वविद्यालय अगले एक-दो वर्ष सुरक्षित रह सकता है, पर दीर्घकालिक समाधान आवश्यक है।
प्रशासनिक फेरबदल: 20 दिनों में बड़ी कार्रवाई
14 अक्टूबर से अब तक—
कंट्रोलर ऑफ एग्ज़ामिनेशन, ओएसडी टू वीसी, चीफ प्रॉक्टर जैसे पदों में बदलाव
पूर्व प्रशासन से जुड़े अधिकारियों की हटाव
छह नई नियुक्तियाँ
कई समितियों का पुनर्गठन
यह केवल बदलाव नहीं, बल्कि प्रशासनिक सोच में परिवर्तन का संकेत है।
समाधान-केन्द्रित नेतृत्व
प्रो. सारस्वत किसी सीमित अवधि वाले कुलपति की तरह कार्य नहीं कर रहे। चाहे अवधि आठ महीने हो या कम-अधिक—वे उसी संपूर्णता से काम करेंगे:
विश्वविद्यालय की संरचनात्मक समस्याओं का समाधान
संसाधनों की सुरक्षा
प्रशासनिक सुधार
छात्रों-प्राध्यापकों को सशक्त करना
तकनीकी और शैक्षणिक बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना
एमएलएसयू का नया अध्याय
मात्र तीन कार्यदिवस में उनकी कार्यशैली ने स्पष्ट कर दिया है कि विश्वविद्यालय में नई ऊर्जा का आरंभ हो चुका है। छात्रों के प्रति संवेदनशीलता, तकनीक की समझ, प्राध्यापकों के प्रति सम्मान, नैतिक दृष्टि और भूमि-पेंशन जैसे मुद्दों पर सक्रियता—यह सब एक दृढ़ और विचारशील नेतृत्व का परिचय देते हैं।
उनका संदेश स्पष्ट है—
विश्वविद्यालय का भविष्य उसके छात्रों में है, और प्रशासन का दायित्व है उस भविष्य को सुरक्षित, सशक्त और समृद्ध बनाना।