मृत्यु के बाद भी 'मौन अध्यापक' बनकर मेडिकल छात्रों को पढ़ाएंगे 'बाउजी'
प्रेरणा: 300 घरों की बस्ती से मेडिकल कॉलेज तक की गौरवमयी यात्रा, शिक्षक छोटू लाल बाथरा का पार्थिव शरीर राष्ट्र को समर्पित
देह त्यागने के बाद भी जारी है गुरु की शिक्षा: मेडिकल कॉलेज में हुआ पहला देहदान, नम आंखों और गर्व के साथ दी गई विदाई
विस्तृत समाचार रिपोर्ट:
(बारां/बूंदी)
एक शिक्षक का जीवन समाज को दिशा देने में बीतता है, लेकिन मृत्यु के बाद अपनी देह को समाज के हित में सौंप देना एक ऐसा 'महादान' है जो बिरले ही कर पाते हैं। बूंदी जिले के एक छोटे से गांव अड़ीला के निवासी और शिक्षाविद स्वर्गीय श्री छोटू लाल बाथरा ने अपनी मृत्यु को भी 'जीवनदान' में बदल दिया। उनके पार्थिव शरीर के दान से बारां मेडिकल कॉलेज के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। कॉलेज को अपनी स्थापना के बाद पहली बार एनाटॉमी (शरीर रचना विज्ञान) की पढ़ाई के लिए 'कैडेवर' (पार्थिव देह) प्राप्त हुआ है।
संकल्प से सिद्धि की कहानी
अड़ीला गांव के त्रिमूर्ति बाल उच्च माध्यमिक विद्यालय के संस्थापक श्री छोटू लाल बाथरा का मंगलवार शाम कोटा में आकस्मिक निधन हो गया था। उनके निधन के बाद शोकाकुल परिवार ने विलाप करने के बजाय उनकी अंतिम इच्छा को सर्वोपरि रखा।
कापरेन शाखा के संरक्षक एवं ग्राम विकास प्रोजेक्ट के पूर्व नेशनल सेक्रेट्री ललित कुमार टेलर ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2021 में भारत विकास परिषद द्वारा आयोजित नेत्रदान-देहदान कार्यशाला में शाइन इंडिया फाउंडेशन के कार्यों से प्रभावित होकर श्री बाथरा ने देहदान का संकल्प पत्र भरा था। उनके इस संकल्प को पूरा करने के लिए शाइन इंडिया फाउंडेशन के डॉ. कुलवंत गौड़ और कापरेन शाखा ने तत्काल मोर्चा संभाला। पहले कोटा में उनका नेत्रदान संपन्न हुआ और फिर आज उनकी देह बारां मेडिकल कॉलेज लाई गई।
गाँव में भावपूर्ण विदाई: अंतिम यात्रा बनी 'गौरव यात्रा'
बुधवार प्रातः 9:00 बजे जब अड़ीला गांव में उनकी अंतिम यात्रा निकली, तो दृश्य बेहद मार्मिक किंतु गर्व से भरा था। शव यात्रा में उनके पढ़ाए हुए शिष्य, परिवार की महिलाएं, और विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोग शामिल हुए। पार्थिव शरीर को घर से मुक्तिधाम ले जाया गया, जहाँ वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सूक्ष्म क्रियाएं संपन्न की गईं।
यहाँ आयोजित श्रद्धांजलि सभा में भारत विकास परिषद कापरेन शाखा के अध्यक्ष राम अवतार सोनी, प्रदीप कुमार गुप्ता, सुनील सिंह, सत्यनारायण गौतम, और परिजन मोहनलाल व भागीरथ राठौर ने उनके जीवन आदर्शों को याद किया। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की बहनों और पूर्व नपा अध्यक्ष मुकेश मीणा ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। सभी ने एक स्वर में कहा कि एक छोटे से गांव से उठी यह देहदान की मशाल पूरे हाड़ौती क्षेत्र को रोशन करेगी।
डॉ. कुलवंत गौड़ का वक्तव्य: "बारां हमारी प्राथमिकता था"
शाइन इंडिया फाउंडेशन के डॉ. कुलवंत गौड़ ने देहदान की प्रक्रिया और महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, "हमारी संस्था 2011 से इस क्षेत्र में कार्य कर रही है। पिछले तीन वर्षों से हमने एक प्रक्रिया अपनाई है कि जब भी कोई व्यक्ति देहदान का संकल्प लेता है, हम उनके परिजनों की भी काउंसलिंग करते हैं, ताकि अंतिम समय में किसी भी प्रकार की भ्रांति आड़े न आए। हमें एक सप्ताह पहले ही जानकारी मिली थी कि बारां मेडिकल कॉलेज में अब तक एक भी देहदान नहीं हुआ है। इसलिए, जब छोटू लाल जी के पार्थिव शरीर को दान करने की बात आई, तो हमने कोटा के बजाय बारां मेडिकल कॉलेज को पहली प्राथमिकता दी। यह पूरे संभाग के लिए गर्व की बात है कि अब तक हम 50 से अधिक देहदान करवा चुके हैं, और आज बारां का खाता भी खुल गया है।"
कॉलेज में भावुक स्वागत: छात्रों को मिले पहले 'गुरु'
दोपहर करीब 1:00 बजे एंबुलेंस पार्थिव देह लेकर बारां मेडिकल कॉलेज पहुंची। यहाँ का माहौल किसी उत्सव और श्रद्धा के संगम जैसा था। कॉलेज के डीन, फैकल्टी और एमबीबीएस के विद्यार्थी पहले से ही कतारबद्ध खड़े थे। सभी ने बारी-बारी से पुष्प अर्पित कर उस 'महामानव' को नमन किया जो अब उनका 'सब्जेक्ट' नहीं बल्कि 'गुरु' बनने जा रहा था।
"बाउजी की जर्नी अभी खत्म नहीं हुई..."
इस अवसर पर दिवंगत की भतीजी और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त (नेशनल राइफल शूटर) उर्मिला राठौर का गला रुंध गया। उन्होंने बेहद भावुक शब्दों में कहा, "बाउजी मेरे लिए सिर्फ एक अभिभावक नहीं, बल्कि मेरे मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत थे। मेरी सफलता की नींव उन्हीं के त्याग पर रखी गई है। हमें बहुत गर्व है कि अब उनके शरीर से बारां मेडिकल कॉलेज के बच्चे डॉक्टरी की पढ़ाई करेंगे। एक शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। देह त्यागने के बाद भी उनकी जर्नी (यात्रा) खत्म नहीं हुई है। वे अब एक 'मौन अध्यापक' (Silent Teacher) के रूप में मेडिकल छात्रों को मानव शरीर की जटिलताओं का पाठ पढ़ाते रहेंगे। मेरी यही कामना है कि छात्र उनसे सीखकर बेहतरीन डॉक्टर बनें और जनसेवा करें।"
चिकित्सा शिक्षा में मील का पत्थर
बारां मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सी.एम. मीणा ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि वे पिछले दो साल से कैडेवर के इंतजार में थे। उन्होंने कहा, "आज भारत विकास परिषद और शाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से हमें हमारा पहला देहदान मिला है। यह दान हमारे बच्चों को होनहार डॉक्टर बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाएगा। मैं पूरे परिवार को नमन करता हूँ।"
आंकड़े और भविष्य की राह
शाइन इंडिया फाउंडेशन बारां के संयोजक हितेश खंडेलवाल ने बताया कि भारत विकास परिषद के प्रयासों से बारां जिले में अब तक 80 से अधिक नेत्रदान और 25 से अधिक देहदान के संकल्प पत्र भरे जा चुके हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, "कॉलेज को सुचारू पढ़ाई के लिए अभी भी लगभग 20 और देहदान की आवश्यकता है। इसे पूरा करने के लिए हम जन-जागरण अभियान को और तेज करेंगे।"
इस ऐतिहासिक अवसर पर भारत विकास परिषद के अध्यक्ष नरेश खंडेलवाल, पराग टोंगिया, अंबिका प्रकाश शर्मा सहित शहर के कई गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।