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गुरुदेव पुलक सागर जी से विशेष संवाद: संस्कृति, शिक्षा और सामाजिक संतुलन पर सार्थक मंथन

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24 Nov 25
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गुरुदेव पुलक सागर जी से विशेष संवाद: संस्कृति, शिक्षा और सामाजिक संतुलन पर सार्थक मंथन

उदयपुर।चार महीने की प्रतीक्षा और कई प्रयासों के बाद डॉ. मुनेश अरोड़ा को अंततः गुरुदेव पुलक सागर जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 45 वर्षों के विस्तृत पत्रकारिता अनुभव के बावजूद, उन्होंने इस मुलाकात को “जीवन का दुर्लभ अवसर” बताते हुए कहा कि किसी ऐसे संत से संवाद करना, जिसने सत्य का साक्षात्कार किया हो, किसी भी नामी व्यक्तित्व के साक्षात्कार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और गहन होता है।

डॉ. अरोड़ा ने बताया कि समाज के कई वरिष्ठ सदस्यों और परिचितों के माध्यम से प्रयास करने के बावजूद मुलाकात कई महीनों तक संभव नहीं हो सकी। लेकिन जब गुरुदेव पुलक सागर जी केशव नगर स्थित निवास योजना में पधारे, तब उन्हें यह विशेष अवसर प्राप्त हुआ। अनुमति मिलने के बाद, यह संवाद केशव नगर के मंदिर परिसर में अत्यंत शांत वातावरण में संपन्न हुआ।

धर्म-संस्कृति पर बदलते परिवेश की चिंता

बातचीत की शुरुआत में डॉ. अरोड़ा ने हिंदू और जैन समाज की वैश्विक स्थिति, बदलती सांस्कृतिक परिस्थितियों और घटती प्रभावशीलता पर चिंता व्यक्त की।
इस पर गुरुदेव पुलक सागर जी ने कहा कि हिंदुओं को जनसंख्या असंतुलन, सांस्कृतिक क्षरण और सामाजिक संरचनाओं पर बढ़ते प्रतिबंधों के प्रति अत्यंत जागरूक होने की आवश्यकता है।

उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत ही वह देश है जहाँ हिंदू अब भी बहुसंख्यक हैं, लेकिन अत्यधिक उदारता, एकता की कमी और राजनीतिक तुष्टिकरण ने उनकी सामाजिक शक्ति को समय के साथ कमजोर कर दिया है।

शिक्षा में छिपा खतरा: इतिहास से नायकों की अनुपस्थिति

गुरुदेव पुलक सागर जी ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि
“महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे राष्ट्रनायकों को धीरे-धीरे पाठ्यक्रमों से हटाया जा रहा है, जबकि आक्रमणकारियों को नायकों के रूप में पेश किया जा रहा है।”

उन्होंने कहा कि यदि नई पीढ़ी को वास्तविक इतिहास से दूर रखा गया, तो आने वाले समय में इसका प्रभाव अत्यंत चिंताजनक होगा।

गुरुकुल पर जोर: “मूल्य आधारित शिक्षा ही समाधान”

गुरुदेव पुलक सागर जी ने बताया कि सनातन धर्म हजारों वर्षों तक इसलिए सुरक्षित रहा क्योंकि गुरुकुलों ने बच्चों को शिक्षा के साथ—

अनुशासन,

संस्कार,

राष्ट्रभावना,

और चरित्र निर्माण
भी प्रदान किया।

उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली केवल “लिखना-पढ़ना” सिखाती है, लेकिन “जीवन जीना” नहीं सिखाती।
गुरुदेव ने अभिभावकों से आग्रह किया कि वे केवल अंकों और प्रतियोगिता की दौड़ में बच्चों को न धकेलें, बल्कि ऐसे संस्थानों को प्रोत्साहित करें जो गुरुकुल आधारित शिक्षा को आगे बढ़ा रहे हैं।

परिवार और मानसिक स्वास्थ्य पर सार्थक चर्चा

गुरुदेव पुलक सागर जी ने कहा कि आज युवाओं और बच्चों में बढ़ती तनावग्रस्तता, अवसाद और अकेलेपन का कारण—

अत्यधिक अपेक्षाएँ,

पाश्चात्य जीवनशैली,

और आध्यात्मिक दूरी
हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि अभिभावक अनजाने में बच्चों को प्रतियोगिता की ऐसी राह पर धकेल देते हैं जहाँ भावनात्मक जुड़ाव कमजोर पड़ जाता है।

जनसंख्या असंतुलन और सामाजिक नीति

गुरुदेव पुलक सागर जी ने कहा कि वोट-बैंक आधारित नीति निर्माण ने समाज में असमान कानूनों का वातावरण बना दिया है।
उन्होंने एक समान नागरिक संहिता, और आरक्षण के लिए आर्थिक आधार को प्राथमिक मानने की आवश्यकता पर जोर दिया।

महिलाओं की भूमिका: “संस्कृति की धुरी”

गुरुदेव ने कहा कि समाज को स्थिर बनाए रखने में महिलाओं की भूमिका सबसे प्रमुख है।
उन्होंने कहा कि आधुनिक आकर्षणों को आत्मिक और सांस्कृतिक चेतना से ऊपर नहीं रखा जाना चाहिए।

समापन: चेतना की नई शुरुआत

इस सार्थक संवाद के अंत में गुरुदेव पुलक सागर जी ने कहा कि
“जहाँ राष्ट्र और संस्कृति की चिंता है, वहीं से आशा जन्म लेती है।”

डॉ. मुनेश अरोड़ा ने इस मुलाकात को एक प्रेरणादायी अनुभव बताते हुए कहा कि इस प्रकार के संवाद समाज को जागरूक और मजबूत बनाने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं।


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