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पुस्तक समीक्षा  हिमशिखर और चाँदनी ( कहानी संग्रह ) संवेदनाओं को झकझोरती हैं संदेशपरक कहानियाँ.

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23 Nov 25
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पुस्तक समीक्षा     हिमशिखर और चाँदनी ( कहानी संग्रह )    संवेदनाओं को झकझोरती हैं संदेशपरक कहानियाँ.

कहानीकार रेखा पंचोली की 9 कहानियों का संग्रह "हिमशिखर और चाँदनी" में बुना गया कहानियों का तानाबाना संदेश परक कहानियों का ऐसा गुलदस्ता है जो किसी परिस्थिति का वर्णन ही  नहीं करती वरन संदेश प्रधान हो कर मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती भी हैं। वर्तमान का यथार्थ भी इनमें झांकता है तो ऐतिहासिक और धार्मिक प्रसंग, परंपराएं भी वर्तमान से जुड़ते प्रतीत होते हैं। सभी कहानियाँ चिंतन का एक बिंदु उभरती हैं । भाषा शैली सहज सरल है और कथानक का कसावट पाठक को बांधे रखता हैं। 

    इस संग्रह की शीर्षक कहानी हिमशिखर और चाँदनी वंश वृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए हमारी प्राचीन परंपरा नियोग प्रथा पर आधारित है जिसमें कहानी की पात्र कल्याणी संन्यासी से संबंध स्थापित करती है।

      कहानी के अंश देखिए कल्याणी कहती है वही तो महाराज! इसीलिए तो मन्नत मागने आई हूँ? बद्री नारायण की कृपा से.... या किसी साधू-संत के आशीर्वाद से मैं भी मातृत्व सुख प्राप्त कर सकें। टेकरी वाले बाबा के दर्शन तो मेरे भाग्य में नहीं थे महात्मा ! पर आपके आशीर्वाद से मेरी मनोकामना फलीभूत हो, मुझे आशीर्वाद प्रदान करें!

       सृष्टि के कुछ नियम होते हैं कल्याणी ! प्रकृति विज्ञान के नियमों पर चलती है. केवल आशीर्वाद से संतान की प्राप्ति नहीं हो सकती कल्याणी!" कल्याणी की अबोध सी बात सुनकर संन्यासी के चेहरे पर क्षण भर के लिए मुस्कान की रेखा उभरी और फिर उसकी गंभीरता के पीछे उसी तरह छुप गई जैसे बादलों के मध्य दूज का चाँद ।

    चौंक कर संन्यासी की ओर देखा कल्याणी ने मेरी समझ में आपकी बातें नहीं आ रहीं महात्मन्। हमारे शास्त्रों में इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। संतों का प्रताप होता ही ऐसा है।

     मैं समझ रहा हूँ कल्याणी तुम कौन से उदाहरणों की बात कर रही हो... केवल आशीर्वाद या प्रसाद खाने से संतान की प्राप्ति हो सकती तो महाभारत की सत्यवती अपना वंश चलाने के लिए वेदव्यास जी को न बुलाती ...उस समय तो साक्षात श्री कृष्ण मौजूद थे न... कल्याणी ! क्या वे आशीर्वाद नहीं दे सकते थे? निस्संतान स्त्री जिसका पति संतान उत्पन्न करने योग्य न हो. उसके लिए संतान प्राप्ति का केवल एक ही तरीका है. और वह है नियोग प्रथा द्वारा संतान प्राप्ति... जिसकी अनुमति हमारे शास्त्रों में दी गई है।

   लेखिका के कथानक की गहराई में झांकने के लिए कहानी के ये अंश अपने आप में उल्लेखनीय हैं कि किस प्रकार निसंतान नारी की संतान प्राप्ति की समस्या को सांस्कृतिक प्रथाओं से जोड़ कर समाधान तक पहुंचाया है।

    कहानी हैप्पी मदर्स डे सरहद पर देश और मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर करने को तत्पर जांबाज सैनिकों की माताओं को समर्पित हैं जो हंसते - हंसते अपने दिल के कलेजे को मातृभूमि की रक्षा के लिए सीमाओं पर भेज देती हैं। 

   इस कहानी का एक अंश -  वह मन ही मन कह उठी - 'समझ गई कि इस फोटो के माध्यम से तुम क्या कहना चाहते हो। इस फोटो के जरिए तुम मुझे यह सन्देश देना चाहते हो कि माँ आप उन माताओं के बारे में भी सोचो जिन्होंने मजबूत जिगर करके अपने जिगर के टुकड़ों को भारत माँ की रक्षा के लिए सीमा पर भेज दिया है। धन्यवाद बेटे, याद दिलाने के लिए। वास्तव में तो वही माताएं मजबूत और साहसी हैं। इस मदर्स डे पर उन्हीं बहादुर माताओं को मेरा शत-शत नमन, जिन्होंने अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर अपने आँगन की रौनक को भारत माँ के आँगन की सुरक्षा में लगा दिया। उन सभी को मेरी ओर से 'हैप्पी मदर्स डे।

      पुरुष प्रधान समाज में नारी को अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरने का सीता माता का प्रसंग सर्वविदित है। इसको लेकर सृजित कहानी अग्नि परीक्षा समाज में नारी की स्थिति को बखूबी दर्शाती है। कहानी के तानेबाने में मंदोदरी के मंद -  मंद झुलसते जीवन को जिस प्रकार से उभरा गया है वह लेखिका की अपनी ही लेखन शैली की विशेषता है।

    कहानी का अंश -  सभी परिचारिकाएं महल की ओर प्रस्थान कर गई थीं, जहां से रह-रहकर कभी मंदोदरी की सिसकियां उठती थीं तो कभी विलाप, जो प्रलाप में बदल जाता था। वह रूदन के साथ प्रलाप करते हुए कह रही थी--"हे प्रिय! मेरे वीर योद्धा लंकापति ! इस तपस्विनी के प्रति तुम्हारे मोह ने हमारे परिवार की और इस सोने की लंका की क्या दशा कर दी। तुम्हारी मृत्यु पर शोक करने वाला तुम्हारा कोई भाई या पुत्र नहीं बचा, हमारे परिवार की सारी स्त्रियां विधवा और पुत्र हीन होकर जड़ हो गईं। वे तुम्हारी मृत्यु पर जरा भी आंसू नहीं बहा रही हैं बल्कि अपने पति और पुत्रों की मृत्यु का कारण तुम्हें मानकर धिक्कार रही हैं। हाय! मैं तुम्हारी ऐसी मृत्यु से शोक संतप्त हूं। तुम्हारी प्रजा तुम्हारी मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय तुम्हारे शत्रु का गुणगान कर रही है। तुम्हें तो सदैव से ही मैं ही सर्वाधिक प्रिय थी। फिर प्रौढ़ आयु में आकर इस तापसी को क्यों अपने हृदय में बसाया? तुम्हारे इस मोह ने हमारे कुल का सर्वनाश कर दिया।" मंदोदरी के कानों में रावण के वे शब्द गूंज रहे थे जो उसने कितनी ही बार सीता से मंदोदरी के समक्ष ही कहे थे कि यदि सीता उसकी बात मान लेगी तो वह उसकी महारानी बनेगी और मंदोदरी उसकी दासी के समान रहेगी। जब से सीता लंका में आई, कितनी बार मंदोदरी को अपमान की आग में जलना पड़ा था। जब से रावण से विवाह हुआ, उसने रावण की सेवा और प्रेम में कोई कमी नहीं रखी थी। उसने एक धर्म - परायण स्त्री की तरह अपने कर्तव्य का पालन किया।

     कर्म प्रधान कहानी है तर्पण । कर्म जैसे होंगे वहीं सूद समेत मिलते हैं। सद्कर्मों के लिए प्रेरित करती हैं यह कहानी। संग्रह की अन्य कहानियाँ लोको पायलट, रक्त रंजित केश, काले संदूक का राज, सेतु निर्माण और समझौता सुंदर समाज की रचना के लिए कोई न कोई संदेश देती नजर आती हैं।

      भूमिका में माधव विद्यालय माउंट आबू में हिंदी की प्रोफेसर डॉ. गीता सक्सेना लिखती हैं - नव ग्रह की नव कल्पना सदृश रेखा पंचौली की इन कहानियों का यह समुच्चय साहित्य के क्षेत्र में एक उत्तम दस्तावेज है। इसमें सूर्य की तरह आभासित वैचारिक प्रखरता है, तो चन्द्र सदृश शीतलता भी है। इसकी कहानियाँ कहीं मंगल सा उत्साहवर्धन करती हैं तो कहीं बुध सी बौद्धिकता प्रदान करती हैं। किन्हीं कहानियों में शुक्र सी चकाचौंध है तो कहीं शनि का शनैः शनैः गमन करता संघर्ष विद्यमान है। साथ ही इन कहानियों में राहु सा बौद्धिक भ्रम तो है ही केतु सी गहराई भी हैं। कुल मिलाकर जीवन की संचालित स्थितियों के अनेकानेक प्रसंग हैं।

      पुस्तक के बारे ने प्रकाशक का मत है कि

 यह पुस्तक रेखा पंचौली की नौ उत्कृष्ट कहानियों का संग्रह है जिसमें नारी विमर्श को केंद्र में रखते हुए जीवन के अनेक पक्षों की बहुत बारीकी से प्रस्तुत किया गया है।  कहानियों की एक बड़ी विशेषता है उसका सहज प्रवाह जिसके कारण कोई भी कहानी कभी बोझिल नहीं लगती और पाठक अंत तक उसमें डूब सा जाता है। इस संग्रह की सभी कहानियां अपने आप में अनोखी हैं और बेहद रोचक है लेकिन हिमशिखर और चांदनी एवं अग्नि-परीक्षा शीर्षक वाली कहानियां अपनी बेहतरीन प्रस्तुति और विचारोत्तेजक विषयों के कारण हमारे दिमाग पर लंबे समय तक अपनी छाप छोड़ जाती हैं। निश्चित रूप से यह एक अत्यंत पठनीय पुस्तक है।

    आत्म कथ्य में लेखिका रेखा पंचोली लिखती हैं - उचित अनुचित का प्रश्न पाठकों के समक्ष छोड़ती हूं और अपनी कहानी पाठकों को समर्पित करती हूं। हम आज के बुद्धिजीवी पाठकों को यह नहीं कह सकते कि अग्नि को समर्पित की जाने वाली सीता नकली थी। असली सीता तो लंका गई ही नहीं थी। यह तर्कहीन तथ्य है जिसे धर्मभीरुता का नाम तो दिया जा सकता है तर्क सहित स्थापित नहीं किया जा। प्रश्न यह है कि जब देवी अहिल्या के उद्धारक श्री राम अहिल्या उद्धार के समय यह कहते कि मैं दशरथ नंदन राम ये घोषणा करता हूं कि “देवी अहिल्या सर्वथा पवित्र और निर्दोष हैं।" और पूरी प्रजा नत मस्तक हो कर उसे स्वीकार कर लेती है क्योंकि घोषणा करने वाला कोई साधारण पुरुष नहीं है। आशा है कहानियां पाठकों को पसंद आएंगी।

      इनकी कहानियाँ उपज हैं उस समय की जब मनोरंजन के इलेक्ट्रॉनिक साधन नहीं थे और बच्चें रात को अपने माता - पिता से नाना - नानी, दादा - दादी से कहानियां सुनते थे। कहानियों की समझ और रुचि के लिए इनके पिता सीताराम शर्मा ' श्रोत्रिय ' इनके आदर्श रहे जिनसे ये बचपन में पंचतंत्र से ले कर महाभारत, रामायण जैसे ग्रंथों की। कहानियाँ 

सुना करती थी। बचपन से उपजे कहानी प्रेम ने इन्हें कहानी लिखने को प्रेरित किया और 23 वर्ष की उम्र में पहली कहानी का प्रसारण सवाईमाधोपुर आकाशवाणी केंद्र से हुआ। कहानी लेखन ने रफ्तार पकड़ी और तीसरा कृति कहानी संग्रह के रूप में सामने आई। इसे राजस्थान साहित्य अकादमी का आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है। इसके पूर्व कहानी संग्रह भीगी पलकों में उजास  भी साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित हुआ है। दूसरी कृति  लोक डाउन और कोचिंग सिटी उपन्यास था। पुस्तक का आवरण पृष्ठ शीर्षक के अनुरूप आकर्षक है। लेखिका के संक्षिप्त परिचय के साथ विस्तृत परिचय जानने के लिए प्रोफाइल कोड दिया गया है।

 


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