कोटा से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका " काव्य - सृजन" का दूसरे वर्ष का चौथा अंक देखने को मिला। मां दुर्गा देवी के प्रतीक से सज्जित आवरण पृष्ठ एक नजर में ही आकर्षक है। पत्रिका के 62 पृष्ठों में विविधताओं के साथ एक सम्पूर्ण साहित्यिक परिवेश की पत्रिका है। पत्रिका में 45 रचनाकारों की कविताओं को सजाया गया है। स्थापित रचनाकारों के साथ-एक परिशिष्ट नई कोपल में पांच नवोदित रचनाधर्मियों को भी स्थान दे कर उन्हें प्रोत्साहित किया है। परस्पर एक-दूसरे की काव्य सृजनशीलता से संवाद करने और समझने का भी प्रभावी माध्यम बन गई है पत्रिका।
** पत्रिका के पृष्ठ 5 से 45 तक राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली,बिहार, राज्यों के विभिन्न स्थानों के 40 रचनाकारों अरविंद कुमार ' मेघ ', डॉ. अर्पणा पांडेय, प्रकाश कसेरा ', अनूप एकलव्य, मंगल व्यास भारती, सलीम स्वतंत्र, हरीश गुप्ता, डॉ.पवन कुमार गुप्ता, डॉ.आदित्य कुमार गुप्त, कैलाश चंद साहू, रमाकांत शर्मा,चेतना प्रकाश चितेरी, महेश पंचोली, डॉ.पूनम सिंह, भारती दिशा, निर्मल ओदिच्य,शमा फिरोज़, लोकेश कुमार मीणा, मानसी मित्तल, डॉ.अंबिका मोदी, गौरीशंकर सोनगरा, राम मोहन गुप्त, प्रियंका रस्तौगी, शोभाग मीणा, निहारिका झा, मधुकर वनमाली,बी.एल.गोठवाल, मंजु मित्तल,दीनबंधु परालिया, राजेश पाली, विजय कुमार शर्मा, अनिता मिश्रा, सुरेश यादव, देवीशंकर बैरवा, मीनाक्षी गोयल, सुनीता मलिक, गरिमा राकेश गौतम, सत्यप्रकाश गौतम,गौरी शंकर रुद्राक्ष एवं ऋतु गुप्ता की विभिन्न विषयों की काव्य रचनाएं प्रभावी हैं।
** नई कोंपल परिशिष्ट में पृष्ठ 45 से 50 तक सोनीपत की रेखा शर्मा ' नीरू ' की
" पिता के आंगन की चिरैया,कोटा के विष्णु शंकर मीना की " चंद्रयान 3 का सफर",
गीतिका शर्मा की " शिक्षक",प्रतिमा शर्मा की "नज़्म" और भीलवाड़ा की शिक्षा अग्रवाल की
" मौन" कविताओं को स्थान दिया गया है।
** आलेख परिशिष्ट में पृष्ठ 51 पर डॉ.जैमिनी पांड्या का विचार परक लेख " भारत की प्रतिभाओं का पलायन", पृष्ठ 52 पर डोली शाह का प्रेरक लेख " मेहनत और आत्मविश्वास" तथा पृष्ठ 53 पर प्रीतिमा पुलक का लोक संस्कृति पर लेख " लोक काला संझा" विविधता लिए हुए हैं।
** हमारे साहित्यकार परिशिष्ट में पृष्ठ 57 पर वरिष्ठ साहित्यकार (कथाकार और समीक्षक) विजय जोशी द्वारा " जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक परिवेश और मानवीय संदर्भों के सशक्त रचनाकार डॉ.प्रभात कुमार सिंघल" में रचनाकार के जीवन यात्रा संदर्भों को विस्तार से बखूबी दर्शाया गया है।
** इतिहास के झरोखे परिशिष्ट में पृष्ठ 62 पर इतिहासकार हंसराज नागर द्वारा लिखित लेख " हाड़ोती का प्रसिद्ध तीर्थ एवं पर्यटक स्थल - कपिल धारा" से परिचय कराता है।
** संपादकीय में संपादक जोधराज परिहार ' मधुकर ' पत्रिका का उद्देश्य बताते हुए लिखते हैं " ऐसी पत्रिका सामाजिक असंतुलन को मिटाने एवम् जन हित नीतियों को फैलाने का उत्तरदायित्व पूर्ण करती है, पाठकों की तार्किक, काल्पनिक,और मानसिक शक्तियों का विकास करती है"। निश्चित ही पत्रिका की विषय वस्तु उद्देश्य को पूरा करने में सफल रही है। डॉ.रामावतार मेघवाल ' सागर ' सह संपादक हैं। पाठकों की दृष्टि में देश के विभिन्न स्थानों से भेजी पाठक प्रतिक्रियाओं को भी शामिल किया गया हैं। अंतिम आवरण पृष्ठ पर पूर्व पत्रिका के विमोचन और साहित्यकारों के सम्मान की चित्रमय झलक प्रस्तुत की गई है।
सारांशत: कह सकते हैं की सीमित साधनों में प्रकाशित यह साहित्यिक पत्रिका समस्त प्रकार के साहित्यकारों के लिए एक उत्कृष्ट मंच और माध्यम है। बहुआयामी साहित्यिक पत्रिका के लिए संपादक जी को अतिशय साधुवाद।