गोपेन्द्र नाथ भट्ट
हिन्दी सिनेमा के अमर कलाकार धर्मेन्द्र अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने 89 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनकी यादें एक सदाबहार अभिनेता के रूप में हमेशा बनी रहेंगी। धर्मेन्द्र का राजस्थान से गहरा नाता रहा उन्होंने फिल्मों के माध्यम से ही नहीं वरन् राजनीति से भी राजस्थान से गहरा सम्बन्ध बनाया। वे राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से 2004 में सांसद बने । अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने से पहले जाट बहुल इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने धर्मेन्द्र की लोकप्रियता का लाभ उठाया था। वर्तमान में इस सीट पर केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सांसद है।
धर्मेन्द्र जब बीकानेर के सांसद थे तब तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने संसद भवन में प्रदेश के सांसदों की बैठक बुलाई थी,तब उनसे रूबरू काफी लंबी बात हुई तथा बाद में पांच वर्षों तक यह सिलसिला चला। लेखक को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि धर्मेन्द्र की मीडिया से पर्याप्त दूरी रहे ताकि वे अपने फिल्म अभिनेता और सांसद के रूप में राजनीतिक दायित्वों के साथ पूरा न्याय कर सके अन्यथा मीडिया और आम लोग हमेशा धर्मेन्द्र को घेरे रख उनसे ऑटोग्राफ लेने की होड में ही उलझे रहते थे। फिर भी धर्मेन्द्र जी जब भी मीडिया से रूबरू होते थे तब वे बहुत शिद्दत के साथ हर प्रश्न का पूरी संजीदगी से जवाब देते थे।
उनकी पत्नी सांसद हेमामालिनी भी उनकी राजनीतिक भूमिका पर बहुत ध्यान रखती थी और समय समय पर पूछताछ भी करती थी।
धर्मेन्द्र ने राजस्थान में कई स्थानों की फिल्मों की शूटिंग की लेकिन उन्हें झीलों की नगरी उदयपुर बहुत पसंद थी। उदयपुर के निकट सीसारमा और चीरवा गांव में मेरा गांव मेरा देश शूटिंग के दौरान उन्होंने अपनी दरियादिली का उदाहरण भी प्रस्तुत किया । चिरवा गांव के हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक जितेन्द्र मोहन भट्ट बताते है कि उन्होंने गांव के सरपंच को बुला कर स्कूल के लिए डोनेशन दिया।धर्मेन्द्र राजस्थान के किलों, हवेलियों, रेगिस्तानी विस्तार और ग्रामीण संस्कृति के बड़े प्रशंसक थे। वे अक्सर कहा करते थे कि “राजस्थान के लोग जितने गर्मजोशी से मिलते हैं, वह कहीं और देखने को नहीं मिलता।”उन्हें मेवाड़ी,मारवाड़ी भोजन, राजस्थानी लोकनृत्य और लोकसंगीत से विशेष लगाव था। इसी प्रेम के चलते उन्होंने अपने करियर के दौरान कई बार राजस्थान में शूटिंग को प्राथमिकता दी।
धर्मेन्द्र केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि भारतीय जनमानस की भावनाओं से गहराई तक जुड़े एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनकी पहचान सादगी, विनम्रता, ग्रामीण संस्कृति और मजबूत नैतिक मूल्यों से होती थी। राजस्थान से उनका संबंध फिल्मों, राजनीति और सांस्कृतिक जुड़ाव—इन तीनों स्तरों पर बेहद प्रगाढ़ रहा। उनके निधन के बाद राजस्थान के अनेक जिलों में जिस तरह शोक व्यक्त किया गया, वह उनके इस विशेष संबंध की पुष्टि करता है।धर्मेन्द्र की कई सुपरहिट और यादगार फ़िल्मों की शूटिंग राजस्थान की धरा पर हुई थी, जिसने न केवल उनके करियर को नई ऊंचाई दी बल्कि राजस्थान के पर्यटन और सांस्कृतिक पहचान को भी राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता दिलाई।उनकी राजस्थान में शूट हुई प्रमुख फिल्मों में
गुलामी (1985) की शूटिंग रामगढ़ शेखावाटी, चूरू और झुंझुनूं के ग्रामीण अंचलों में हुई थी।फिल्म बंटवारा (1989) राजस्थान के मरुस्थलीय गांवों और हवेलियों की पृष्ठभूमि में फिल्माए गए इस एक्शन-ड्रामा ने धर्मेन्द्र के मजबूत, न्यायप्रिय और संघर्षशील किरदार को नए आयाम दिए।
मेरा गाँव मेरा देश (1971) फिल्म में दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर के ग्रामीण सर्वराजस्थान के रेगिस्तानी इलाके का उपयोग किया गया। यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई और धर्मेन्द्र की लोकप्रियता को गांव–देहात के दर्शकों में अत्यधिक बढ़ाने में महत्वपूर्ण रही। इसके अलावा लोहा, फूल और पत्थर, बड़ा आदमी जैसी फिल्मों के कई दृश्य भी राजस्थान के जोधपुर, जयपुर और बीकानेर के आसपास फिल्माए गए। इन फिल्मों ने धर्मेन्द्र की छवि को ग्रामीण परिवेश से जुड़ा एक सशक्त कलाकार के रूप में स्थापित किया। राजस्थान के गांवों और कस्बों में धर्मेन्द्र की फिल्मों का क्रेज इसलिए भी अधिक रहा क्योंकि दर्शकों को उनमें अपनी संस्कृति और परिवेश की झलक दिखाई देती थी।
फिल्मों के अलावा राजस्थान की राजनीति में धर्मेन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही। राजस्थान से धर्मेन्द्र का जुड़ाव केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रहा। वे बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य भी रहे। वर्ष 2004 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बीकानेर से टिकट दिया और वे भारी मतों से विजयी हुए।धर्मेन्द्र राजनीति में भले सक्रिय रूप से लंबे समय तक नहीं रहे, लेकिन बीकानेर और आसपास के जिलों में उनका जबरदस्त जनसमर्थन था। लोग उन्हें नेता के रूप में नहीं, बल्कि अपनेपन से भरे एक फिल्म कलाकार के रूप में देखते थे।उनके दौरे पर बीकानेर में हजारों लोग सड़कों पर उमड़ पड़ते थे।
वे गांवों के अपने दौरों में सीधे जाकर लोगों से चाय पीते, बातें करते और स्थानीय समस्याएँ सुनते थे।राजस्थान के ग्रामीण अंचल में धर्मेन्द्र की सादगी और मिलनसार स्वभाव ने उन्हें सामान्य लोगों के बेहद करीब ला दिया। इसी प्रकार राजस्थान की संस्कृति में धर्मेन्द्र की लोकप्रियता इतनी अधिक रही कि वे सिर्फ एक फिल्म स्टार नहीं थे, बल्कि एक भावना थे।उनके ग्रामीण अंदाज, विनम्र भाषा, देसी पहनावे और सरल व्यक्तित्व ने उन्हें राजस्थान के दर्शकों के दिलों में बसाया।राजस्थानी समाज में आज भी लोग उन्हें “धरम पाजी” के नाम से प्यार से याद करते हैं।
धर्मेन्द्र को राजस्थान में कई संस्थाओं ने सम्मानित किया।उन्हें राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी प्रदान किया गया।जयपुर और जोधपुर में उनके सम्मान में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते रहे।
धर्मेन्द्र का राजस्थान से संबंध बहुआयामी और आत्मीय था। उनकी फिल्मों ने राजस्थान के प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता को अमर कर दिया। राजनीति के माध्यम से उन्होंने राजस्थान की जनता से सीधा संबंध स्थापित किया। वहीं, उनकी सादगी, सहजता और मानवीय संवेदनाओं ने उन्हें इस प्रदेश की जनता के मन में स्थायी स्थान दिया।उनके निधन के बाद राजस्थान में जिस तरह श्रद्धांजलि दी गई, वह इस बात का प्रमाण है कि धर्मेन्द्र केवल भारतीय सिनेमा के “ही-मैन” ही नहीं थे वरन तीन सौ से भी अधिक फिल्मों का इतिहास रचने वाले धर्मेन्द्र सिने जगत की लगभग हर जानी मानी एक्ट्रेस के साथ फिल्मों में आए। पहलू पत्नी प्रकाश कौर दियोल और दूसरी पत्नी हेमामालिनी के होने के बावजूद उनके रोमांस के किस्से भी खूब लहराए
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित देश के कई नेताओं ने धर्मेन्द्र को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि उनके चले जाने से फिल्म जगत के एक युग का अंत हो गया है। पूरे फिल्म जगत में शोक की लहर है । वे राजस्थान के भी प्रिय बेटे थे। इसलिए राजस्थान का मरुस्थल भी इनके शोक में भीग गया है।