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गर्भकल्याणक महोत्सव के साथ ही तीन दिवसीय पंचकल्याणक महोत्सव प्रारम्भ

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10 May 25
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गर्भकल्याणक महोत्सव के साथ ही तीन दिवसीय पंचकल्याणक महोत्सव प्रारम्भ


उदयपुर। नवनिर्मित देवाधिदेव 1008 श्री शांतिनाथ जिनालय का पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव मुनि पुण्य सागर महाराज के पावन सानिध्य में शनिवार को गर्भकल्याणक महोत्सव के साथ प्रारंभ हुआ। इस महोत्सव में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ही गर्भकल्याणक के तहत माता की गोद भराई का महान महोत्सव हुआ।
उक्त महोत्सव की जानकारी देते हुए सुधीर कुमार जैन ने बताया कि 53 ए ब्लॉक श्रीनाथ नगर शीतल पार्क के पास सेक्टर 9 उदयपुर में प्रारंभ हुई पंचकल्याणक महोत्सव की प्रातः कालीन बेला में कई पुनर्वर्धक क्रियाएं हुई। जिसमें प्रातः 6.15 बजे जिनाज्ञा, देवाज्ञा, गुरु आज्ञा, 6.30 बजे श्री जी शोभा यात्रा एवं घट यात्रा, 7 बजे ध्वजारोहण मंडप उद्घाटन, मंडप शुद्धि, श्रीजी का अभिषेक, शांति धारा, मंगलाचरण, दीप प्रज्वलन अंगन्यास, संकलीकरण इंद्र प्रतिष्ठा, मंडप प्रतिष्ठा, जाप्यानुष्ठान, अकुरारोपण, जैसे मंगल आयोजन हुए।
जैन ने बताया कि महोत्सव प्रारंभ होने से पूर्व सेक्टर 9 स्थित चौताली से भव्य घट यात्रा निकाली गई जो विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए मंदिर जी पहुंची। पूरे आयोजनों के पुण्यार्जकों में ऋषभ जसिगोत, जतिन गांधी, भूपेंद्र मादावत, कमलेश भूता, विमल सेठ, जितेंद्र सामलरिया, दीपक तलेरिया, विनोद डागरिया, रौनक भानावत, रौनक सेठ आदि रहंे।
इस दौरान आयोजित धर्म सभा में मुनि पुण्य सागर महाराज ने श्रावकों को गर्भकल्याणक महोत्सव की महिमा बताते हुए कहा कि गर्भ कल्याणक महोत्सव करना यह बहुत ही पुण्य कर्म का काम है। जिसने पिछले जन्म में अच्छे पुण्य कर्म किए हैं उनके भाग्य में ही इस जन्म में मंदिर निर्माण और उसका पंचकल्याणक करवाने का पुण्य कर्म आता है। गर्भ कल्याणक संसार का महत्वपूर्ण तत्व है। बिना गर्भ में आए कोई भी संसार में नहीं आ सकता और मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता। हमारंे तीर्थंकर भी अंतिम गर्भ में आए और जनकल्याण करके मोक्ष को प्राप्त हुए। गर्भ से ही संस्कार बीजारोपण प्रारंभ हो जाता है। एक मां सौ शिक्षकों के बराबर होती है। जब तक इंसान गर्भ में नहीं आता वह सृष्टि पर भी नहीं आ सकता। गर्भ हमेशा सुरक्षित होता है। हमें कभी गर्भ में दिखाई नहीं देता है। जब माताएं गर्भ धारण करती है तो वह बहुत ही संयमित और मर्यादित जीवन जीती है। बच्चों की सबसे बड़ी पाठशाला मां का गर्भ ही होता है। जैसा मां का चरित्र होता, जैसा मन का आचरण होता है,  है जैसा मां भोजन करती है, जैसे मां के संस्कार होते हैं वैसे ही संस्कार और आचरण बच्चा गर्भ में धारण करता है। अगर अपने बच्चों को धार्मिक और संस्कारवान बनाना है तो उसे गर्भ के दौरान ही संस्कार देने चाहिए।
मुनिश्री ने कहा कि संस्कारी मनुष्य ही दुनिया में मूल्यवान होते है बिना अग्नि में तपे सोने का भी कोई मूल्य नहीं होता है। अगर जीवन में अच्छे संस्कार नहीं है तो संसार में मनुष्य का भी कोई मोल नहीं होता है। मुनिश्री ने कहा जब अपना बच्चा दुनिया में अच्छे और पुण्यवान काम करता है तो मां कहती है बच्चा मुझ पर गया है, पिता कहता है कि मुझ पर गया है, दादा दादी कहते हैं कि मुझ पर गया है। लेकिन वही बच्चा अगर कु-संस्कारों में पड़कर गलत काम करता है तो सभी यह कहते हैं कौन जाने यह बच्चा किस पर गया है। इसलिए बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए गर्भ कल्याणक महोत्सव का बहुत महत्व माना गया है।
जैन ने बताया कि दोपहर में 12.30 बजे बाद श्री योग मंडल अर्चना, सीमन्तनी क्रिया, माता की गोद भराई का महान धार्मिक आयोजन हुआ। इसके बाद शाम 7 बजे श्री जी की आरती, शास्त्र स्वाध्याय, गर्भकल्याणक, मंच कार्यक्रम एवं गर्भ कल्याणक अंतरग क्रियाएं संपादित हुई।


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