GMCH STORIES

रंगशाला में गूंजी   ‘अमृता’ की पुकार – आत्मविश्वास, अभिव्यक्ति और रंगमंच की एक जीवंत कहानी

( Read 1527 Times)

22 May 25
Share |
Print This Page

रंगशाला में गूंजी   ‘अमृता’ की पुकार – आत्मविश्वास, अभिव्यक्ति और रंगमंच की एक जीवंत कहानी

<br /><img src="http://www.pressnote.in/upload/514406A.jpg" style="max-width:400px; padding:5px;" align="left"><br />


 <br /><img src="http://www.pressnote.in/upload/514406B.jpg" style="max-width:400px; padding:5px;" align="right"><br />
 
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर द्वारा आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ के अंतर्गत 11 मई ( रविवार) को पटियाला,पंजाब की संस्था नाटक कला कृति द्वारा  तैयार नाटक ‘मुझे अमृता चाहिए’ का मंचन शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में किया गया।  
आज के समाज में नारी की स्थिति को दिखाते इस नाटक में एक बहुत महत्वपूर्ण पक्ष को प्रभावी ढंग से दर्शाया  वो था   रंगमंच (थिएटर)  का महत्व |
आज के समाज में भीरु या संकोच वाले व्यक्ति को रंगमंच बहुत मदद कर सकता है | मनोबल बढाने के साथ व्यक्तित्व निर्माण में थियेटर की भूमिका को कोई चुनौती नहीं दे सकता |
इस नाटक की लेखनी में योगेश त्रिपाठी ने समाज में नारी की स्थिति को न केवल गहराई से छुआ, बल्कि थिएटर की शक्ति को भी उकेरा—कैसे रंगमंच किसी भी संकोची, दबे हुए व्यक्ति के भीतर छिपे आत्मविश्वास को जगा सकता है।
 एक सर्वसाधारण युवती स्वयं अपने घर में उपेक्षा की शिकार है |  नाम विजया  है  पर हर पल हारने वाली लडकी |   विजया को अचानक एक नाटक में अभिनय का एक संयोग मिलता है, और यहीं से उसकी आत्म-यात्रा शुरू होती है।
नाटक के रिहर्सल के दौरान उसे अन्य रंगकर्मी प्रोत्साहित  करते हैं , उसके स्वभाव के विपरीत नाटक के चरित्र को निभाते हुए उसे अपने आप को भीतर से देखने का मौक़ा मिलता है और आत्मविश्वास बढ़ता है |  यही गुण उसके नीरस जीवन को संवारता है और उसका व्यक्तित्व निखर जाता है |  नाटक में विजया और अमृता  का किरदार  मंशा पसरीजा के बखूबी  से निभाया |  रवि भूषण  ने संवेदनशील पिता की भूमिका में जान डाल दी |  दिल दिलावर   ने  पुत्तर ( नालायक भाई) की भूमिका में दर्शकों का खासा मनोरंजन किया | अन्य पात्र माँ (अंजू सैनी ),मामाजी (गोपाल शर्मा ),बहु (अंजलि ) ने  जीवंत अभिनय से नाटक को गति दी | अन्य पात्रों  में कलाकार विनोद कौशल ,लक्ष शर्मा ,निर्मल सिंह ,सिमरन कौर ,कुलदीप सिंह  भी  अपनी ज़िम्मेदारी निभाने  में सफल रहे | नाटक के संपादन एवं निर्देशन में रंगमंच अभिनेत्री परमिंदर पाल कौर ने प्रतिभा का परिचय दिया | नाटक की लाईट और साउंड  डिजाइन हरमीत सिंह ने की | संगीत हरजीत गुड्डू ने दिया तथा कलाकारों का मेकअप कुलदीप सिंह ने किया।
यह नाटक सिर्फ मंच पर बोले गए संवादों की प्रस्तुति नहीं था—यह एक सामाजिक वक्तव्य था। यह सिद्ध करता है कि रंगमंच केवल एक कला नहीं, बल्कि परिवर्तन की प्रक्रिया है। नारी सशक्तिकरण, आत्मविश्वास, और अभिव्यक्ति की इस यात्रा में रंगमंच एक मित्र बनकर उभरता है।
हमारी नई शिक्षा नीति भी प्रदर्शन कलाओं को प्रोत्साहित करती है |
रंगशाला में लम्बे अरसे बाद  रंगशाला के प्रदर्शन में  पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर के निदेशक फुरकान खान कलाकारों का उत्साहवर्धन के लिए उपस्थित थे |
--विलास जानवे ---


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like