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राजस्थान को पानी के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए 

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27 May 25
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राजस्थान को पानी के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

गर्मियों में राजस्थान की पेयजल समस्या वास्तव में एक गंभीर मुद्दा है। रेगिस्तान प्रधान राजस्थान एक शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र है, जहां पानी की कमी एक आम समस्या है। गर्मियों में तो यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है, जब तापमान बढ़ जाता है और पानी की मांग बढ़ जाती है।बारिश की कमी इसका एक मुख्य कारण है ।राजस्थान में औसत वर्षा कम होती है, जिससे पानी की कमी होती है।

राजस्थान में भूजल और सतही जल दोनों का भारी अभाव है । राजस्थान में देश के कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत हिस्सा उपलब्ध है। सतही जल और भूजल दोनों की सीमित उपलब्धता के कारण गर्मियों में लोगों को पेयजल  संकट का सामना करना पड़ता है। राज्य सरकार तमाम इंतजाम कर पीने के पानी की आपूर्ति के गंभीर प्रयास करती है और रेल की विशेष बोगियों और टैंकर वाहनों से भी पेयजल पहुंचाने के प्रयास में कमी नहीं रखी जाती लेकिन सुदूर गाँवों और ढाणियों के लोग पानी की समस्या से अधिक ग्रसित रहते है ।

राजस्थान में सतही जल की कुल उपलब्धता लगभग 43.26 बीसीएम (अरब घन मीटर) है, जिसमें से राज्य की सीमा के भीतर उपलब्ध सतही जल 25.38 बीसीएम और विभिन्न अंतरराज्यीय संधियों से आवंटित पानी 17.88 बीसीएम है। वहीं, राजस्थान में भूजल की उपलब्धता राष्ट्रीय संसाधनों का 1.72% है, और यह एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। राजस्थान में देश का लगभग 1 प्रतिशत पानी है, जिसमें सतही जल 1.16 और भूजल 1.70 प्रतिशत है। पानी की दृष्टि से राज्य के 249 प्रखंडों में से केवल 31 प्रखंड सुरक्षित स्थिति में हैं। शेष सभी डॉर्क ज़ोन में है । कई क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता भी एक बड़ी समस्या है। जिससे स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं।राजस्थान में भूजल का लगभग 80 प्रतिशत उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। वहीं पेयजल के लिए 20 प्रतिशतउपयोग किया जाता है, जिस पर राज्य की लगभग 90 प्रतिशत आबादी निर्भर है। शेष जल का उपयोग उद्योगों और घरेलू कार्यों में किया जाता है।राजस्थान में जल संसाधनों की कमी और भूजल के बढ़ते उपयोग के कारण भूजल स्तर में गिरावट आ रही है, जिससे भविष्य में जल संकट की समस्या और बढ़ सकती है।बढ़ती आबादी और औद्योगिकीकरण के कारण पानी की मांग बढ़ रही है।पानी की कमी के कारण कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।साथ ही आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रतिकूल  प्रभाव पड़ता है।

राजस्थान में पेयजल समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार ने कई कदम उठाए  हैं, जिनमें विश्व की सबसे बड़ी पश्चिमी राजस्थान की इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना और अन्य कई बहु उद्देशीय परियोजनाओं के नाम शामिल है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की सहायता से प्रदेश की वर्तमान भजन लाल शर्मा सरकार ने पूर्वी राजस्थान पी के सी राम सेतु नहर परियोजना को स्वीकृत कराया है। इंटर लिंक रीवर की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में मध्य प्रदेश सरकार भी भागीदार है ।  इसी प्रकार प्रदेश के शेखावाटी क्षेत्र की प्यासी धरती तक यमुना जल लाने के लिए हरियाणा से समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए गए है।

राजस्थान में पानी का संरक्षण करने के लिए वर्षा जल संचयन और अन्य तरीकों का उपयोग करने की सख्त आवश्यकता है। साथ ही जल पुनर्भरण के प्रयास भी करने होंगे।वैकल्पिक स्रोतों जैसे कि पश्चिमी राजस्थान में मिले जल के अथाह भंडारों के समुद्री जल को शुद्ध करने के लिए डीसैलीनेशन प्लांट का उपयोग कर किया जा सकता है।

इधर दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के ‘जल है तो कल है’ के मूल मन्त्र को अँगीकार करते हुए जिले के 100 मॉडल तालाबों का चयन कर उन्हें गहरा कराने एवं साफ सफाई तथा सौन्दर्यकरण का कार्य हाथ में लिया है।ऐसा करने वाला राजस्थान का यह पहला जिला है ।

इस पहल में स्वच्छ भारत मिशन एसबीएम के प्रदेश समन्वयक के.के. गुप्ता पहल पर जिला कलक्टर अंकित कुमार सिंह द्वारा शुरू कराई जल क्रान्ति की इस अनूठी मुहिम के अन्तर्गत जिले की दस पंचायत समितियों  के प्रत्येक ब्लॉक में दस-दस तालाबों का चयन कर उन्हें गहरा कराने का काम शुरू कर दिया गया है। जिले के 100 तालाबों की गहराई बढ़ने से मानसून की वर्षा  में इनमें अधिक पानी का संचय हो सकेगा तथा डूंगरपुर जिले में शुरू किया गया जलक्रांति का यह शंखनाद पूरे प्रदेश के लिए एक आदर्श मॉडल बनेगा,ऐसी उम्मीद है । जल संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि  भूमिगत और सतही पानी की भारी कमी तथा पानी की गुणवत्ता से जूझ रहे राजस्थान को पानी के लिए केन्द्र सरकार से विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए 


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