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बाल साहित्य के विकास के लिए बनना होगा तांगे का घोड़ा 

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08 Dec 25
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बाल साहित्य के विकास के लिए बनना होगा तांगे का घोड़ा 

डॉ. युगल सिंह की बाल कृति का लोकार्पण

 बाल साहित्य के विकास के लिए तांगे का घोड़ा बनना होगा। जिस प्रकार तांगे का घोड़ा दोनों और से बंधा होने से  एक ही दिशा में सीधा चलता और देखता रहता है वैसे ही मैं भी बाल साहित्य के लिए तांगे का घोड़ा जैसा हूं। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ .विकास देव ने रविवार को कोटा में बाल साहित्यकार डॉ . युगल सिंह की कृति "हाड़ौती में बाल साहित्य का उद्भव और विकास" के लोकार्पण  समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि बाल साहित्यकार को शिशु, बाल, तरुण और किशोर बाल वर्ग की दृष्टि से बाल साहित्य का सृजन करना होगा।

     डॉ. देव ने कहा कि बाल साहित्य से बच्चों को केवल नैतिक ज्ञान देना ही आज पर्याप्त नहीं हैं वरन आज जब बच्चें इंटरनेट के युग में उन सब वर्जनाओं को मोबाइल और कंप्यूटर पर खुले रूप से देख रहे हैं जिन पर हमारे जमाने में बच्चें नवीं दसवीं कक्षा आते आते भी बात करने में शर्म महसूस करते थे तो इन वर्जनाओं से जानकारी देने  के लिए  बाल साहित्य में परहेज कैसा ? बाल साहित्यकारों को अपना बाल सृजन इस प्रकार करना होगा कि नैतिक शिक्षा के साथ - साथ बच्चों को हर विषय की व्यावहारिक जानकारी मिले और वे भटकाव से बचें। उन्होंने लोकार्पित कृति को बाल साहित्य की दृष्टि से उपयोगी  बताया।

   समारोह अध्यक्ष बाल साहित्यकार दिविक रमेश, विशिष्ठ अतिथि बलदाऊ राम साहू, दुर्ग सदस्य, छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग एवं राजभाषा सलाहकार मंत्रालय, भारत सरकार बाल साहित्यकार रतनगढ़ ओमप्रकाश क्षत्रिय जितेंद्र निर्मोही एवं डॉ. गीता सक्सेना ने अपने विचार रखते हुए आंचलिक बाल साहित्य सृजन की आवश्यकता पर बल दिया। बालसाहित्यकार जयसिंह आसावत नैनवा ने कृति परिचय और मेजर रिद्धिमा ने कृतिकार का परिचय दिया। इस अवसर पर हाड़ोती के 39 बाल साहित्यकारों को अमृत सम्मान, अतिविशिष्ट सम्मान और विशिष्ठ सम्मान ने सम्मानित किया गया। डॉ. युगल सिंह ने सभी उपस्थित साहित्यकारों एवं आयोजन सहयोगी जोधराज मधुकर, हेमराज हेम आदि का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम आयोजक संस्था आर्यन लेखिका मंच की अध्यक्ष रेखा पंचोली ने सभी का स्वागत किया।दो सत्रों में आयोजित समारोह का संचालन संयुक्त रूप से साहित्यकार नहुष व्यास, डॉ. वैदेही गौतम और रामनारायण मीणा  हलधर ने किया। कई साहित्यकारों ने डॉ. देव को अपनी कृतियां भेंट की। 


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