उदयपुर। सांसद डॉ मन्नालाल रावत ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को पत्र लिखकर धर्म अथवा सांस्कृतिक परिवर्तन के बाद अनुसूचित जनजाति की पात्रता की संवैधानिक वैधता को समाप्त करने को लेकर स्पष्टता जारी करने का आग्रह किया है। ऐसा नहीं होने से धर्म अथवा सांस्कृतिक परिवर्तन के बाद भी कई लोग अनुसूचित जनजाति की पात्रता का लाभ उठा रहे हैं।
सांसद डॉ रावत ने पत्र में लिखा कि भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों की पहचान के लिए पांच मानदंड स्थापित किए गए हैं। इनमें आदिम लक्षणों के संकेत, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक एकाकीपन, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच, तथा पिछड़ापन को आधार बनाया गया है। इन्हीं आधार पर संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुरूप राज्यवार अनुसूचित जनजातियों को मान्यता प्रदान की जाती है। इसमें विशिष्ट संस्कृति अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो आस्था, रूढ़ी, परम्पराओं एवं देवलोक से सम्बद्ध होता है। ये मूल तत्व ही मूल संस्कृति को परिभाषित करते है। ये तत्व नहीं रहने पर किसी भी सदस्य के अनुसूचित जनजाति का होने की पहचान समाप्त हो जाती है।
सांसद डॉ रावत ने आग्रह किया कि स्वाधीनता के पश्चात् आयोजित वर्ष 1951 की प्रथम जनगणना में अनुसूचित जनजाति के जिन व्यक्तियों अथवा समूहों ने अपना धर्म हिन्दू दर्ज किया था, परंतु बाद की जनगणनाओं में उन्होंने हिन्दू धर्म के स्थान पर ओआरपी (अदर रीलिजन) या प्रोत्साहन) या दूसरा धर्म अंकित किया है। ऐसे प्रकरणों में यह देखा गया है कि उन सदस्यों या समूहों की मूल सांस्कृतिक पहचान में परिवर्तन आ गया है।
इस कारण से 1951 की जनगणना में हिन्दू जैसे धर्म का अंकन करने के बाद इससे भिन्न धर्म अंकन करने वाले सदस्य अनुसूचित जनजातियों की पहचान के पांच मानकों में से एक विशिष्ट संस्कृति से भिन्न हो चुके हैं और वे अनुसूचित जनजाति होने की पात्रता खो चुके हैं। इस संवैधानिक परिवर्तन के उपरान्त भी उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा, संवैधानिक हक तथा विकास की योजनाओं में पात्र माना गया है।
सांसद डॉ रावत ने बताया कि ऐसे कई समूह राजस्थान सहित भारत के कई राज्यों में जानकारी में आए है। उनके लोकसभा क्षेत्र अन्तर्गत ग्राम पई (ब्लॉक गिर्वा) ग्राम कागदर (ब्लॉक रिषभदेव) एवं अन्य स्थानों में भी ऐसे कई परिवारों व समूहों की जानकारी प्राप्त हुई है। देश के अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे कई सदस्य होने की संभावना है। ऐसे सदस्यों के अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से अपात्र होने के सम्बन्ध में सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा केरल राज्य बनाम चन्द्रमोहनन (एआईआर 1972) एवं उच्च न्यायालय, गोवाहाटी के ( इवानलेंगकी-ई-रिमंबई वर्सेज जनजातीय हिल्स 28 मार्च 2006) जैसे कई निर्णय उल्लेखित है।
सांसद डॉ रावत ने केंद्रीय कानून मंत्री से आग्रह किया है कि ऐसे व्यक्तियों व समूहों के संबंध में यह संवैधानिक स्पष्टता प्रदान की जाए कि 1951 की जनगणना में दर्ज धर्म से भिन्न धर्म दर्ज करने पर उनके धर्म परिवर्तन व सांस्कृतिक परिवर्तन की स्थिति में वे अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से वे स्वतः ही बाहर होंगे। ऐसे लोगों के लिए संवैधानिक स्थिति स्पष्ट की जा सकती है, क्योंकि जनगणना वर्ष 1951 के आंकड़ों में ऐसे कई सदस्यों का विवरण दर्ज है। इस हेतु गृह मंत्रालय के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त के आकड़े उपयोगी हो सकते हैं।